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कलेक्टर के भ्रष्टाचार के नौ रत्न, जो करते हैं भ्रष्टाचार और साहब तक पहुंचाते हैं पैसा, मुख्यमंत्री और राज्यपाल फोटो खिंचवाने के लिए आते हैं उनको विकास से कोई मतलब नहीं

 कलेक्टर के भ्रष्टाचार के नौ रत्न, जो करते हैं भ्रष्टाचार और साहब तक पहुंचाते हैं पैसा, मुख्यमंत्री और राज्यपाल फोटो खिंचवाने के लिए आते हैं उनको विकास से कोई मतलब नहीं




ढीमरखेड़ा |  भारत में प्रशासनिक व्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नौकरशाह होते हैं, जिनमें कलेक्टर का पद सबसे प्रभावशाली माना जाता है। कलेक्टर का कार्यालय जिले का प्रमुख प्रशासनिक केंद्र होता है, जहां योजनाओं का क्रियान्वयन, विकास कार्यों की निगरानी, कानून-व्यवस्था की देखरेख और विभिन्न सरकारी विभागों का समन्वय किया जाता है। लेकिन जब कलेक्टर ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाए, तो पूरा प्रशासनिक तंत्र ध्वस्त होने लगता है। कलेक्टर अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए सीधे तौर पर भ्रष्टाचार नहीं करता, बल्कि उसके पास एक खास टीम होती है, जिसे "भ्रष्टाचार के नौ रत्न" कहा जा सकता है। ये नौ रत्न विभिन्न विभागों और कार्यों में लगे होते हैं, जो सरकारी योजनाओं के धन का बंदरबांट कर साहब तक पैसा पहुंचाते हैं। ये नौ रत्न अलग-अलग पदों पर होते हैं, जिनकी मिलीभगत से पूरा भ्रष्टाचार का खेल चलता है।

 *लोक निर्माण विभाग (PWD) का इंजीनियर ठेकेदारों से कमीशन लेने वाला*

लोक निर्माण विभाग (PWD) किसी भी जिले में सबसे अधिक बजट खर्च करने वाला विभाग होता है। इस विभाग का कार्य सड़कें, पुल, भवन, सरकारी दफ्तरों और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होता है।कलेक्टर का पहला रत्न PWD का इंजीनियर होता है, जो ठेकेदारों से कमीशन वसूलने का काम करता है।ठेकेदारों को काम दिलाने के बदले उनसे 10% से 20% तक कमीशन लिया जाता है। घटिया सामग्री का इस्तेमाल कर पैसे बचाए जाते हैं और ऊपर तक हिस्सा पहुंचाया जाता हैं सड़क निर्माण, सरकारी भवनों की मरम्मत और अन्य निर्माण कार्यों में जमकर लूट की जाती है। PWD इंजीनियर की सेटिंग से कलेक्टर को हर महीने लाखों रुपये मिलते हैं।

*खनन विभाग का अधिकारी रेत, गिट्टी और पत्थर माफियाओं का संरक्षक*

खनन माफिया से मिलीभगत कर जिले में अवैध रेत, गिट्टी और पत्थर का कारोबार जमकर चलता है। जिले का खनन अधिकारी कलेक्टर का दूसरा बड़ा रत्न होता है, जो अवैध खनन से मोटी रकम वसूलता है। बिना परमिट और नियमों के विपरीत खनन कराकर मोटी रकम वसूली जाती है। ट्रकों को बिना रॉयल्टी रसीद के ही खनिज ले जाने दिया जाता है। पुलिस, राजस्व विभाग और पर्यावरण विभाग की मिलीभगत से यह अवैध कारोबार चलता रहता है। इस गोरखधंधे का एक बड़ा हिस्सा कलेक्टर तक पहुंचाया जाता है।

 *जिला आपूर्ति अधिकारी, राशन घोटाले का मास्टरमाइंड*

राशन वितरण में भ्रष्टाचार आम बात है। जिले का आपूर्ति अधिकारी, जो कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का प्रमुख होता है, कलेक्टर का तीसरा रत्न होता है। गरीबों के हक का राशन खुले बाजार में बेच दिया जाता है। झूठे आंकड़े दिखाकर लाखों टन अनाज की हेराफेरी की जाती है। राशन दुकानदारों से कमीशन लेकर अनाज की मात्रा और गुणवत्ता में हेरफेर किया जाता है। यह घोटाला कलेक्टर की सहमति के बिना संभव नहीं होता।

*तहसीलदार और पटवारी जमीनों का खेल करने वाले अव्वल*

भूमि मामलों में भ्रष्टाचार सबसे अधिक होता है। तहसीलदार और पटवारी मिलकर फर्जी दस्तावेज बनाते हैं, अवैध कॉलोनियां पास करते हैं और किसानों की जमीनें हड़पने में भूमाफियाओं की मदद करते हैं।जमीन के रिकॉर्ड में हेरफेर कर सरकारी जमीनों को प्राइवेट व्यक्तियों के नाम चढ़ा दिया जाता है। किसान को उसकी ही जमीन से बेदखल करने के लिए झूठे कागजात तैयार किए जाते हैं। भू-माफियाओं से मोटी रकम वसूलकर अवैध कॉलोनियों को वैध किया जाता है। इसका एक बड़ा हिस्सा कलेक्टर तक पहुंचता है, ताकि मामला रफा-दफा हो जाए।

 *शिक्षा विभाग का अफसर, घोटालों का चैंपियन*

शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार का खेल शिक्षकों की भर्ती से लेकर स्कूलों में सुविधाएं देने तक फैला हुआ है। जिला शिक्षा अधिकारी कलेक्टर का पांचवां रत्न होता है। फर्जी प्रमाणपत्रों पर शिक्षकों की भर्ती कराई जाती है। सरकारी स्कूलों में सुविधाओं के नाम पर फर्जी बिल बनाकर करोड़ों का घोटाला किया जाता है। मध्याह्न भोजन योजना (मिड-डे मील) में जमकर घपला किया जाता है।कलेक्टर की सहमति के बिना यह भ्रष्टाचार संभव नहीं होता।

*स्वास्थ्य विभाग का अधिकारी – दवाओं और चिकित्सा उपकरणों में गड़बड़ी करने वाला*

सरकारी अस्पतालों में दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की खरीद में सबसे बड़ा घोटाला होता है। यह खेल मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) के हाथ में होता है। दवाओं की खरीद में कमीशनखोरी होती है। अस्पतालों में डॉक्टरों की गैरहाजिरी पर कोई कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि रिश्वत का खेल चलता है। मरीजों के लिए आई सुविधाओं को निजी अस्पतालों में ट्रांसफर कर दिया जाता है। सरकारी योजनाओं का पैसा फर्जी बिलों के जरिए निकाला जाता है।

 *पुलिस अधीक्षक का खास इंस्पेक्टर, अवैध धंधों का संरक्षक कलेक्टर का सातवां रत्न पुलिस*

 यह आमतौर पर कोई प्रभावशाली इंस्पेक्टर या थाना प्रभारी होता है, जो जिले में अवैध धंधों से पैसा कमाने का काम करता है। जुआ, शराब, सट्टा और देह व्यापार से महीने का मोटा कलेक्शन होता है। बड़े अपराधियों को छोड़ने के लिए मोटी रकम वसूली जाती है।ट्रांसफर-पोस्टिंग में भ्रष्टाचार होता है।

यह पैसा कलेक्टर तक पहुंचाया जाता है।

*नगर निगम आयुक्त विकास योजनाओं का पैसा हड़पने वाला*

नगर निगम के ठेकेदारों से कमीशन लेकर काम पास कराना, सफाई व्यवस्था में घोटाले करना, अवैध निर्माणों को संरक्षण देना, ये सब नगर निगम आयुक्त की जिम्मेदारी होती है। शहर की सफाई व्यवस्था में बड़ा घोटाला होता है। ठेकेदारों से कमीशन लिया जाता है। अवैध कॉलोनियों को वैध करने के लिए पैसे लिए जाते हैं।

*आबकारी अधिकारी, शराब माफियाओं का संरक्षक*

शराब ठेकों की सेटिंग, अवैध शराब के कारोबार को बढ़ावा देना और एक्साइज ड्यूटी में गड़बड़ी करना आबकारी अधिकारी की विशेषता होती है। अवैध शराब को संरक्षण दिया जाता है। शराब ठेकेदारों से हर महीने मोटी रकम वसूली जाती है। नकली शराब के कारोबार को बढ़ावा दिया जाता है।

 *कलेक्टर ही असली किंगपिन?*

इन नौ रत्नों के जरिए कलेक्टर पूरे जिले में भ्रष्टाचार का नेटवर्क चलाता है। यह पैसा ऊपर तक पहुंचता है, जिससे पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता है। जनता बेबस होती है, विकास कार्य ठप होते हैं और ईमानदार अधिकारी किनारे कर दिए जाते हैं। जब तक इस नेटवर्क को तोड़ा नहीं जाता, तब तक भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा।

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