तरक्की या तन्हाई आधुनिक समाज का सबसे बड़ा सवाल
ढीमरखेड़ा | तकनीक की तरक्की ने इंसान को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है। आज हम हज़ारों मील दूर बैठे अपने प्रियजनों को देख सकते हैं, उनकी आवाज़ सुन सकते हैं, और उनके चेहरे के जज़्बात पढ़ सकते हैं। यह विज्ञान का करिश्मा है, जिसने दुनिया को एक ग्लोबल गांव बना दिया है। लेकिन क्या यह तरक्की इंसानियत के लिए सही दिशा में गई है? आज, जब हर किसी के हाथ में एक स्मार्टफोन है, सोशल मीडिया पर हर कोई जुड़ा हुआ है, तो फिर यह तन्हाई क्यों बढ़ रही है? क्यों घरों में बूढ़े माता-पिता अकेले बैठे रहते हैं, और युवा पीढ़ी मोबाइल स्क्रीन में डूबी रहती है? क्या हम सच में तरक्की कर रहे हैं, या फिर यह एक भ्रम मात्र है?
*तकनीकी विकास और मानव जीवन पर प्रभाव*
तकनीक ने हमारे जीवन को पहले से ज्यादा सुविधाजनक और आसान बना दिया है। कुछ दशक पहले, जब कोई विदेश जाता था, तो उसके घर वालों को उसकी चिट्ठी के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता था। आज, हम वीडियो कॉल के माध्यम से तुरंत जुड़ सकते हैं। यह एक अद्भुत क्रांति है।तकनीकी विकास ने शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार और संचार में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। लेकिन इसी तकनीक ने रिश्तों में एक अनदेखी दीवार भी खड़ी कर दी है। लोग अपनों से दूर होकर भी जुड़े रहते हैं, लेकिन इस जुड़ाव में वह गर्मजोशी नहीं रही, जो पहले थी।
*डिजिटल युग में बढ़ती तन्हाई*
तकनीक ने लोगों को जोड़ने का दावा किया था, लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट हो गई। लोग सोशल मीडिया पर हजारों "फ्रेंड्स" बनाते हैं, लेकिन असल जिंदगी में उनके पास कोई दोस्त नहीं होता । पहले लोग शाम को घर पर बैठकर परिवार के साथ बातें करते थे, लेकिन आज हर कोई अपने-अपने मोबाइल में व्यस्त है। एक ही घर में रहते हुए भी परिवार के सदस्य एक-दूसरे से अजनबी बन गए हैं। आधुनिक जीवनशैली ने वृद्धों को और अधिक अकेला कर दिया है। आज के युवा सोशल मीडिया पर व्यस्त हैं, लेकिन घर में बैठे माता-पिता से दो मिनट बात करने का समय नहीं निकालते। सोशल मीडिया पर लोग अपने खुशहाल जीवन की झूठी तस्वीरें दिखाते हैं, जिससे दूसरों में हीनभावना और अवसाद बढ़ रहा है। लोग वास्तविक दुनिया में अकेलेपन से जूझ रहे हैं, लेकिन ऑनलाइन दुनिया में खुद को खुश दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
*सोशल मीडिया जुड़ाव या छलावा?*
सोशल मीडिया ने लोगों को "कनेक्टेड" रखा है, लेकिन भावनात्मक रूप से "डिस्कनेक्ट" कर दिया है। आज के दौर में लोग अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने के बजाय इमोजी और स्टेटस में समेट रहे हैं। संवेदनशीलता अब केवल "इमोशनल पोस्ट" डालने तक सीमित रह गई है।लोग वीडियो कॉल पर मुस्कुराते हैं, लेकिन अपने घर में किसी के आंसू पोंछने का समय नहीं निकालते। क्या यही विकास है? जहां रिश्ते ऑनलाइन हो गए हैं और जज़्बात सिर्फ़ स्टेटस अपडेट में सिमट कर रह गए हैं?
*तकनीक और भावनात्मक दूरी*
तकनीक के आने से हमारी लाइफस्टाइल तो बदली, लेकिन क्या यह बदलाव हमें अधिक खुशहाल बना पाया? पहले लोग दुःख-सुख में अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के पास जाया करते थे, आज बस एक "व्हाट्सएप मैसेज" कर दिया जाता है। लोग अपनों के साथ रहते हुए भी अकेलापन महसूस कर रहे हैं। रिश्ते अब भावना पर नहीं, बल्कि "कितना फायदा मिलेगा" इस सोच पर टिक गए हैं। सोशल मीडिया पर लोग दिखावे के रिश्ते निभाते हैं, लेकिन असल जिंदगी में किसी के लिए समय नहीं है।
*समय की बर्बादी*
सोशल मीडिया पर घंटों बिताने के बावजूद लोग खुद को और अधिक अकेला महसूस करते हैं। स्क्रीन पर बिताया गया समय रिश्तों को मजबूत करने के बजाय उन्हें कमजोर कर रहा है।
*डिजिटल दौर में पारिवारिक मूल्यों का ह्रास*
आज के युवा डिजिटल दुनिया में इतने खो गए हैं कि उन्हें अपने माता-पिता, दादा-दादी, और रिश्तेदारों की कोई परवाह नहीं। यह विडंबना ही है कि – हम दुनिया के किसी भी कोने में मौजूद अपने दोस्त से तुरंत बात कर सकते हैं, लेकिन अपने ही घर में बैठे माता-पिता से बात करने का समय नहीं निकालते। सोशल मीडिया पर "फैमिली फर्स्ट" लिखने वाले लोग असल में अपने परिवार के लिए बिल्कुल भी उपलब्ध नहीं होते। पहले घर में त्यौहारों पर सब मिलकर उत्सव मनाते थे, आज सब अपने-अपने मोबाइल में मशगूल रहते हैं।
*तकनीक का सही उपयोग कैसे करें?*
तकनीक को दोष देना गलत होगा। असल समस्या यह है कि हम इसे कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर हम चाहें, तो तकनीक का सही उपयोग करके रिश्तों को और मजबूत बना सकते हैं।दिन में कुछ समय बिना मोबाइल के अपने परिवार के साथ बिताएं।
*सोशल मीडिया की लत से बचें* दिनभर फोन में व्यस्त रहने के बजाय, अपने आसपास के लोगों से बातचीत करें। अपने माता-पिता और दादा-दादी से रोज़ कुछ समय बात करें, उनके अनुभवों को सुनें। टेक्नोलॉजी का उपयोग करें, लेकिन यह आपकी जिंदगी पर हावी न हो।
*इंसानियत को प्राथमिकता दें*
स्टेटस अपडेट और इमोजी से ज्यादा, किसी जरूरतमंद की मदद करें। तकनीक ने हमें बहुत कुछ दिया है, लेकिन हमने उसकी आड़ में अपने रिश्तों को कमजोर कर लिया। यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसे सही तरीके से इस्तेमाल करें या खुद को डिजिटल तन्हाई में झोंक दें।
*आज समय आ गया है कि हम खुद से यह सवाल करें*
क्या वाकई हम तरक्की कर रहे हैं, या सिर्फ अकेलेपन की ओर बढ़ रहे हैं?क्या हमारा परिवार और हमारे रिश्ते मजबूत हो रहे हैं, या हम डिजिटल दुनिया में खोते जा रहे हैं? क्या हमारी संवेदनशीलता सिर्फ ऑनलाइन तक सीमित रह गई है, या हम अपने आसपास के लोगों की भावनाओं को भी समझ रहे हैं? अगर हमने समय रहते इस समस्या को नहीं समझा, तो आने वाली पीढ़ियां इंसानियत के नाम पर सिर्फ स्क्रीन देखती रह जाएंगी। तरक्की अच्छी बात है, लेकिन यह तभी सार्थक होगी जब यह इंसानियत और रिश्तों को मजबूत बनाए, न कि उन्हें खत्म करे।
आपके अख़बार ने मेरे विचारों को सम्मान दिया है ये आज की सबसे बड़ा सत्य है हम अपने परिवार और असल जीवन से कोसों दूर हो गए हैं।
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