प्रशासनिक अधिकारियों ने चाहा नहीं जनता के हालात बदल सकते थे जनता के आंसू अधिकारियों के आँखों से निकल सकते थे, जहाँ शामो-सहर ऐसे माहौल में हम किस तरह ढल सकते थे डर गए हैं जो हवाओं के कसीदे सुनकर वो दिए तुमने जलाये नहीं, जल सकते थे हादसे इतने जियादा थे वतन में अपने खून से छप के भी अख़बार निकल सकते थे
प्रशासनिक अधिकारियों ने चाहा नहीं जनता के हालात बदल सकते थे जनता के आंसू अधिकारियों के आँखों से निकल सकते थे, जहाँ शामो-सहर ऐसे माहौल में हम किस तरह ढल सकते थे डर गए हैं जो हवाओं के कसीदे सुनकर वो दिए तुमने जलाये नहीं, जल सकते थे हादसे इतने जियादा थे वतन में अपने खून से छप के भी अख़बार निकल सकते थे ढीमरखेड़ा | दैनिक ताजा ख़बर के प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय का यह बयान वर्तमान समय में देश और समाज की जटिल परिस्थितियों को बयां करता है। उनके शब्द न केवल एक आलोचना हैं, बल्कि एक गहरी संवेदनशीलता और जनभावना की अभिव्यक्ति भी हैं। इस पूरे बयान में प्रशासनिक अधिकारियों की निष्क्रियता, झूठे वादों की हकीकत, और समाज में फैली उदासीनता को बड़े ही प्रभावी ढंग से उजागर किया गया है। राहुल पाण्डेय का यह कथन कि "प्रशासनिक अधिकारियों ने चाहा नहीं, जनता के हालात बदल सकते थे," हमें सोचने पर मजबूर करता है कि यदि अधिकारी अपनी पूरी जिम्मेदारी और संवेदनशीलता के साथ काम करते, तो आज जनता की स्थिति कहीं बेहतर हो सकती थी। प्रशासनिक अधिकारियों का मुख्य कार्य समाज की सेवा और जनकल्याण है। उनके पास अधिकार और स