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तीसरी संतान होने पर गई महिला शिक्षक की नौकरी, मध्यप्रदेश के शिक्षकों में मचा हड़कंप लेकिन ढीमरखेड़ा में कार्रवाई से क्यों बच रहे हैं दोषी? ढीमरखेड़ा तहसील के एक बाबू पर बहुत जल्द गिरेगी तीन संतान पर गाज

 तीसरी संतान होने पर गई महिला शिक्षक की नौकरी, मध्यप्रदेश के शिक्षकों में मचा हड़कंप लेकिन ढीमरखेड़ा में कार्रवाई से क्यों बच रहे हैं दोषी? ढीमरखेड़ा तहसील के एक बाबू पर बहुत जल्द गिरेगी तीन संतान पर गाज 



ढीमरखेड़ा |  मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले से आई एक खबर ने पूरे राज्य के सरकारी शिक्षकों के बीच हड़कंप मचा दिया है। छतरपुर के धमौरा स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की महिला शिक्षक रंजीता साहू को सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने तीसरी संतान होने की बात को छिपाया था। ये घटना ना सिर्फ नियमों के उल्लंघन का प्रतीक है, बल्कि यह भी उजागर करती है कि कुछ जिलों में सख्त प्रशासनिक रवैया अपनाया जा रहा है, जबकि कुछ स्थानों पर, जैसे ढीमरखेड़ा विकासखंड में, ऐसे नियमों को पूरी तरह नज़रअंदाज किया जा रहा है। रंजीता साहू, जो कि छतरपुर जिले के धमौरा क्षेत्र में सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पदस्थ थीं, उन पर 2022 में यह आरोप लगा कि उन्होंने तीसरी संतान होने के बावजूद यह जानकारी विभाग से छुपाई और अपनी नौकरी जारी रखी। जबकि 2001 में राज्य सरकार द्वारा यह नियम लागू किया गया था कि किसी सरकारी कर्मचारी को तीसरी संतान होने के बाद सरकारी सेवा से अयोग्य घोषित किया जा सकता है।जांच के बाद, जुलाई 2023 में उन्हें आरोप पत्र जारी कर स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिया गया। लेकिन रंजीता साहू का उत्तर समाधानकारक नहीं पाया गया। जांच समिति ने पुष्टि की कि उन्होंने नियमों का उल्लंघन किया है। इस पर संयुक्त संचालक, सागर ने उनके सेवाएं समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया।

*तीसरी संतान नियम का इतिहास और उद्देश्य*

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा यह नियम जनसंख्या नियंत्रण नीति के तहत 2001 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य था जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करना और सरकारी संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करना। नियम के अनुसार, यदि किसी सरकारी कर्मचारी की तीसरी संतान का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद होता है, तो वह सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाएगा। यह नियम शिक्षा विभाग, पुलिस विभाग, पंचायत राज, स्वास्थ्य विभाग समेत सभी विभागों में लागू है। लेकिन इसके क्रियान्वयन की स्थिति एकरूप नहीं है।

*ढीमरखेड़ा में नियमों का मज़ाक?*

जहां एक ओर छतरपुर जैसे जिलों में तीसरी संतान के मामले में कड़ी कार्रवाई की जा रही है, वहीं कटनी जिले के अंतर्गत आने वाले ढीमरखेड़ा विकासखंड में प्रशासन की चुप्पी और मेहरबानी सवालों के घेरे में है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ढीमरखेड़ा में कई ऐसे शिक्षक, पंचायत सचिव, आशा कार्यकर्ता, और अन्य सरकारी कर्मचारी हैं जिनकी तीन से अधिक संतानें हैं, लेकिन फिर भी वे वर्षों से बिना किसी कार्रवाई के सेवा में बने हुए हैं। ये स्पष्ट रूप से दोहरे मापदंड की स्थिति है, जिससे ईमानदार कर्मचारी और व्यवस्था दोनों के प्रति अविश्वास पैदा हो रहा है।

*नियम पालन में दोहरापन क्यों?*

यह सवाल अत्यंत महत्वपूर्ण है कि एक ही राज्य में एक ही नियम पर अलग-अलग जिलों में अलग-अलग स्तर की सख्ती क्यों? कुछ जिलों में अधिकारी नियमों के प्रति सजग हैं, वहीं कुछ क्षेत्रों में स्थानीय राजनीति, सिफारिशें और रिश्वतखोरी व्यवस्था को पंगु बना देती है। ढीमरखेड़ा जैसे इलाकों में अक्सर सरपंच, जनपद सदस्य या अन्य स्थानीय नेता प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव डालते हैं जिससे कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली जाती है। कई बार ऐसे मामले प्रकाश में ही नहीं आ पाते, क्योंकि कोई शिकायत दर्ज नहीं करता, या जनता को नियमों की जानकारी नहीं होती।

*कर्मचारियों के दबाव के कारण नहीं हों रही कार्यवाही*

ढीमरखेड़ा में नियमों की अनदेखी कहीं न कहीं भ्रष्टाचार की बू देती है। यदि किसी सरकारी शिक्षक या कर्मचारी को तीसरी संतान होने के बावजूद बचाया जा रहा है, तो यह बिना प्रभाव या लेन-देन के संभव नहीं है। कई स्थानीय लोग यह भी आरोप लगाते हैं कि ऐसे कर्मचारी ऊपर से नीचे तक घूसखोरी के नेटवर्क में शामिल हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती । ढीमरखेड़ा में नियमों की अनदेखी केवल प्रशासनिक कमजोरी नहीं, बल्कि न्याय और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन भी है। यदि प्रदेश सरकार वास्तव में जनसंख्या नियंत्रण और ईमानदार प्रशासन की बात करती है, तो उसे ढीमरखेड़ा जैसे इलाकों में भी तुरंत सख्ती बरतनी चाहिए। जब तक प्रशासन चुने हुए तरीके से कानून लागू करता रहेगा, तब तक भ्रष्टाचार और पक्षपात की जड़ें मजबूत होती रहेंगी। अगर एक महिला शिक्षक की नौकरी तीसरी संतान के कारण जा सकती है, तो अन्य दोषियों को भी वही सजा मिलनी चाहिए नहीं तो यह संविधान के समानता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।

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