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कोठी में राज्यपाल मंगुभाई पटैल का ऐसा स्वागत करने को प्रशासनिक अधिकारी तैयार हैं जैसे स्वर्ग से भगवान उतर रहे हैं इतना तो प्रशासनिक अधिकारी कभी विपत्ति में कोई होता हैं तो औचक निरीक्षण नहीं करते हैं

 कोठी में राज्यपाल मंगुभाई पटैल का ऐसा स्वागत करने को प्रशासनिक अधिकारी तैयार हैं जैसे स्वर्ग से भगवान उतर रहे हैं इतना तो प्रशासनिक अधिकारी कभी विपत्ति में कोई होता हैं तो औचक निरीक्षण नहीं करते हैं



ढीमरखेड़ा |  मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल जब कोठी क्षेत्र में आगमन करने वाले हैं, तो प्रशासनिक अधिकारी और स्थानीय प्रशासन इस आयोजन को ऐतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो स्वयं भगवान स्वर्ग से उतर रहे हों। चारों ओर साफ-सफाई, रंग-रोगन, स्वागत द्वारों का निर्माण और अधिकारियों की भागदौड़ देखने लायक है। लेकिन यही अधिकारी तब क्यों नहीं सक्रिय होते जब कोई आम आदमी संकट में होता है? जब किसी गरीब के घर की छत गिर जाती है, जब किसी किसान की फसल बर्बाद हो जाती है, जब कोई भूखा इंसान प्रशासन के दरवाजे पर मदद की गुहार लगाता है, तब ये अधिकारी अपनी कुर्सियों से हिलते तक नहीं। प्रशासनिक अधिकारी किस तरह से अपनी प्राथमिकताओं को तय करते हैं। जब आम जनता किसी आपदा या विपत्ति में होती है, तो प्रशासनिक अधिकारी अक्सर मौके पर देर से पहुंचते हैं, निरीक्षण में सुस्ती दिखाते हैं, और कार्रवाई में लापरवाही बरतते हैं। लेकिन जब कोई वीआईपी दौरा होता है, खासकर राज्यपाल या कोई बड़ा मंत्री आने वाला होता है, तो पूरा प्रशासन सजग हो जाता है। सड़कें चकाचक हो जाती हैं, पूरे इलाके की सफाई हो जाती है, और ऐसा माहौल बनाया जाता है जैसे कोई अवतार आ रहा हो। यह दोहरा मापदंड इस बात को दर्शाता है कि प्रशासनिक तंत्र जनता की सेवा से ज्यादा अपने उच्चाधिकारियों को खुश करने में लगा रहता है। किसी गांव में जब कोई गरीब किसान या बाढ़ पीड़ित सहायता के लिए गुहार लगाता है, तो फाइलें महीनों तक धूल खाती रहती हैं। लेकिन जब कोई बड़ा अधिकारी आने वाला होता है, तो अचानक हर सरकारी महकमा सक्रिय हो जाता है।ऐसा क्यों होता है? इसका सीधा जवाब है, प्रशासनिक अधिकारियों की जवाबदेही आम जनता के प्रति नहीं, बल्कि अपने उच्च अधिकारियों और राजनेताओं के प्रति होती है। वे उन्हीं की खुशामद में लगे रहते हैं क्योंकि उनकी पदोन्नति और स्थानांतरण उन्हीं पर निर्भर करता है। अगर यही सक्रियता और तत्परता आम जनता की समस्याओं को हल करने में दिखाई जाए, तो स्थिति काफी बेहतर हो सकती है।

*प्रशासनिक अधिकारियों की प्राथमिकताएँ जनता या वीआईपी?*

यह सवाल उठता है कि आखिर प्रशासन की प्राथमिकता क्या है? क्या उनका कर्तव्य सिर्फ वीआईपी के स्वागत तक सीमित है, या फिर उन्हें जनता की समस्याओं का समाधान भी करना चाहिए? राज्यपाल का दौरा एक सरकारी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन जिस प्रकार प्रशासन इसे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहा है, वह दर्शाता है कि जनता की समस्याओं की तुलना में वीआईपी संस्कृति उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। कोठी में जिस तरह से प्रशासनिक अधिकारी राज्यपाल के स्वागत की तैयारियों में लगे हैं, उससे साफ पता चलता है कि आम जनता की समस्याएँ उनके लिए गौण हैं। क्या किसी अधिकारी ने कभी बाढ़ पीड़ितों के लिए रातभर जागकर व्यवस्था की है? क्या किसी अधिकारी ने कभी कड़कती ठंड में बेघर लोगों के लिए विशेष इंतज़ाम किए हैं? शायद नहीं। लेकिन जब कोई बड़ा अधिकारी आता है, तो पूरा प्रशासनिक अमला जैसे नींद से जाग जाता है।

*स्वागत की तैयारी या प्रशासन की दिखावटी तत्परता?*

राज्यपाल के आगमन से पहले सड़कें चमकाई जा रही हैं, जिन गड्ढों में महीनों से पानी भरा था, वे रातों-रात भर दिए गए। बिजली के खंभों पर नई लाइटें लगाई जा रही हैं, दीवारों पर पेंट किया जा रहा है, और शहर को चमकाने की कोशिश की जा रही है। यह सब सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि एक वीआईपी आने वाले हैं। लेकिन क्या कभी प्रशासन ने इसी तत्परता से गाँवों की सफाई की है? क्या आम जनता के लिए ऐसी तैयारी कभी होती है? कोठी के स्थानीय लोग इस भव्य आयोजन को देखकर यही सवाल कर रहे हैं, क्या प्रशासन का यही चेहरा हमेशा दिख सकता है? क्या प्रशासन की यह तत्परता केवल खास लोगों तक ही सीमित रहनी चाहिए? जब कोई गरीब व्यक्ति अपनी समस्या लेकर कलेक्टर या एसडीएम के पास जाता है, तो उसे घंटों इंतजार करवाया जाता है। लेकिन जब कोई वीआईपी आता है, तो वही अधिकारी पलक पांवड़े बिछाकर खड़े हो जाते हैं।

*वास्तविक समस्याओं की अनदेखी*

राज्यपाल के स्वागत के लिए प्रशासन ने जितना जोर लगाया है, क्या उतनी मेहनत कभी जनता की समस्याओं के समाधान के लिए लगाई जाती है? कोठी क्षेत्र के ही कई गाँवों में बिजली नहीं है, सड़कों की हालत जर्जर है, पानी की समस्या बनी हुई है, लेकिन इन मुद्दों पर किसी अधिकारी का ध्यान नहीं जाता। यदि प्रशासनिक अमला चाह ले, तो कोठी और आसपास के गाँवों की दशा रातों-रात बदल सकती है। लेकिन ऐसा तब तक नहीं होगा जब तक कोई बड़ा नेता या अधिकारी दौरा करने न आए। यह स्थिति केवल कोठी तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में यही हाल है। जहाँ-जहाँ वीआईपी आते हैं, वहाँ प्रशासन सक्रिय हो जाता है, लेकिन जहाँ जनता दर्द में होती है, वहाँ कोई ध्यान नहीं दिया जाता। यह दोहरी मानसिकता हमारे सरकारी तंत्र का एक कड़वा सच बन चुकी है।

*जनता की अपेक्षाएँ और प्रशासन की जिम्मेदारी*

जनता का प्रशासन से एक ही सवाल है , जब राज्यपाल या कोई अन्य बड़ा अधिकारी आता है, तो प्रशासन इतनी मुस्तैदी क्यों दिखाता है? क्या यही मुस्तैदी आम जनता के लिए भी नहीं हो सकती? जनता चाहती है कि प्रशासन केवल दिखावा न करे, बल्कि वास्तविक समस्याओं पर ध्यान दे। जब कोई गरीब इलाज के लिए तरसता है, तो अधिकारी तत्परता क्यों नहीं दिखाते? जब कोई किसान आत्महत्या करता है, तो प्रशासन जागरूक क्यों नहीं होता? जब बाढ़ या सूखा आता है, तो अधिकारी तुरंत एक्शन में क्यों नहीं आते? जब सड़कें खराब होती हैं, तो उन्हें तभी क्यों सुधारा जाता है जब कोई मंत्री या राज्यपाल आता है? ये सवाल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हैं। जनता को सिर्फ दिखावटी तत्परता नहीं चाहिए, बल्कि वास्तविक समाधान चाहिए।

 *प्रशासन को अपनी मानसिकता बदलनी होगी*

राज्यपाल मंगुभाई पटेल का कोठी में स्वागत करना गलत नहीं है, लेकिन इस स्वागत की आड़ में प्रशासन का असली चेहरा भी सामने आ गया है। यह स्पष्ट है कि प्रशासन की प्राथमिकताएँ गलत दिशा में जा रही हैं। अधिकारियों को यह समझना होगा कि उनका असली कर्तव्य जनता की सेवा करना है, न कि केवल बड़े अधिकारियों और नेताओं के स्वागत में लगे रहना। अगर यही ऊर्जा और संसाधन आम जनता की समस्याओं को हल करने में लगाए जाएँ, तो कोठी और अन्य क्षेत्रों की हालत बदल सकती है। प्रशासन को अब दिखावे की बजाय वास्तविक काम पर ध्यान देना होगा। अन्यथा, जनता का विश्वास धीरे-धीरे सरकारी तंत्र से खत्म होता जाएगा। कोठी में राज्यपाल के स्वागत की भव्यता हमें सोचने पर मजबूर करती है, क्या प्रशासन सिर्फ खास लोगों की सेवा के लिए बना है? अगर प्रशासनिक अधिकारी विपत्ति के समय भी ऐसी तत्परता दिखाएँ, तो देश की तस्वीर ही बदल जाए।

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