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बाढ़ आपदा का नहीं हुआ भुगतान, जंग खा रही फाइलें, हताश आपूर्तिकर्ता , ढीमरखेड़ा जनपद के अनेकों ग्रामों का नहीं हुआ भुगतान

 बाढ़ आपदा का नहीं हुआ भुगतान, जंग खा रही फाइलें, हताश आपूर्तिकर्ता , ढीमरखेड़ा जनपद के अनेकों ग्रामों का नहीं हुआ भुगतान 



ढीमरखेड़ा |  बाढ़ आपदा एक प्राकृतिक संकट है, जिसमें प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए प्रशासन और ग्राम पंचायत स्तर पर कई प्रयास किए जाते हैं। लेकिन जब राहत कार्यों में शामिल आपूर्तिकर्ताओं को उनका भुगतान समय पर नहीं मिलता, तो समस्या और गंभीर हो जाती है। यही हालात इस समय कई गांवों में देखने को मिल रही हैं, जहां बाढ़ राहत के लिए सामान उपलब्ध कराने वाले व्यापारी और आपूर्तिकर्ता महीनों से भुगतान के इंतजार में दर-दर भटक रहे हैं। सरपंच और सचिव खुद असमंजस में हैं कि भुगतान की राशि कहां से लाएं, क्योंकि उनकी ओर से दी गई फाइलें संबंधित विभागों में धूल खा रही हैं।

*अब कभी ज़रूरत में भी समान नहीं देगे दुकानदार*

जब बाढ़ आई, तो ग्राम पंचायतों के सरपंच और सचिवों ने राहत कार्यों को जल्द से जल्द अंजाम देने के लिए स्थानीय दुकानदारों और आपूर्तिकर्ताओं से जरूरी सामान खरीदा। इनमें खाद्य सामग्री, तिरपाल, दवाईयां, जल शुद्धिकरण की दवाएं, कपड़े और अन्य राहत सामग्री शामिल थी। आपूर्तिकर्ताओं ने उम्मीद के साथ यह सामग्री दी कि प्रशासन जल्द ही उनके पैसे का भुगतान करेगा। लेकिन अब जब आपदा के कई महीने बीत चुके हैं, तो ये व्यापारी बार-बार सरपंच और सचिवों के चक्कर लगा रहे हैं। दूसरी ओर, सरपंच और सचिव भी असहाय हैं क्योंकि भुगतान की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ रही है। बिजली विभाग, आपूर्ति विभाग और राजस्व विभाग में फंसी फाइलें जिन पंचायतों में बाढ़ के दौरान आपूर्ति की गई थी, वहां सरपंच और सचिवों ने तुरंत भुगतान के लिए प्रस्ताव बनाकर राजस्व विभाग को भेजा। लेकिन अब वे फाइलें विभिन्न विभागों में इधर-उधर अटकी हुई हैं।

*कई आपूर्तिकर्ता आर्थिक तंगी से जूझ रहे*

राहत कार्यों में योगदान देने वाले छोटे दुकानदार और आपूर्तिकर्ता अब गंभीर आर्थिक संकट में हैं। उन्होंने अपनी जेब से पैसा लगाकर राहत सामग्री उपलब्ध कराई थी, लेकिन अब जब उनका पैसा वापस नहीं मिल रहा, तो वे उधार के बोझ तले दबते जा रहे हैं। कुछ व्यापारी ऐसे हैं, जिन्होंने अपने माल की खरीद के लिए कर्ज लिया था। अब वे साहूकारों और बैंकों के चक्कर काट रहे हैं। कई दुकानदारों को मजबूरन अपनी दुकान बंद करनी पड़ी क्योंकि वे नए स्टॉक के लिए निवेश नहीं कर सके। कुछ छोटे कारोबारी अपने बच्चों की फीस और घर के खर्च तक नहीं निकाल पा रहे हैं।

*उच्च अधिकारियों के ऑफिस के चक्कर लगा - लगाकर हों रहे परेशान*

गांव के सरपंच और सचिव भी इस मामले में असहाय महसूस कर रहे हैं। उन्हें आए दिन आपूर्तिकर्ताओं के फोन कॉल और व्यक्तिगत मुलाकातों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन वे स्वयं इस स्थिति से निकलने का कोई रास्ता नहीं देख पा रहे हैं। कई पंचायत सचिवों का कहना है कि वे बार-बार जिला प्रशासन के कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन मिल रहा है। कुछ सरपंचों ने जिलाधीश और संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन भी सौंपा है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। कई पंचायतों में इस मुद्दे पर ग्राम सभा की बैठकें हो रही हैं, जहां लोगों में गुस्सा साफ झलक रहा है। राज्य सरकार से राहत कार्यों के लिए पर्याप्त बजट नहीं मिला, जिसके कारण भुगतान रुका हुआ है।भुगतान प्रक्रिया कई स्तरों से होकर गुजरती है, इसलिए इसमें समय लग रहा है। कुछ जगहों पर राहत सामग्री की आपूर्ति में अनियमितताओं की शिकायतें आई हैं, जिनकी जांच चल रही है। हालांकि, इन सफाइयों से उन आपूर्तिकर्ताओं की समस्या का समाधान नहीं हो रहा, जो अब तक अपना भुगतान पाने की उम्मीद में बैठे हैं। राज्य सरकार को विशेष राहत पैकेज जारी करना चाहिए, ताकि प्रभावित आपूर्तिकर्ताओं का भुगतान जल्द किया जा सके। जिला स्तर पर एक आपातकालीन समिति बने ,जो पंचायत स्तर पर हुए लेन-देन की समीक्षा कर तत्काल भुगतान सुनिश्चित करे। सरपंचों और सचिवों को अस्थायी राहत कोष मिले ताकि वे प्राथमिक स्तर पर भुगतान कर सकें और बाद में सरकार से धन प्राप्त कर सकें। संबंधित विभागों को निर्देश दिए जाएं कि वे लंबित फाइलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाएं। बाढ़ राहत कार्यों में भाग लेने वाले व्यापारी और आपूर्तिकर्ता आज हताश और परेशान हैं। उन्होंने संकट के समय मदद की थी, लेकिन अब जब उनका भुगतान नहीं हो रहा, तो वे आर्थिक तंगी में आ गए हैं। पंचायत स्तर के सरपंच और सचिव भी असमंजस में हैं कि वे इन्हें क्या जवाब दें, क्योंकि उनकी फाइलें विभागों में धूल खा रही हैं। यदि प्रशासन जल्द कार्रवाई नहीं करता, तो यह मामला बड़ा आंदोलन का रूप ले सकता है। व्यापारी और आपूर्तिकर्ता सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं, जिससे प्रशासन की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। इसलिए, सरकार और प्रशासन को इस समस्या का समाधान तुरंत निकालना चाहिए, ताकि उन लोगों को उनका हक मिल सके, जिन्होंने आपदा के समय अपनी जिम्मेदारी निभाई थी।

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