कलयुग की विडंबना, झूठ की ऊँचाई और सत्य की नीचाई
ढीमरखेड़ा | भारतीय संस्कृति और दर्शन में चार युगों का वर्णन किया गया है, सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। इनमें कलयुग को सबसे अधिक पतित युग माना गया है, जहाँ नैतिकता, सत्य और धर्म का ह्रास होता है। हमारे ग्रंथों में इसे झूठ, कपट, छल और अधर्म के बढ़ते प्रभाव का युग बताया गया है। इस युग की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि "जो झूठा सो ऊंचा होगा, सच वाला ही नीचा होगा।" यानी, जो व्यक्ति छल-कपट, धोखाधड़ी और असत्य के मार्ग पर चलेगा, उसे समाज में सम्मान, धन, और सफलता मिलेगी, जबकि सत्यनिष्ठ, ईमानदार और धर्मपरायण व्यक्ति संघर्ष करते रह जाएंगे।
*कलयुग की सच्चाई झूठ की जय-जयकार*
आज के समाज को देखें तो यह पंक्तियाँ बिल्कुल सटीक बैठती हैं—
"करेंगा जो जितनी भी बुराई, उसी की होगी जग में बड़ाई।" यानी, जो लोग भ्रष्टाचार, अपराध और अनैतिक कार्यों में संलिप्त हैं, वे ही समाज में ऊँचे पदों पर आसीन हैं। राजनीति से लेकर व्यापार और शिक्षा से लेकर धर्म तक, हर क्षेत्र में छल-कपट और धोखाधड़ी करने वालों को ही सफलता मिल रही है।
*राजनीति में झूठ का बोलबाला*
आज राजनीति का क्षेत्र झूठ और छल-कपट का सबसे बड़ा उदाहरण है। जो नेता जनता से बड़े-बड़े वादे करता है, वह चुनाव जीत जाता है, लेकिन चुनाव के बाद जनता को भूल जाता है। सच्चे और ईमानदार नेता को या तो दबा दिया जाता है या उसका राजनीतिक जीवन समाप्त कर दिया जाता है। कलयुग में ईमानदारी से राजनीति करना मूर्खता मानी जाती है।
*व्यापार और कॉर्पोरेट जगत में धोखा ही सफलता का मंत्र*
व्यापार और कॉर्पोरेट सेक्टर में भी यही स्थिति है। जो व्यापारी ग्राहकों को ठगता है, मिलावट करता है, अधिक मुनाफा कमाने के लिए अनैतिक साधनों का उपयोग करता है, वही सबसे सफल व्यापारी बन जाता है। दूसरी ओर, जो व्यापारी ईमानदारी से व्यापार करता है, वह संघर्ष करता रहता है और अक्सर असफल हो जाता है।
*शिक्षा क्षेत्र में भी असत्य की विजय*
आजकल शिक्षा का क्षेत्र भी पूरी तरह व्यावसायिक हो चुका है। कोचिंग संस्थानों और निजी स्कूलों में बच्चों को अधिक फीस देने वालों को प्राथमिकता दी जाती है। वहीं, गरीब और प्रतिभाशाली बच्चों के लिए अवसर सीमित होते जा रहे हैं। योग्यता से अधिक पैसा और सिफारिश सफलता का पैमाना बन गए हैं। कलयुग में धर्म भी व्यापार बन गया है। कई धार्मिक गुरु और संतों ने धर्म को कमाई का साधन बना लिया है। जो व्यक्ति धर्म को बाजार की तरह चलाना जानता है, वह बड़े-बड़े भक्तों और अनुयायियों से घिरा रहता है। लेकिन जो सच्चा संत है, जो निष्काम सेवा करता है, उसे कोई पूछता भी नहीं।
*सच्चाई के मार्ग पर चलने वालों की दुर्दशा*
इस कलयुग में जो व्यक्ति ईमानदार, सत्यवादी और धर्मपरायण होता है, उसकी कोई कद्र नहीं करता। ईमानदार अधिकारी को झूठे मामलों में फँसाया जाता है, सत्यवादी व्यक्ति को कमजोर समझा जाता है, और धर्मपरायण व्यक्ति को पिछड़ा हुआ कहा जाता है। जो अधिकारी बिना रिश्वत के काम करता है, वह या तो सस्पेंड कर दिया जाता है या फिर उसका ट्रांसफर कर दिया जाता है। भ्रष्ट अधिकारी सत्ता के करीब रहता है और ऊँचे पदों पर पहुँच जाता है। जो व्यक्ति परिश्रम करके रोजी-रोटी कमाता है, वह जीवनभर संघर्ष करता रहता है, जबकि रिश्वतखोर, कालाबाजारी करने वाला और टैक्स चोरी करने वाला व्यक्ति ऐशो-आराम की जिंदगी जीता है।
*सत्यनिष्ठ पत्रकारों पर अत्याचार*
आज के समय में सच्चाई लिखने वाले पत्रकारों को धमकाया जाता है, मारा जाता है, और कई बार उनकी हत्या भी कर दी जाती है। मीडिया में वही पत्रकार सफल होता है, जो सत्ता और धनपतियों के पक्ष में खबरें दिखाता है। समाज में अब अच्छाई और बुराई का मापदंड ही बदल गया है। पहले जो लोग नैतिक मूल्यों का पालन करते थे, उन्हें सम्मान मिलता था, लेकिन अब अनैतिक कार्य करने वालों को ज्यादा इज्जत दी जाती है। आज रिश्वतखोरी इतनी सामान्य हो गई है कि लोग इसे बुरा मानने के बजाय इसे सफलता का हिस्सा मानने लगे हैं। कलयुग में कई अपराधी समाज के प्रतिष्ठित लोग बन चुके हैं। हत्या, बलात्कार, घोटाले और भ्रष्टाचार करने वाले लोग नेता और बिजनेसमैन बन जाते हैं। कलयुग में स्वार्थ ही सबसे बड़ा धर्म बन गया है। लोग अब दूसरों की मदद करने की बजाय अपने स्वार्थ को पहले रखते हैं। मानवीय संवेदनाएँ मरती जा रही हैं।
*क्या इस स्थिति से बाहर निकला जा सकता है?*
यद्यपि कलयुग में सत्य और धर्म का ह्रास हो रहा है, फिर भी यह पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। समाज में आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो सच्चाई, ईमानदारी और धर्म के मार्ग पर चलने का साहस रखते हैं। हमें पहले खुद को सुधारना होगा और नैतिकता को अपने जीवन में अपनाना होगा। यदि हर व्यक्ति अपने स्तर पर सही कार्य करने का संकल्प ले, तो धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन आ सकता है। अगली पीढ़ी को सच्चाई और ईमानदारी का महत्व सिखाना आवश्यक है। यदि हम बच्चों को यह सिखाएँ कि सफलता केवल धन और पद में नहीं, बल्कि नैतिकता में भी है, तो समाज में सुधार आ सकता है।
*भ्रष्टाचार और अनैतिकता के खिलाफ आवाज उठाना*
हमें उन लोगों का समर्थन करना चाहिए जो सच्चाई के लिए लड़ रहे हैं। यदि हम झूठे और भ्रष्ट लोगों का समर्थन करना बंद कर दें, तो धीरे-धीरे सत्य और ईमानदारी को फिर से सम्मान मिलने लगेगा। कलयुग की यह विडंबना है कि यहाँ "जो झूठा सो ऊंचा होगा, सच वाला ही नीचा होगा।" लेकिन यह स्थिति स्थायी नहीं हो सकती। सच्चाई कभी न कभी अपने अस्तित्व को पुनः स्थापित करेगी। बुराई चाहे जितनी भी बढ़ जाए, अंततः सत्य की विजय अवश्य होगी। बस, आवश्यकता इस बात की है कि हम धैर्य और साहस के साथ सत्य के मार्ग पर डटे रहें और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहें।
बिल्कुल सत्य है यही सही है
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