सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जब किताबें सड़क किनारे रख कर बिकेंगी और जूते काँच के शोरूम में, तब समझ जाना कि देश के लोगों को ज्ञान की नहीं जूतों की ज़रूरत है

 जब किताबें सड़क किनारे रख कर बिकेंगी और जूते काँच के शोरूम में, तब समझ जाना कि देश के लोगों को ज्ञान की नहीं जूतों की ज़रूरत है



ढीमरखेड़ा |  खुद मझधार में होकर भी जो औरो का साहिल होता हैं ईश्वर ज़िम्मेदारी उसी को देता हैं जो निभाने के काबिल होता हैं शीर्षक पढ़कर दंग मत होना यह कहानी है आज के समाज की गौरतलब है कि आज के समय में लोग शिक्षा और ज्ञान की ओर कम आकर्षित हो रहे हैं और भौतिकवादी वस्तुओं की ओर अधिक झुकाव दिखा रहे हैं। किताबों को सड़कों पर सस्ते दामों में बेचा जाता है, जबकि महंगे जूते और कपड़े बड़े - बड़े शोरूम में रखे जाते हैं। यह समाज की प्राथमिकताओं को दर्शाता है कि अब लोग किताबों को एक आवश्यक वस्तु नहीं मानते, बल्कि इसे गैर-जरूरी मानते हैं। डिजिटल युग में मोबाइल और इंटरनेट ने किताबों की जगह ले ली है। शिक्षा का व्यवसायीकरण हो चुका है, जिससे किताबें केवल एक औपचारिकता बन गई हैं। लोग त्वरित सफलता चाहते हैं और ज्ञान को दीर्घकालिक निवेश की तरह नहीं देखते। उपभोक्तावाद की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिससे लोग ब्रांडेड चीजों को अधिक महत्व देने लगे हैं।

 *शिक्षा बनाम दिखावा*

शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को बौद्धिक रूप से समृद्ध करना और समाज को सही दिशा में ले जाना है। लेकिन आज की पीढ़ी दिखावे पर अधिक ध्यान दे रही है। उन्हें महंगे कपड़े, जूते और गाड़ियाँ चाहिए, लेकिन किताबें और ज्ञान उनकी प्राथमिकता में नहीं हैं। शिक्षा अब केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम बन गई है। सरकारी स्कूलों की स्थिति दयनीय होती जा रही है, जिससे गरीब बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। कोचिंग संस्थानों और प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा को एक महंगा व्यापार बना दिया है। लोग शिक्षित होने की बजाय केवल नौकरी पाने तक की पढ़ाई कर रहे हैं। दूसरी ओर, बाजार में बड़े-बड़े जूते और कपड़ों के ब्रांड उभर रहे हैं। लोग हजारों - लाखों रुपये सिर्फ जूतों पर खर्च कर देते हैं, लेकिन किताबें खरीदने में रुचि नहीं रखते।

*समाज में ज्ञान और शिक्षा का स्थान*

अगर इतिहास में झांकें, तो पाएंगे कि जब भी किसी समाज ने ज्ञान को तुच्छ समझा, वह पतन की ओर बढ़ गया। भारत को ही लें, यहाँ प्राचीन काल में शिक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया जाता था। तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों में दूर-दूर से विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने आते थे। लेकिन वर्तमान में स्थिति इसके विपरीत है।शिक्षा अब एक सेवा नहीं, बल्कि एक व्यापार बन चुकी है। गरीबों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना कठिन होता जा रहा है। शिक्षा संस्थान लाभ कमाने के केंद्र बन चुके हैं, जहाँ केवल अमीर वर्ग को सर्वोत्तम सुविधाएँ मिलती हैं। इसके विपरीत, फैशन और उपभोक्तावाद को बढ़ावा देने वाले ब्रांड फल-फूल रहे हैं। कंपनियाँ लोगों की मानसिकता को इस तरह प्रभावित कर रही हैं कि वे जरूरत की चीजों से ज्यादा दिखावे की चीजों पर पैसा खर्च कर रहे हैं।

 *लोगों की मानसिकता का बदलाव*

किताबें सड़क किनारे सस्ती मिलती हैं, लेकिन फिर भी उन्हें खरीदने वाले कम होते हैं। लोग ज्ञान को मुफ्त में पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जूते और अन्य फैशनेबल चीजों पर बिना सोचे-समझे पैसे लुटाते हैं। कंपनियाँ महंगे उत्पादों का प्रचार करती हैं, जिससे लोगों में दिखावे की मानसिकता बढ़ती है। किताबों से ज्ञान धीरे-धीरे मिलता है, लेकिन महंगे जूते और फैशनेबल चीजें तुरंत खुशी देती हैं। लोग ज्ञान से ज्यादा भौतिक वस्तुओं से अपनी स्थिति को ऊँचा दिखाने में विश्वास करने लगे हैं। सोशल मीडिया, मनोरंजन और डिजिटल कंटेंट ने किताबों से दूरी बढ़ा दी है।

*शिक्षा के प्रति लोगों की सोच बदलनी होगी*

शिक्षा को केवल नौकरी का माध्यम न समझें, बल्कि इसे ज्ञान प्राप्ति का जरिया मानें। स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के प्रयास किए जाएँ। छात्रों में पढ़ने की आदत विकसित की जाए। ई-बुक्स और ऑडियो बुक्स को बढ़ावा दिया जाए। सरकार और निजी संस्थानों द्वारा पुस्तकालयों को विकसित किया जाए। शिक्षा को व्यापार बनने से रोका जाए। गरीब और वंचित वर्गों को अच्छी शिक्षा मिले, इसके लिए सरकारी नीतियाँ बनें।

*युवाओं को सही दिशा दिखाने की जरूरत*

सोशल मीडिया और मनोरंजन की दुनिया में सीमित समय बिताने की आदत डालें। शिक्षा और किताबों की कीमत को समझें और ज्ञान को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ। जब समाज में किताबें सड़क किनारे रखकर बिकेंगी और जूते काँच के शोरूम में चमकेंगे, तो यह इस बात का संकेत होगा कि लोगों ने ज्ञान को पीछे छोड़ दिया है और भौतिक चीजों को ही सब कुछ मान लिया है। यदि हमें एक सशक्त, विकसित और जागरूक समाज बनाना है, तो शिक्षा और ज्ञान को पुनः प्राथमिकता देनी होगी। किताबें सिर्फ पढ़ने की चीज़ नहीं हैं, बल्कि वे समाज को नई दिशा देने वाली शक्ति हैं। अगर आज भी हम अपनी प्राथमिकताओं को नहीं बदलते, तो आने वाले समय में समाज को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

टिप्पणियाँ

popular post

झाड़ियों में मिला नवजात शिशु, रंडीबाजी की चुप्पी और नवजात की चीख

 झाड़ियों में मिला नवजात शिशु, रंडीबाजी की चुप्पी और नवजात की चीख ढीमरखेड़ा |  मध्यप्रदेश के कटनी जिले के ढीमरखेड़ा जनपद की ग्राम पंचायत भटगवां के आश्रित ग्राम भसेड़ा में एक हृदयविदारक घटना सामने आई। गांव के बाहरी हिस्से में स्थित घनी झाड़ियों में एक नवजात शिशु लावारिस अवस्था में पड़ा मिला। उसकी किलकारियों ने वहां से गुजर रहे ग्रामीणों का ध्यान खींचा और जल्द ही यह खबर पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई। आनन-फानन में सरपंच अशोक दाहिया ने अपनी सक्रियता दिखाई और नवजात को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र उमरियापान पहुंचाया, जहां उसका इलाज जारी है।यह घटना केवल एक बच्चे के मिलने भर की नहीं है; यह उस सामाजिक विडंबना की ओर इशारा करती है जहां अनैतिक संबंधों, देह व्यापार और सामाजिक डर के कारण नवजातों को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया जाता है। ग्राम भसेड़ा में सुबह के समय कुछ ग्रामीण लकड़ी बीनने निकले थे। तभी उन्हें झाड़ियों से किसी नवजात की रोने की आवाज सुनाई दी। पहले तो उन्हें भ्रम हुआ, पर जब वे पास पहुंचे तो वहां एक नवजात शिशु खून और माटी से सना हुआ पड़ा मिला। उसे देखकर सबके रोंगटे खड़े हो गए...

तीसरी संतान होने पर गई महिला शिक्षक की नौकरी, मध्यप्रदेश के शिक्षकों में मचा हड़कंप लेकिन ढीमरखेड़ा में कार्रवाई से क्यों बच रहे हैं दोषी? ढीमरखेड़ा तहसील के एक बाबू पर बहुत जल्द गिरेगी तीन संतान पर गाज

 तीसरी संतान होने पर गई महिला शिक्षक की नौकरी, मध्यप्रदेश के शिक्षकों में मचा हड़कंप लेकिन ढीमरखेड़ा में कार्रवाई से क्यों बच रहे हैं दोषी? ढीमरखेड़ा तहसील के एक बाबू पर बहुत जल्द गिरेगी तीन संतान पर गाज  ढीमरखेड़ा |  मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले से आई एक खबर ने पूरे राज्य के सरकारी शिक्षकों के बीच हड़कंप मचा दिया है। छतरपुर के धमौरा स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की महिला शिक्षक रंजीता साहू को सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने तीसरी संतान होने की बात को छिपाया था। ये घटना ना सिर्फ नियमों के उल्लंघन का प्रतीक है, बल्कि यह भी उजागर करती है कि कुछ जिलों में सख्त प्रशासनिक रवैया अपनाया जा रहा है, जबकि कुछ स्थानों पर, जैसे ढीमरखेड़ा विकासखंड में, ऐसे नियमों को पूरी तरह नज़रअंदाज किया जा रहा है। रंजीता साहू, जो कि छतरपुर जिले के धमौरा क्षेत्र में सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पदस्थ थीं, उन पर 2022 में यह आरोप लगा कि उन्होंने तीसरी संतान होने के बावजूद यह जानकारी विभाग से छुपाई और अपनी नौकरी जारी रखी। जबकि 2001 में राज्य सरकार द्वारा यह नियम लागू कि...

पुलिस विभाग के बब्बर शेर, सहायक उप निरीक्षक अवध भूषण दुबे का गौरवशाली पुलिस जीवन, 31 मार्च को ढीमरखेड़ा थाने से होगे सेवानिवृत्त, सेवानिवृत्त की जानकारी सुनके आंखे हुई नम

 पुलिस विभाग के बब्बर शेर, सहायक उप निरीक्षक अवध भूषण दुबे का गौरवशाली पुलिस जीवन, 31 मार्च को ढीमरखेड़ा थाने से होगे सेवानिवृत्त,  सेवानिवृत्त की जानकारी सुनके आंखे हुई नम  ढीमरखेड़ा |   "सच्चे प्रहरी, अडिग संकल्प, निर्भीक कर्म" इन शब्दों को अगर किसी एक व्यक्ति पर लागू किया जाए, तो वह हैं अवध भूषण दुबे। अपराध की दुनिया में जिनका नाम सुनते ही अपराधियों के दिल कांप उठते थे, आम जनता जिन्हें एक रक्षक के रूप में देखती थी, और जिनकी उपस्थिति मात्र से ही लोग सुरक्षित महसूस करते थे ऐसे थे ढीमरखेड़ा थाने के सहायक उप निरीक्षक अवध भूषण दुबे। 01 मार्च 1982 को जब उन्होंने मध्य प्रदेश पुलिस की सेवा में कदम रखा था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह व्यक्ति आने वाले चार दशकों तक अपने साहस, कर्तव्यपरायणता और निडरता के लिए बब्बर शेर के नाम से जाना जाएगा। 43 वर्षों से अधिक की सेवा के बाद, 31 मार्च 2025 को वे ढीमरखेड़ा थाने से सेवानिवृत्त हो रहे हैं, लेकिन उनके किए गए कार्य और उनकी यादें हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेंगी। *अपराधियों के लिए काल "बब्बर शेर"* अपराध की दुनिया में कुछ प...