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छुट्टी के दिनों में भी फीस वसूलते प्राइवेट स्कूल, वाहन का भी लेते हैं पैसा संचालक संदेह के घेरे में ढीमरखेड़ा के प्राइवेट स्कूल अभिभावकों को पढ़ाई के नाम पर रुला रहे खून के आंसू होना चाहिए जांच

 छुट्टी के दिनों में भी फीस वसूलते प्राइवेट स्कूल, वाहन का भी लेते हैं पैसा संचालक संदेह के घेरे में ढीमरखेड़ा के प्राइवेट स्कूल अभिभावकों को पढ़ाई के नाम पर रुला रहे खून के आंसू होना चाहिए जांच 



ढीमरखेड़ा |  शिक्षा का मूल उद्देश्य ज्ञान का विस्तार करना होता है, लेकिन वर्तमान समय में यह केवल एक व्यवसाय बनकर रह गया है। प्राइवेट स्कूलों द्वारा शिक्षा के नाम पर अभिभावकों से अनुचित शुल्क वसूली का मामला आए दिन चर्चा में रहता है। खासकर तब, जब स्कूलों में छुट्टियाँ होने के बावजूद स्कूल प्रशासन पूरी फीस और वाहन शुल्क की मांग करता है। यह स्थिति अभिभावकों के लिए अत्यंत परेशान करने वाली बन जाती है। सवाल यह उठता है कि जब बच्चों की पढ़ाई नहीं हो रही, स्कूल की सेवाएँ नहीं ली जा रही हैं, तो अभिभावकों को फीस और वाहन शुल्क क्यों देना चाहिए? यह समस्या अकेले किसी एक शहर या राज्य की नहीं, बल्कि पूरे देश में देखने को मिलती है। जब स्कूल बंद रहते हैं, तो वह कौन-सी सेवा प्रदान की जा रही है जिसके लिए फीस ली जा रही है? ऐसा लगता है कि निजी स्कूलों के संचालकों के लिए शिक्षा सिर्फ एक व्यवसाय बन गया है, जिसमें मुनाफा कमाने के लिए हर संभव तरीका अपनाया जाता है। इस पूरी स्थिति में सरकारी अधिकारी और शिक्षा विभाग भी मौन धारण किए हुए हैं, जिससे अभिभावकों की परेशानी और बढ़ जाती है।

*स्कूलों में मनमानी फीस वसूली अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ*

छुट्टियों के दिनों में भी स्कूल द्वारा पूर्ण फीस वसूलने से अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव बढ़ जाता है। यह समस्या विशेष रूप से उन मध्यम वर्गीय और निम्न वर्गीय परिवारों के लिए अधिक चिंताजनक बन जाती है, जो अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए पहले से ही कठिनाई झेल रहे होते हैं।जब स्कूल बंद रहता है और बच्चे स्कूल नहीं जाते, तो फिर वाहन शुल्क क्यों लिया जाता है? अधिकतर स्कूल संचालक यह तर्क देते हैं कि ड्राइवरों की सैलरी और बसों के रखरखाव के लिए यह शुल्क लिया जाता है। लेकिन क्या यह उचित है कि जो सेवा दी ही नहीं गई, उसका पैसा लिया जाए?स्कूलों में एडमिशन के समय भारी भरकम वार्षिक शुल्क लिया जाता है, जिसमें लाइब्रेरी फीस, खेल-कूद फीस, लैब फीस आदि शामिल होते हैं। लेकिन जब स्कूल कई महीनों तक बंद रहता है, तब यह सेवाएँ छात्रों को नहीं मिलतीं। इसके बावजूद स्कूल संचालक इन शुल्कों को पूरी तरह वसूलते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान जब स्कूल बंद थे, तब ऑनलाइन कक्षाएँ संचालित की गईं। हालांकि, अब जब सामान्य स्थिति आ चुकी है, फिर भी कई स्कूल प्रशासन इसी बहाने पूरी फीस वसूलने में लगे हुए हैं।

*शिक्षा विभाग की उदासीनता*

निजी स्कूलों की इन मनमानियों को रोकने के लिए शिक्षा विभाग को कड़े कदम उठाने चाहिए, लेकिन अफसोस की बात है कि अधिकतर अधिकारी इस मामले में चुप्पी साधे रहते हैं। कई मामलों में यह भी देखने को मिला है कि शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से स्कूलों की यह लूट जारी रहती है।

 *सरकारी नियमों को सख्ती से लागू करना*

शिक्षा विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूल केवल उन्हीं सेवाओं के लिए शुल्क वसूलें, जिनका उपयोग छात्र कर रहे हैं। यदि स्कूल बंद हैं, तो फीस नहीं ली जानी चाहिए।

*अभिभावकों की शिकायतों का निवारण*

प्रत्येक जिले में शिक्षा विभाग को एक हेल्पलाइन शुरू करनी चाहिए, जहाँ अभिभावक अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें। इन शिकायतों की जांच कर उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।यह भी आवश्यक है कि निजी स्कूलों की आय-व्यय का नियमित ऑडिट किया जाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि वे किस आधार पर अतिरिक्त शुल्क वसूल रहे हैं।

 *स्कूल संचालकों पर सख्त कार्रवाई हो*

यदि कोई स्कूल अवैध रूप से शुल्क वसूलता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नियमों का पालन करने वाले स्कूलों को ही मान्यता मिले। अभिभावकों को भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए। वे एकजुट होकर स्कूल प्रशासन के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं और कानूनी सहायता भी ले सकते हैं।

*अभिभावकों की मजबूरी बनती जा रही है शिक्षा*

शिक्षा के क्षेत्र में निजी स्कूलों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, और वे मनमानी तरीके से फीस वसूल रहे हैं। सरकारी स्कूलों की हालत भी अच्छी नहीं है, जिसके कारण अधिकतर अभिभावक मजबूरी में निजी स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला करवाते हैं। इसका फायदा उठाकर स्कूल संचालक अभिभावकों को आर्थिक रूप से लूट रहे हैं।

 *शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं, सुधार आवश्यक*

शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान देना होना चाहिए, न कि केवल पैसा कमाने का जरिया बनना चाहिए। यदि निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक नहीं लगाई गई, तो आने वाले समय में शिक्षा केवल अमीरों तक सीमित रह जाएगी और गरीब व मध्यम वर्ग के बच्चों के लिए यह एक सपना बनकर रह जाएगी। सरकार, शिक्षा विभाग, अभिभावक संघ और सामाजिक संगठनों को इस विषय में गंभीरता से विचार करना चाहिए और निजी स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। जब तक अभिभावक संगठित होकर इस समस्या के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे, तब तक स्कूलों की यह लूट जारी रहेगी।इसलिए आवश्यक है कि इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाया जाए और सरकार से यह मांग की जाए कि स्कूलों में फीस वसूली के नियमों को पारदर्शी बनाया जाए। केवल तभी शिक्षा सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध हो सकेगी और निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

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