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खरी - अखरी सवाल उठाते हैं पालकी नहीं तुम्हारी खामुशी के लफ्ज़ पर था शोर शर्मिंदा तुम्हारे लहजे की सादा-जबानी याद आयेगी

 खरी - अखरी सवाल उठाते हैं पालकी नहीं

तुम्हारी खामुशी के लफ्ज़ पर था शोर शर्मिंदा

तुम्हारे लहजे की सादा-जबानी याद आयेगी



_प्रख्यात अर्थशास्त्री एवं लोकतांत्रिक सज्जनता के प्रतीक पुरुष डॉ मनमोहन सिंह कोहली पंचतत्वों में विलीन_


_डाॅ मनमोहन सिंह (1932-2024) की अंतिम यात्रा पर लेखन की शुरुआत पर यह लिखना प्रासंगिक होगा जब 2011 में विपक्ष की तरफ से महरूम श्रीमती सुषमा स्वराज ने पीएम मनमोहन सिंह से सवाल की शुरूआत एक शेर पढ़ कर की थी_ "*तू इधर-उधर की ना बात कर ये बता कि काफिला क्यों लुटा, हमें रहजनों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है*"। _पीएम मनमोहन सिंह ने बड़ी संजीदगी से शेर का जवाब शेर से देते हुए कहा_ "*माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक़ तो दे़ख मेरा इंतज़ार देख*"। _और पूरी लोकसभा ठहाकों से गूंज गई यहां तक कि सुषमा स्वराज भी अपनी हंसी नहीं रोक पाईं। यह नजारा होता था संसद का जो 2014 से न जाने कहां खो गया है।_

*दिख रहा है आज का दौर भय, राजनैतिक शून्यता का है। इस दौर में बौध्दिकता और राजनीति के बीच इतनी गहरी खाई पैदा कर दी गई है कि उसे भर पाने की स्थिति में भी शून्यता ही दिखाई दे रही है। इतना गहरा अंधेरा इससे पहले कभी पसरा नहीं था। यह गहरी शून्यता या गहन अंधेरा इसलिए नजर आ रहा है कि इस दौर में अतीत के स्वर्णिम पन्नों को गायब और फाड़ने की कोशिश की गई। गजब का संजोग है 23 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को उनकी पुण्यतिथि पर तथा दो दिन के अंतराल में 25 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके सौंवे जन्मदिन पर याद किया गया था और ठीक दो दिन बाद 27 दिसम्बर को एक और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को भी उसी रूप में याद किया जा रहा है।*

*वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, वित्त मंत्रालय के सलाहकार यहां तक कि प्रधानमंत्री ने आर्थिक सलाहकार, रिजर्व बैंक के गवर्नर, यूजीसी के चेयरमैन की कुर्सियों पर कौन लोग विराजमान हैं। उनके नाम देश के 95 फीसदी से ज्यादा लोगों को पता नहीं है। वर्तमान पीढ़ी को यह भी पता नहीं होगा इन सारे पदों पर कभी कोई एक ही व्यक्ति विराजमान रह चुका है क्या ? इसका उत्तर है हां और उस व्यक्ति का नाम है डाॅ मनमोहन सिंह। जिनने आगे चलकर वित्त मंत्री और फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी भी सम्हाली है।*

*चन्द्रशेखर को अपने प्रधानमंत्रित्व काल में आयातित तेल और उर्वरक की उधारी चुकाने के लिए बैंक आफ इंग्लैण्ड, बैंक आफ फ्रांस और बैंक आफ जापान में सोना गिरवी रखना पड़ा था। 1991 में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में जब डॉ मनमोहन सिंह को राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया गया तब देश के सामने आर्थिक संकट से उबरने की विकट स्थिति थी। उस समय के प्रशासनिक अधिकारी पी सी अलेक्जेंडर (IAS) ने पीएम राव को सुझाव दिया कि फाइनेंस मिनिस्ट्री डॉ मनमोहन सिंह के हवाले कर दीजिए और डाॅ साहब को वित्त मंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया गया वह भी उनकी अपनी शर्तों पर। 1991 में जब डॉ सिंह ने वित्त मंत्रालय की बागडोर सम्हाली थी तब भारत के पास केवल 1 अरब मुद्रा भंडार बचा था जो 1993 में 10 अरब और 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी को सत्ता सौंपने के पहले 290 अरब डालर हो गया था।*

*डाॅ मनमोहन सिंह के अपने दस वर्षीय प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल की महानतम उपलब्धियों शामिल किया जा सकता है सूचना का अधिकार अधिनियम (2005),महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा 2005), 2006-07 में 10.08 फीसदी की उच्चतम सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि, विश्व आर्थिक अपस्थिति से देश की रक्षा 2008, शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, भारत - अमेरिका के बीच परमाणु समझौता (न्यू क्लीयर डील) 2008, 2012 में भारत पोलियो महामारी से मुक्त को, विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था, 5 लाख से ज्यादा ग्रामीण सड़कों का निर्माण, 1 लाख से ज्यादा गांवों और 5 लाख से अधिक घरों का विद्युतीकरण, इंदिरा आवास योजना के तहत गरीबों को घर, अनेक अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डों का निर्माण, मंगल मिशन, चंद्रयान - 1 मिशन, मोबाईल नेटवर्क और ब्राडबैंड सेवाओं में अभूतपूर्व वृद्धि, RGGLVY  योजना के तहत गरीबों को मुफ्त LPG सिलेंडर।*

*पीएम डॉ मनमोहन सिंह ने कभी भी अपनी आलोचना करने वालों (बुध्दिजीवियों, मीडिया, राजनीतिक नेताओं) के घरों पर ना तो ईडी, सीबीआई, इन्कम टैक्स वालों को भेजा ना ही शास्त्री भवन, जंतर-मंतर पर धरना देने वालों पर पुलिसिया दमनचक्र चलवाया। उन्होंने कभी नहीं कहा कि हमारे खिलाफ लिखने वाले मीडिया चैनलों, अखबारों को विज्ञापन देना बंद कर देंगे, दफ्तरों में ताले लटका देंगे, जेल में डलवा कर सडवा देंगे । डाॅ मनमोहन सिंह ने कभी भी आपसी संवाद पर पहरा नहीं लगने दिया। जैसा वर्तमान प्रधानमंत्री ने दौर में देखा जा रहा है। देश के दो सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे प्रधानमंत्रियों की सूची में शामिल डॉ मनमोहन सिंह की प्राथमिक शिक्षा वर्तमान के पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में स्थित पैतृक गांव गाह में हुई। देश बटवारे के दौरान परिवार पंजाब (भारत) आ गया। पंजाब युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन, कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी से पीएचडी, डी फिल करने के बाद आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के अन्तर्गत दिल्ली के देहली स्कूल आफ इकोनोमिक्स में बतौर प्रोफेसर नौकरी की।*

*डाॅ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के प्रोटोकोल के चलते बैठते तो थे बीएमडब्ल्यू में मगर दिल लगा रहता था अपनी मारुति 800 में। डाॅ मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में 114 प्रेस वार्ताओं का आयोजन कर पत्रकारों के सवालों का जबाव दिया है। उन्होंने अपनी अंतिम पत्रवार्ता 3 जनवरी 2014 को की थी जिसमें 100 से ज्यादा जर्नलिस्टों के 62 से ज्यादा सवालों के जबाव दिये थे। जबकि 4000 दिन पार हो जाने के बाद भी पीएम नरेन्द्र मोदी ने भारत की धरती पर एक भी प्रेसवार्ता का आयोजन नहीं किया है। यह अलग बात कि कुछ खास पत्रकारों (प्रायोजित सवालों का प्रायोजित जबाव) को इंटरव्यू जरूर दिया है।*

*डाॅ मनमोहन सिंह कोहली को सबसे बड़ा राजनैतिक ज्योतिषी कहा जा सकता है  ! जिन्होंने कुछ इस तरह से कहा था कि अगर कोई चौथी पास सत्ता में आया तो डिजास्टर (विनाशकारी) साबित होगा। भाजपा और उसके टाप लीडर्स लगातार डॉ मनमोहन सिंह पर कटाक्ष करते हुए कमजोर प्रधानमंत्री का राग अलाप रहे थे। 2019 में मीडिया से रूबरू होते हुए उन्होंने कहा था कि "मैं नहीं मानता कि मैं कमजोर प्रधानमंत्री था। भाजपा और उसके सहयोगी जो चाहे कहते रहें। अगर आप मजबूत प्रधानमंत्री का मतलब ये समझते हैं कि वह अहमदाबाद की सड़कों पर निर्दोषों का नरसंहार देखे, अगर यही मजबूती का पैमाना है तो मैं नहीं मानता कि इस देश को इस तरह की मजबूती की जरूरत है। मैं ईमानदारी से मानता हूँ कि आज के मीडिया की अपेक्षा इतिहास मेरे प्रति उदार रहेगा"।*

*उन्होंने मजबूती से साबित किया कि देश की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठकर कोई नेता अपने लिए 8000 करोड़ रुपये का विमान और 20000 करोड़ रुपये का बंगला झटक ले तो इससे विकास का कोई लेना-देना नहीं है। इससे जनता को कुछ नहीं मिलता है। आज एक निरंकुश तानाशाही वह रास्ता बंद करने पर आमदा है जिसे मनमोहन सिंह ने दशकों की मेहनत से बनाया था। भारतीय अर्थव्यवस्था की बरबादी और उदार लोकतंत्र का दमन डॉ मनमोहन सिंह को और बड़ा बनायेगा। उनका योगदान सदैव याद किया जायेगा।*

*राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों के अंतिम संस्कार के लिए राष्ट्रीय स्मृति स्थल स्थान निर्दिष्ट होने के बावजूद नरेन्द्र मोदी सरकार ने शर्मनाक फैसला करते हुए डाॅ मनमोहन सिंह का कद कम करने की मंशा (लकीर छोटी करना) से अंतिम संस्कार सार्वजनिक निगम बोध घाट पर करने का निर्णय लेते हुए पत्र जारी किया है। जिसे हर कोई तीव्र आलोचना करते हुए नीचता पूर्ण दुर्भाग्यशाली फैसला बता रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे राजधर्म का पालन करने की बात कही है मगर वे भूल गए कि जब नरेन्द्र मोदी ने गोधराकांड के दौरान बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दी गई सीख "राजधर्म का पालन करो" को ठुकरा दिया था तो फिर आप किस खेत की मूली हैं ।*

*अब सवाल यह नहीं है कि डॉ मनमोहन सिंह कोहली के प्रति ईमानदारी के साथ समकालीन मीडिया की तुलना में इतिहास कितना अधिक उदार है। उससे बड़ा सवाल यह है कि इतिहास (झूठ, दगाबाजी, पाखंड युक्त संस्कारों से सुसज्जित !) नरेन्द्र मोदी को न केवल बतौर प्रधानमंत्री बल्कि व्यक्तिगत तौर पर कैसे याद रखेगा ?*

_डॉ सिंह के साथ किये गये अपने अशोभनीय कृत्यों (अध्यादेश को फाड़ना तथा सार्वजनिक क्षेत्र में बाथरूम जैसे घटिया शब्दों का इस्तेमाल करना) के कारण राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी को कोई हक नहीं बनता है डाॅ मनमोहन सिंह की अनन्त यात्रा के समय विधवा विलाप करने का !_

             *विनम्र श्रद्धांजली*

*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता*

_स्वतंत्र पत्रकार_

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