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सिस्टम में भ्रष्टाचार के मकड़ जाल से मिले मुक्ति पारदर्शी सिस्टम को कड़ाई से लागू करने की जरूरत , ताकि लोग दफ्तरों के चक्कर से बचें और घूसखोरों के चंगुल में नहीं फंसें

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कटनी |  मध्यप्रदेश में इन दिनों रिश्वतखोरी के मामले बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त की टीमों ने एक ही दिन में दर्जनभर से ज्यादा शिकायतों पर घूसखोरों को रंगेहाथों दबोचा। प्रदेश के हर हिस्से से रिश्वतखोर ट्रैप में पकड़े गए हैं। यह दर्शाता है कि रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का घुन पूरे प्रदेश को खा रहा है। यह बहुत गहरे घुस गया है, जिसे बाहर निकालना अत्यंत आवश्यक है। घूसखोरी की घटनाएं सिस्टम में भ्रष्टाचार की गहरी जमी जड़ों को उजागर करती हैं। देखा जाए तो सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के तमाम दावे धरे रह गए हैं, और खोखले भी साबित हो गए हैं। दूसरी ओर जो पकड़े जा रहे हैं क्या वही गुनहगार हैं या भ्रष्टाचार की कोई चेन काम कर रही है? इस सवाल का जवाब कौन देगा? जो पकड़ा गया वह तो चोर साबित हो गया, लेकिन उनका क्या जो तमाम साठगांठ और वारा-न्यारा किए जा रहे हैं। वे तो खुद को ईमानदार साबित किए हुए बैठे होंगे। इसका जिक्रयहां इसलिए भी जरूरी है क्योंकि पिछले दिनों रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़े गए एक पुलिसकर्मी ने ऊपर के अधिकारियों तक घूस की रकम पहुंचाने की बात कबूल की थी। वे अधिकारी बेनकाब नहीं किए गए। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि एक तरफ तो सिस्टम के जिम्मेदार डिजिटल लेन-देन के जरिए पारदर्शिता का दावा करते नहीं थकते, दूसरी ओर जिस तरह दिन पर दिन घूसखोरी के मामले बढ़ते जा रहे हैं उनसे तो लगता है कि डिजिटल व्यवस्था महज दिखावा है। हम देखते भी आए हैं कि दफ्तरों में वर्षों से लालफीताशाही का बोलबाला है। उसमें बदलाव की जब-जब कोशिश हुई है, उसका मौन और मुखर दोनों तरीके से कर्मचारियों ने विरोध दर्ज कराया। ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था कभी नसीब भी होगी? इन हालात में सिस्टम में गहरी जड़ें जमाए भ्रष्टाचार बेलगाम था, है और रहेगा यह धरणा सी बन गई है। इसे समाज और देशहित में तोड़ना होगा। उच्चाधिकारी खुद पर दबाव महूसस करें कि डिजिटल सिस्टम को भेद नहीं पाएं। पारदर्शी सिस्टम को कड़ाई से लागू करने की जरूरत है, ताकि आम आदमी दफ्तरों के चक्कर से मुक्ति पा सके और घूसखोरों के चंगुल से भी बच सके।

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