डिग्रियां तो आपके पढ़ाई के खर्चे की रसीदें हैं, ज्ञान वो हैं जो आपके किरदार में झलकता हैं, 84 लाख जीवों में केवल मानव ही धन कमाता है, अन्य कोई जीव भूखा नहीं मरा और मानव का कभी पेट नहीं भरा
डिग्रियां तो आपके पढ़ाई के खर्चे की रसीदें हैं, ज्ञान वो हैं जो आपके किरदार में झलकता हैं, 84 लाख जीवों में केवल मानव ही धन कमाता है, अन्य कोई जीव भूखा नहीं मरा और मानव का कभी पेट नहीं भरा
ढीमरखेड़ा | डिग्रियां और शिक्षा का मूल्य समय के साथ विकसित हुआ है। पहले के समय में शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान अर्जन था, लेकिन आजकल की दुनिया में डिग्रियां एक व्यक्ति की योग्यता और समाज में उसकी स्थिति को निर्धारित करती हैं। हालांकि, यह आवश्यक नहीं कि डिग्री प्राप्त करने वाला हर व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर ही ले। वास्तविक ज्ञान तो वह है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, आचार-व्यवहार और विचारों में झलकता है। डिग्रियां एक प्रकार से हमारे अध्ययन और मेहनत के प्रमाण होती हैं, लेकिन एक व्यक्ति की असल पहचान उसके विचारों, नैतिकता और कार्यों से बनती है। जैसे ही हम अपने चरित्र और कार्यों से समाज में योगदान करते हैं, तब हमारी असल शिक्षा की मूल्यवत्ता स्थापित होती है। ज्ञान केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह व्यवहार में और दूसरों के साथ हमारे संबंधों में भी प्रतिबिंबित होता है।
*मनुष्य के लिए धन महत्वपूर्ण रिश्ते नहीं*
हमारे समाज में धन कमाने को सफलता का मापदंड माना जाता है। जबकि अन्य जीवों को भोजन और जीवन के लिए संघर्ष करते नहीं देखा जाता, इंसान दिन-प्रतिदिन अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दौड़ता है। कई बार इस दौड़ में वह अपने नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को भी छोड़ देता है। 84 लाख जीवों में केवल मानव ही धन कमाता है, यह विचार इस बात को दर्शाता है कि बाकी जीवों का जीवन केवल प्राकृतिक सिद्धांतों पर निर्भर है और वे अपने जीवन के लिए शिकार करते हैं या अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं, लेकिन इंसान के पास धन और अन्य चीजों की आवश्यकता होती है, जिनके बिना वह अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता। धन का महत्व और उसका आदान-प्रदान आज की दुनिया में इतना बढ़ चुका है कि कभी-कभी इंसान अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य से भटक जाता है। समाज में बढ़ती भौतिकतावादी प्रवृत्तियों ने उसे यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उसका असल उद्देश्य क्या है? क्या केवल धन कमाना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य है, या फिर इससे भी अधिक कुछ है?
*अन्य जीवों का जीवन और मनुष्य का पेट*
इस बिंदु पर विचार करते हुए यह सवाल उठता है कि जब अन्य जीवों के पास कोई चिंता नहीं होती, तब हम क्यों अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं? क्या यह केवल हमारी मानसिकता और सामाजिक संरचनाओं का परिणाम है? अन्य जीवों को अपनी भूख और प्यास के लिए संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन वे कभी भी किसी अव्यक्त लालच या असंतोष का शिकार नहीं होते। इंसान ने अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए अनगिनत प्रौद्योगिकियां और साधन विकसित किए हैं, लेकिन फिर भी वह कभी संतुष्ट नहीं होता। यह कहीं न कहीं हमारे भीतर एक गहरी अव्यक्त इच्छा को दर्शाता है, जिसे हम कभी पूरी नहीं कर पाते। मानव जीवन में कभी न खत्म होने वाली इच्छाओं और अपेक्षाओं का एक अंतहीन चक्र होता है, जो कभी भी पूरी नहीं हो पाता। इसी कारण, उसका पेट कभी नहीं भरता, क्योंकि उसकी आत्मा को शांति और संतुष्टि की तलाश होती है।
*मानव की भौतिक और मानसिक दौड़*
यह विचार हमारे समाज के भौतिकतावादी दृष्टिकोण की आलोचना करता है, जहां व्यक्ति अधिक से अधिक धन और संसाधन जुटाने की दिशा में अग्रसर होता है, लेकिन इसके बावजूद वह कभी भी संतुष्ट नहीं होता। यह शायद इसलिए है क्योंकि एक व्यक्ति का जीवन केवल भौतिक संपत्ति तक ही सीमित नहीं है। हमें अपनी मानसिक और भावनात्मक भलाई का भी ध्यान रखना चाहिए। मानव जीवन में मानसिक शांति की तलाश, एक सच्चे उद्देश्य की प्राप्ति और आत्म - साक्षात्कार की प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन दुर्भाग्यवश, आजकल के युग में इन सब बातों की तुलना में भौतिक सुख-सुविधाओं का महत्व अधिक हो गया है। यही कारण है कि लोग अपनी पूरी जिंदगी पैसे और चीजों के पीछे दौड़ते रहते हैं, लेकिन फिर भी एक खालीपन और असंतोष का अनुभव करते हैं।
*आपका बात करने का तरीका और सत्य के राह में चलना ही सच्ची शिक्षा*
इसमें एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीवन को देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारी इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता और धन केवल एक अस्थायी सुख का स्रोत है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण यह सिखाता है कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य दूसरों की सेवा करना, समाज में सकारात्मक बदलाव लाना और आत्मा को शांति देना है। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो असली धन वह है जो हम अपनी आत्मा में इकट्ठा करते हैं, न कि वह जो हम बाहरी दुनिया से अर्जित करते हैं।लिहाज़ा इस विचारधारा को समझने के लिए हमें अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव करने होंगे। हमें यह समझना होगा कि बाहरी चीजें हमारी खुशी का स्रोत नहीं हैं, बल्कि हमारा अंदरूनी संतुलन, हमारे रिश्ते और समाज में हमारी भूमिका ही हमारे असली उद्देश्य को आकार देती है। विदित हैं कि हमें अपनी जीवनशैली को केवल भौतिक दुनिया से बाहर निकलकर देखना चाहिए। हम जितना भी धन कमाएं, यदि हम अपनी मानसिक और आत्मिक शांति की तलाश नहीं करते, तो हमारे जीवन का असली उद्देश्य अधूरा रहेगा। डिग्रियां, धन, और बाहरी पहचान हमारी असल पहचान नहीं हैं। असल पहचान तो हमारे विचारों, कार्यों और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी में झलकती है। इसलिए हमें यह समझने की आवश्यकता है कि जीवन का असली उद्देश्य सिर्फ धन अर्जित करना नहीं है, बल्कि उसे सही तरीके से और सही उद्देश्य के लिए उपयोग करना है, ताकि हम अपने जीवन में संतुलन, शांति और खुशी पा सकें।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें