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सरकारी स्कूलों में आख़िर एडमिशन कम क्यूं हों रहे हैं, कई जगहों के सरकारी स्कूल बंद होने की कगार में हैं, मुफ्त में सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का किसी का रूझान नहीं, सब पैसे देकर प्रायवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं क्यूं न सरकार खुद सरकारी स्कूलों में बदलाव करके इंग्लिश मीडियम सरकारी स्कूलो को कर दिया जाए जिसमें कुछ फीस भी लगेगी तो लोग देगे और सरकारी स्कूलों का रूझान भी बढ़ेगा

 सरकारी स्कूलों में आख़िर एडमिशन कम क्यूं हों रहे हैं, कई जगहों के सरकारी स्कूल बंद होने की कगार में हैं, मुफ्त में सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का किसी का रूझान नहीं, सब पैसे देकर प्रायवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं क्यूं न सरकार खुद सरकारी स्कूलों में बदलाव करके इंग्लिश मीडियम सरकारी स्कूलो को कर दिया जाए जिसमें कुछ फीस भी लगेगी तो लोग देगे और सरकारी स्कूलों का रूझान भी बढ़ेगा



ढीमरखेड़ा | यह सच है कि सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या कम हो रही है और कई स्थानों पर सरकारी स्कूलों का भविष्य भी अंधकारमय दिख रहा है। इसके कई कारण हैं और यह स्थिति देश के कई हिस्सों में देखी जा रही है। भारत में सरकारी स्कूलों के प्रति अविश्वास और अन्य कई कारणों से लोग अब अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने के लिए तैयार हो गए हैं। सरकारी स्कूलों में अक्सर अच्छे शिक्षक नहीं होते, शिक्षण सुविधाएं सीमित होती हैं और यहां तक कि इन्फ्रास्ट्रक्चर भी कई बार उपयुक्त नहीं होता। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जाते हैं, जिससे अभिभावक निजी स्कूलों का रुख करते हैं, जहाँ वे मानते हैं कि उनके बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलेगी।

 *प्राइवेट स्कूलों का आकर्षण*

आजकल, प्राइवेट स्कूलों का आकर्षण बढ़ता जा रहा है। इनमें सुविधाएं बेहतर होती हैं, इंग्लिश मीडियम की शिक्षा दी जाती है, और छात्रों को विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम, इन्फ्रास्ट्रक्चर, एक्स्ट्रा करिकुलर गतिविधियाँ उपलब्ध होती हैं। इसके अलावा, निजी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को लेकर एक सकारात्मक छवि बनी हुई है। कई लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए फीस देने के लिए तैयार हो जाते हैं, भले ही यह उनके बजट से बाहर क्यों न हो।

 *सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता*

भारत के अधिकांश सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता एक बड़ा मुद्दा है। सरकारी स्कूलों में अक्सर छात्रों की संख्या बहुत अधिक होती है, और शिक्षक भी कई बार पूरी क्षमता से नहीं पढ़ा पाते। इसके अतिरिक्त, सरकारी स्कूलों में नए और उन्नत शिक्षण विधियों का अभाव है। इन स्कूलों में बच्चों को उतना ध्यान और मार्गदर्शन नहीं मिल पाता, जितना कि निजी स्कूलों में मिलता है। यह कारण है कि अधिकतर लोग सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों को प्राथमिकता देते हैं।

 *सरकारी स्कूलों का बुनियादी ढाँचा*

सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी एक मुख्य कारण है। बहुत से स्कूलों में बैठने की उचित व्यवस्था नहीं है, पेयजल की सही व्यवस्था नहीं है, और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं होतीं। यह स्थितियां विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों के लिए असुविधाजनक होती हैं और सरकारी स्कूलों के प्रति उनका आकर्षण घटता है।

 *सरकारी स्कूलों के प्रति अभिभावकों का मानसिकता*

अभिभावकों की मानसिकता भी एक बड़ा कारण है। अधिकांश अभिभावक मानते हैं कि निजी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर होती है और उनके बच्चों को एक अच्छी भविष्यवाणी के लिए बेहतर शिक्षा मिलेगी। यह मानसिकता सरकारी स्कूलों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करती है। ऐसे में सरकारी स्कूलों के प्रति रुचि और विश्वास फिर से स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

*सरकारी स्कूलों में बदलाव का प्रस्ताव*

यदि सरकार सरकारी स्कूलों की स्थिति में बदलाव करना चाहती है तो कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में काम किया जा सकता है। इसके लिए सरकारी स्कूलों में योग्य और प्रेरित शिक्षकों की भर्ती की जाए, जो छात्रों को अच्छी शिक्षा प्रदान कर सकें। इसके साथ ही, सरकारी स्कूलों में आधुनिक शिक्षण विधियों को अपनाया जा सकता है, जैसे कि डिजिटल शिक्षा और मल्टीमीडिया उपकरणों का उपयोग।

*सरकारी स्कूलों को होना चाहिए इंग्लिश मीडियम*

एक प्रभावी समाधान के रूप में इंग्लिश मीडियम सरकारी स्कूलों की स्थापना की जा सकती है। कई अभिभावक अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाना चाहते हैं, ताकि वे भविष्य में बेहतर अवसरों का सामना कर सकें। अगर सरकार इंग्लिश मीडियम स्कूलों की व्यवस्था करती है, तो यह सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने में मदद कर सकता है। हालांकि, इंग्लिश मीडियम सरकारी स्कूलों में कुछ फीस भी ली जा सकती है, क्योंकि यह स्कूलों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाएगा और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करेगा।

 *फीस के साथ सरकारी स्कूलों का संचालन*

सरकारी स्कूलों में कुछ फीस लेने से भी एक परिवर्तन आ सकता है। यह फीस बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन इस फीस से स्कूलों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने में मदद मिल सकती है। फीस लेने से स्कूलों को शिक्षा सामग्री, उपकरण, और अन्य जरूरी सुविधाओं का ख्याल रखा जा सकता है। इससे छात्रों के लिए बेहतर वातावरण उपलब्ध होगा और अभिभावक भी सरकारी स्कूलों में अधिक रुचि दिखा सकते हैं। साथ ही, यह कदम सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के मुकाबले प्रतिस्पर्धी बना सकता है।

 *शिक्षा का व्यावसायीकरण*

यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है। निजी स्कूलों में शिक्षा अधिकतर एक व्यवसाय बन गई है, जहां शिक्षा के मूल्य के बजाय लाभ की ओर ध्यान दिया जाता है। इससे एक असमानता पैदा हो गई है, जहां गरीब वर्ग के बच्चों को अच्छे स्कूलों में शिक्षा मिलना मुश्किल हो गया है। यदि सरकार इंग्लिश मीडियम सरकारी स्कूलों की स्थापना करती है, तो यह समाज के सभी वर्गों के बच्चों को समान शिक्षा प्रदान करने में सहायक होगा। सरकार को चाहिए कि वह सरकारी स्कूलों में विभिन्न योजनाओं और पहलों के माध्यम से बदलाव लाए। इनमें बच्चों को मुफ्त में किताबें, यूनिफॉर्म, भोजन, और अन्य सुविधाएं प्रदान करना शामिल हो सकता है। इसके अलावा, स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य और करियर काउंसलिंग जैसी सेवाएं भी प्रदान की जा सकती हैं, जिससे छात्रों को बेहतर मार्गदर्शन मिल सके।

*हर व्यक्ति को होना चाहिए जागरूक और उठानी चाहिए सरकार से आवाज़*

सरकारी स्कूलों के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना भी जरूरी है। लोगों को यह समझाना होगा कि सरकारी स्कूलों में भी अच्छे शिक्षकों और सुविधाओं के साथ अच्छी शिक्षा मिल सकती है। यह जागरूकता अभिभावकों को सरकारी स्कूलों के प्रति प्रोत्साहित कर सकती है और छात्रों की संख्या में वृद्धि कर सकती है। समाज में सरकारी स्कूलों के प्रति बढ़ते नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। इंग्लिश मीडियम सरकारी स्कूलों की स्थापना, फीस के साथ बेहतर सुविधाएं और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार जैसी पहलें सरकारी स्कूलों के आकर्षण को बढ़ा सकती हैं। इसके अलावा, समाज में जागरूकता फैलाकर और सरकारी स्कूलों के फायदे को उजागर करके, अभिभावकों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। इन उपायों के माध्यम से, सरकारी स्कूलों को पुनः एक आकर्षक विकल्प बनाया जा सकता है, जो गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा का एक सशक्त माध्यम बने।

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