जीवन का क्या ठिकाना माया हैं आनी जानी अभिमान नहीं करना थोड़ी सी जिंदगानी
ढीमरखेड़ा | "जीवन का क्या ठिकाना माया है आनी-जानी, अभिमान नहीं करना, थोड़ी सी जिंदगानी" इस विषय में दैनिक ताजा ख़बर के प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय का कहना है कि जीवन एक रहस्यमय यात्रा है। यह विचार जीवन के अस्थिर और क्षणभंगुर स्वभाव को उजागर करता है, साथ ही यह हमें हमारी सीमित आयु और स्थायी मूल्यों को समझने की ओर प्रेरित करता है। जीवन एक पल में खिलता है और दूसरे ही पल मुरझा जाता है। मानव जीवन को प्रकृति की एक अस्थायी और नश्वर कृति माना गया है। जैसे सुबह की ओस सूरज की पहली किरण से गायब हो जाती है, वैसे ही हमारा जीवन भी समय की रेत पर एक लहर की तरह आता और चला जाता है। हमारे शास्त्रों और संतों ने हमेशा यह सिखाया है कि जीवन का असली मूल्य इसे समझने और इसके हर पल को सार्थक बनाने में है। यदि हम केवल माया-मोह और भौतिक सुखों के पीछे भागेंगे, तो हम इस जीवन की सच्चाई से दूर हो जाएंगे।
*माया का जाल*
माया का अर्थ है वह अस्थायी सुख जो हमें भटकाता है। हमारे धर्मग्रंथों में माया को जीवन की सबसे बड़ी बाधा के रूप में चित्रित किया गया है। यह माया हमें अपने वास्तविक उद्देश्य से दूर करती है और हमें भौतिक चीजों में उलझा देती है। माया की आनी-जानी प्रकृति को समझना महत्वपूर्ण है। धन, संपत्ति, पद और प्रतिष्ठा, ये सभी माया के रूप हैं। ये हमारे पास आज हैं, लेकिन कल नहीं रह सकते। यह ज्ञान हमें इस सच्चाई को समझने में मदद करता है कि जीवन में स्थायी कुछ भी नहीं है।
*अभिमान का त्याग*
"अभिमान नहीं करना" जीवन का एक महत्वपूर्ण सबक है। अभिमान वह विष है जो हमारे अंदर अहंकार को जन्म देता है। यह हमें दूसरों से श्रेष्ठ समझने और स्वयं को विशेष मानने के भ्रम में डाल देता है। अभिमान का त्याग कर हम अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं। सच्चा ज्ञान वही है, जो हमें सिखाता है कि हम इस दुनिया में सबके बराबर हैं। संतों और महात्माओं ने हमेशा विनम्रता का उपदेश दिया है, क्योंकि विनम्रता से ही सच्ची मानवता का विकास होता है।
*थोड़ी सी जिंदगानी का महत्व*
जीवन का समय सीमित है, और इस थोड़ी सी जिंदगानी को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। हर दिन, हर पल, हर क्षण अमूल्य है। हमें इसे अर्थपूर्ण बनाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। हमारा समय हमारे हाथों में है। इसे सकारात्मक कार्यों, समाजसेवा, और सच्चे प्रेम के माध्यम से सार्थक बनाना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।
*आध्यात्मिक दृष्टिकोण*
आध्यात्मिकता जीवन को देखने का एक ऐसा दृष्टिकोण प्रदान करती है, जो हमें माया और अभिमान से परे ले जाती है। जब हम समझ जाते हैं कि जीवन अस्थायी है, तो हम इससे जुड़ी हर चीज को भी अस्थायी मानने लगते हैं। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही सिखाया कि जीवन का असली उद्देश्य कर्मयोग है। माया से परे जाकर कर्म करना और उसे ईश्वर को समर्पित करना ही जीवन को सार्थक बनाता है।
*सकारात्मक दृष्टिकोण*
जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है। यह सत्य है कि जीवन क्षणभंगुर है, लेकिन यही उसकी सुंदरता है। हर दिन हमें यह अवसर देता है कि हम अपनी गलतियों को सुधारें, नई चीजें सीखें और अपने जीवन को बेहतर बनाएं।
माया और अभिमान को छोड़कर, यदि हम अपना जीवन दूसरों की सेवा, प्रेम और दया में व्यतीत करें, तो यह थोड़ी सी जिंदगानी भी अमूल्य हो जाएगी। "जीवन का क्या ठिकाना माया है आनी-जानी, अभिमान नहीं करना, थोड़ी सी जिंदगानी" यह वाक्य हमें जीवन की अस्थिरता, माया के जाल, और अभिमान के दुष्प्रभावों से अवगत कराता है। जीवन की थोड़ी सी अवधि को सार्थक बनाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए, हमें अपने हर दिन को पूर्णता और संतोष के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए। यही सच्चे जीवन की परिभाषा है।
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