ब्राह्मण ज्ञान, त्याग, और तपस्या का जीवंत प्रतीक, ब्राह्मण होते हैं बहुत दयालु लेकिन जब बात प्रतिष्ठा की आ जाए तो बन जाते हैं बब्बर शेर
ब्राह्मण ज्ञान, त्याग, और तपस्या का जीवंत प्रतीक, ब्राह्मण होते हैं बहुत दयालु लेकिन जब बात प्रतिष्ठा की आ जाए तो बन जाते हैं बब्बर शेर
ढीमरखेड़ा | भारत एक ऐसी पवित्र भूमि है, जहाँ ऋषियों, मुनियों और विद्वानों ने ज्ञान, धर्म और संस्कृति का दीप जलाकर समस्त मानवता को दिशा दी। इस धरा पर ब्राह्मणों का स्थान सर्वोच्च रहा है। ब्राह्मण न केवल वेदों के ज्ञाता रहे हैं, बल्कि समाज के नैतिक मार्गदर्शक, गुरु और तपस्वी भी रहे हैं। ब्राह्मण कोई जाति नहीं, बल्कि वह चेतना है जो सृजन, संस्कार और सेवा में विश्वास रखती है। ब्राह्मणों की महिमा शास्त्रों, इतिहास और आधुनिक भारत के निर्माण तक फैली हुई है।
*ब्राह्मण की उत्पत्ति: ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न*
मनुस्मृति और वेदों के अनुसार, ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए हैं, जो ज्ञान और वाणी का स्रोत है। इसका तात्पर्य है कि ब्राह्मण को सृष्टि में ज्ञान, धर्म और नीति का मार्गदर्शक बनाया गया। उनका कार्य केवल यज्ञ, पूजन और संस्कार नहीं था, बल्कि समाज को सही दिशा देना, राजनीति में संतुलन बनाना, और राजा को धर्मसम्मत मार्ग पर चलाना भी था।
*ब्राह्मण की शक्ति: विचार और तपस्या*
ब्राह्मण की शक्ति उसकी बुद्धि और तपस्या में निहित होती है। परशुराम जैसे ब्राह्मण योद्धा ने जब अन्याय देखा तो न्याय की स्थापना के लिए शस्त्र उठाया। चाणक्य ने जब अपमान सहा, तो एक साधारण बालक चंद्रगुप्त को सम्राट बना दिया। ब्राह्मण की खामोशी उसके ज्ञान की गहराई होती है, और उसका क्रोध समाज में बदलाव लाता है।
*ब्राह्मण की विभूतियाँ आदर्शों की श्रखला*
सुदामा सच्ची मित्रता और त्याग का प्रतीक। निर्धन होते हुए भी आत्मगौरव नहीं छोड़ा। चाणक्य राजनीति और रणनीति के अप्रतिम गुरु, जिनकी नीतियाँ आज भी प्रबंधन की बाइबिल मानी जाती हैं। आर्यभट्ट जिनकी खोज ‘शून्य’ ने पूरी गणित की दुनिया को बदल दिया।परशुराम अन्याय के विरुद्ध खड़े ब्रह्म तेजस्वी योद्धा। शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक, जिन्होंने संपूर्ण भारत को वेदों से जोड़ा। दधीचि जिनके हड्डियों से देवताओं का अस्त्र बना, यह त्याग का चरम रूप है।
*ब्राह्मण की भूमिका वेद, विज्ञान और सेवा*
ब्राह्मणों का मूल धर्म है "सर्वे भवन्तु सुखिनः"। उन्होंने कभी भोग की आकांक्षा नहीं की। उन्होंने शिक्षा को जीवन का साधन बनाया, न कि व्यवसाय। वेदों की रचना से लेकर आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित, खगोलशास्त्र, वास्तुशास्त्र और समाजशास्त्र तक, हर क्षेत्र में ब्राह्मणों ने अविस्मरणीय योगदान दिया। चरक आयुर्वेद के जनक, जिन्होंने मानव शरीर के रहस्यों को उद्घाटित किया। पाणिनि संस्कृत व्याकरण के आचार्य, जिनका व्याकरण आज भी दुनिया की सबसे वैज्ञानिक भाषा रचना है। भास्कराचार्य और रामानुजन गणित की पहेलियों को सुलझाने वाले दिव्य मस्तिष्क।
*ब्राह्मण का आचरण जीवन शैली और आदर्श*
ब्राह्मण का जीवन सादा, पर विचारों में गहराई होती है। त्याग अपनी सुख-सुविधा को त्यागकर शिक्षा, तपस्या और समाज सेवा करना। संतुलन न तो क्रूर, न ही आलसी; कर्म और ज्ञान का समुचित समन्वय।शुचिता आहार, विचार और व्यवहार में पवित्रता। सेवा मंदिरों, पाठशालाओं, गांवों और गऊशालाओं में सेवा का भाव।
*आधुनिक भारत में ब्राह्मणों का योगदान*
हालांकि समय के साथ ब्राह्मणों की भूमिका में परिवर्तन आया, पर उनका समाज में योगदान लगातार बना रहा। स्वतंत्रता संग्राम में मंगल पाण्डेय, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे बलिदानियों ने अपनी जान दी। महर्षि दयानंद जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना कर समाज में सुधार की लहर चलाई। पंडित मदन मोहन मालवीय शिक्षा में क्रांति लाकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जिनके जन्मदिन को आज शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। सचिन तेंदुलकर खेल जगत में ब्राह्मण तेजस्विता का आधुनिक रूप।
*ब्राह्मणों के साथ भेदभाव एक साजिश*
आजादी के बाद से ब्राह्मणों के खिलाफ एक सुनियोजित साजिश चली, उन्हें उच्च जाति का दुरुपयोग करने वाला कहकर बदनाम किया गया। मगर वास्तविकता यह है कि अधिकांश ब्राह्मण साधारण जीवन जीते हैं, खेतों में मजदूरी करते हैं, पूजा-पाठ से घर चलाते हैं, पर अपने ज्ञान और संस्कार नहीं छोड़ते। उनकी पहचान उनके कर्म से है, न कि सत्ता से।
*ब्राह्मण और भारतीय संस्कृति*
भारतीय संस्कृति का आधार ही ब्राह्मण है। ऋषि परंपरा से लेकर लोक परंपरा तक, हर त्योहार, संस्कार, धार्मिक अनुष्ठान, समाज सुधार की जड़ में ब्राह्मणों का योगदान है। गायत्री मंत्र, यज्ञ, उपनयन संस्कार, संस्कृत भाषा यह सब ब्राह्मण संस्कृति की देन हैं। स्वयं से पहले समाज का हित सोचना,भोग नहीं, त्याग की भावना रखना,ज्ञान अर्जन और वितरण करना,अधर्म के विरुद्ध खड़ा होना , धर्म, नीति और न्याय का मार्गदर्शन करना ब्राह्मण कोई जातिगत अहंकार नहीं, बल्कि एक साधना है। यह वह तप है, जिसमें आत्मा को न केवल शुद्ध किया जाता है, बल्कि समाज के लिए समर्पित किया जाता है। जब ब्राह्मण निर्धन होता है तो सुदामा बनता है, जिसे श्रीकृष्ण गले लगाते हैं। जब अपमानित होता है तो चाणक्य बनता है, जो साम्राज्य की नींव रखता है। जब क्रोधित होता है तो परशुराम बनता है, जो अधर्म का नाश करता है। ब्राह्मण की महिमा को केवल सम्मान नहीं, संरक्षण की भी आवश्यकता है। आज जब समाज मूल्यों से भटक रहा है, तब ब्राह्मणों को फिर से वेद, धर्म और सेवा के पथ पर आगे आना होगा, क्योंकि यदि ब्राह्मण जाग गया तो भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा।
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