सच लिखना आसान नहीं होता, लेकिन अगर सच को दबाया जाए, तो समाज में अंधकार फैल जाता है, मुझे किसी पद की जरूरत नहीं, लोग मेरी लेखनी से ही लाल - पीले हो जाते हैं प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय
सच लिखना आसान नहीं होता, लेकिन अगर सच को दबाया जाए, तो समाज में अंधकार फैल जाता है, मुझे किसी पद की जरूरत नहीं, लोग मेरी लेखनी से ही लाल - पीले हो जाते हैं
ढीमरखेड़ा | पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, और जब यह स्तंभ निष्पक्षता, ईमानदारी और बेबाकी से अपनी जिम्मेदारी निभाता है, तो समाज में हलचल मचती है। ऐसा ही एक नाम है राहुल पाण्डेय, जो "दैनिक ताज़ा खबर" के प्रधान संपादक के रूप में अपनी पत्रकारिता की अलग पहचान बना चुके हैं। उनकी लेखनी इतनी प्रभावशाली है कि उनकी किसी ख़बर से भ्रष्ट अधिकारी, घोटालेबाज और सत्ता के दलालों के माथे पर पसीना आ जाता है। यही वजह है कि वे कहते हैं "मुझे किसी पद की जरूरत नहीं, लोग मेरी लेखनी से ही लाल-पीले हो जाते हैं।" राहुल पाण्डेय का यह कथन केवल आत्मविश्वास नहीं, बल्कि उनके वर्षों की निडर और निर्भीक पत्रकारिता का प्रमाण भी है।वे किसी पद या मान - सम्मान के भूखे नहीं हैं, बल्कि उनकी कलम ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है।
*पत्रकारिता के प्रति समर्पण*
राहुल पाण्डेय का मानना है कि पत्रकारिता केवल खबरों का संकलन नहीं है, बल्कि यह समाज को जागरूक करने, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और भ्रष्टाचार को उजागर करने का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने अपने करियर में कई ऐसे मामलों को उजागर किया, जिससे समाज में बड़े बदलाव आए। उनकी पत्रकारिता की शैली अन्य संपादकों से अलग है। वे केवल रिपोर्टिंग तक सीमित नहीं रहते, बल्कि अपने संपादकीय के माध्यम से भी सत्ता में बैठे लोगों की नाकामी और भ्रष्टाचार को उजागर करने से पीछे नहीं हटते।
*सत्ता और प्रशासन के खिलाफ बेखौफ लेखनी*
राहुल पाण्डेय की लेखनी इतनी धारदार है कि कई बार प्रशासन और सत्ता के लोगों को असहज कर देती है। उन्होंने कई घोटालों और सरकारी लापरवाहियों को उजागर किया, जिसके कारण भ्रष्ट अफसरों और नेताओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनकी एक ख़बर से भ्रष्ट अधिकारी परेशान हो जाते हैं, और यही वजह है कि वे सत्ता के कई ताकतवर लोगों के निशाने पर भी रहते हैं। लेकिन इसके बावजूद वे निडर होकर सच को सामने लाने का कार्य करते हैं।
*पत्रकारिता में ईमानदारी और नैतिकता*
राहुल पाण्डेय का मानना है कि पत्रकारिता केवल व्यवसाय नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है। आज जब कई मीडिया संस्थान सत्ता और पूंजीपतियों के प्रभाव में आकर निष्पक्षता खो चुके हैं, तब भी "दैनिक ताज़ा खबर" अपनी निष्पक्षता और निडर पत्रकारिता के लिए जाना जाता है। उनका कहना है कि "अगर पत्रकार बिक जाए, तो जनता का भरोसा टूट जाता है।" उन्होंने हमेशा इस सिद्धांत को अपनाया और कभी भी किसी भी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं हुए। यही वजह है कि वे आज भी निर्भीक पत्रकारिता कर रहे हैं।
*पत्रकारिता में संघर्ष और चुनौतियाँ*
राहुल पाण्डेय ने अपने पत्रकारिता करियर में कई संघर्षों का सामना किया। उनकी निष्पक्ष रिपोर्टिंग और बेबाक लेखनी के कारण कई बार उन्हें धमकियों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वे कभी डरे नहीं। उनके खिलाफ कई बार झूठे मुकदमे दर्ज करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने अपने हौसले को टूटने नहीं दिया। वे कहते हैं "सच लिखना आसान नहीं होता, लेकिन अगर सच को दबाया जाए, तो समाज में अंधकार फैल जाता है।" उनकी यह सोच ही उन्हें अन्य पत्रकारों से अलग बनाती है। वे सिर्फ खबरें प्रकाशित नहीं करते, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से पत्रकारिता करते हैं।
*पत्रकारिता के माध्यम से समाज में बदलाव*
राहुल पाण्डेय का मानना है कि पत्रकारिता केवल सूचना देने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक शक्तिशाली हथियार भी है। उनकी कई रिपोर्टों के कारण भ्रष्टाचार उजागर हुआ और दोषियों पर कार्रवाई हुई। गरीबों को न्याय मिला। सरकारी योजनाओं में गड़बड़ियों को ठीक किया गया। प्रशासनिक लापरवाहियों को दूर किया गया। वे यह मानते हैं कि अगर पत्रकार अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाए, तो वह समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है।
*पत्रकारिता को लेकर उनकी सोच*
राहुल पाण्डेय पत्रकारिता को केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज सेवा मानते हैं। उनका मानना है कि "अगर पत्रकार केवल लाभ और हानि का हिसाब लगाएगा, तो वह समाज का भला नहीं कर सकता।" उन्होंने हमेशा निडरता से पत्रकारिता की और किसी भी राजनीतिक या व्यावसायिक दबाव में नहीं आए। उनकी यह सोच उन्हें एक सच्चा पत्रकार बनाती है।
*पत्रकारिता में नए पत्रकारों के लिए संदेश*
राहुल पाण्डेय नए पत्रकारों को भी यही सलाह देते हैं कि हमेशा निष्पक्ष और ईमानदार पत्रकारिता करें। किसी भी दबाव में आकर सच को न छिपाएं। जनता के मुद्दों को प्राथमिकता दें। पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं, बल्कि समाज सेवा समझें। वे यह मानते हैं कि अगर आज की युवा पीढ़ी इस सोच के साथ पत्रकारिता करे, तो मीडिया फिर से अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस पा सकता है। राहुल पाण्डेय जैसे पत्रकार विरले ही होते हैं, जो अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करते। उनका कहना कि "मुझे किसी पद की जरूरत नहीं, लोग मेरी लेखनी से ही लाल-पीले हो जाते हैं", यह दिखाता है कि वे किसी पद या पहचान के मोहताज नहीं हैं। उनकी लेखनी ही उनकी पहचान है, और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें