क्षेत्र के लोगों में जागरूकता न होने के कारण बदहाली पर आंसू बहा रहा प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का हैलीपैड और बंगला, स्थानीय प्रशासन को खुद प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बंगले के विषय में जानकारी नहीं, प्रशासन के कर्मचारी ढीमरखेड़ा में खाली जेब लेकर के आते हैं भर - भर जेब जाते हैं
क्षेत्र के लोगों में जागरूकता न होने के कारण बदहाली पर आंसू बहा रहा प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का हैलीपैड और बंगला, स्थानीय प्रशासन को खुद प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बंगले के विषय में जानकारी नहीं, प्रशासन के कर्मचारी ढीमरखेड़ा में खाली जेब लेकर के आते हैं भर - भर जेब जाते हैं
ढीमरखेड़ा | ढीमरखेड़ा तहसील के करौंदी ग्राम का भारत के भौगोलिक केंद्र बिंदु के रूप में एक अलग पहचान है, लेकिन वर्तमान में सरकारी उपेक्षा के कारण यह स्थान अपनी पहचान और महत्ता को खोता जा रहा है। 1987 में इसी स्थान पर पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर ने एक विशाल जनसभा की थी, और इस सभा के लिए एक हैलीपैड तथा आवासीय बंगले का निर्माण किया गया था। परंतु समय के साथ इन संरचनाओं की देखभाल नहीं की गई, जिससे ये आज जर्जर अवस्था में हैं।करौंदी का भारत के भौगोलिक केंद्र बिन्दु के रूप में विशेष महत्व है, जिसकी खोज 1956 में जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य एसपी चक्रवर्ती के नेतृत्व में छात्रों ने की थी। यह स्थल अपने प्राकृतिक सौंदर्य और मध्य बिंदु के रूप में स्थापित होने के कारण देश का दिल भी कहलाता है। इसकी इसी पहचान को बनाए रखने और पर्यटन के माध्यम से विकास की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए 1995 में महर्षि महेश योगी ने इस स्थान के निकट एक विश्वविद्यालय की स्थापना की। महर्षि विश्वविद्यालय में देशभर से वेदों का अध्ययन करने वाले छात्र आते हैं, जिससे यह स्थल शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार का केंद्र भी बन गया। हालांकि, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्व. चंद्रशेखर के बाद से इस स्थान पर कोई अन्य राष्ट्रीय स्तर का नेता नहीं आया है और न ही किसी प्रकार का बड़ा प्रोजेक्ट यहां शुरू किया गया है। सरकारी उपेक्षा के चलते यह स्थल धीरे-धीरे अपने महत्व को खोता जा रहा है।
*प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जनसभा और उपेक्षा की शिकार ऐतिहासिक धरोहरें*
1987 में जब प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने यहां जनसभा की थी, तब उनके हैलीकॉप्टर को उतारने के लिए एक हैलीपैड का निर्माण किया गया था। इसके साथ ही एक बंगला भी बनाया गया था, जहां प्रधानमंत्री ने विश्राम किया था। यह स्थान आज जर्जर अवस्था में पहुंच चुका है। हैलीपैड पर झाड़ियां उग आई हैं और बंगले की हालत भी खस्ता हो चुकी है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन ने इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने की जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लिया है। इस उपेक्षा का परिणाम यह है कि यह स्थान, जो कभी गौरव और प्रतिष्ठा का प्रतीक था, अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में बदल चुका है।
*पर्यटन की संभावना और प्राकृतिक सौंदर्य*
करौंदी ग्राम, घने जंगलों और विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के बीच बसा है, और इसके चारों ओर का प्राकृतिक वातावरण इसे एक अनोखा पर्यटन स्थल बना सकता है। इस स्थान पर जंगली जीवों की विविधता देखी जा सकती है, जो इसे वन्यजीव प्रेमियों के लिए आकर्षक बना सकता है। पास में ही महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित वैदिक आश्रम है, जहां कई राज्यों के छात्र वैदिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इन छात्रों के माध्यम से वैदिक परंपरा का प्रचार-प्रसार हो रहा है, जिससे करौंदी का नाम विदेशों तक पहुंच रहा है। अगर इसे पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित किया जाए, तो यह क्षेत्रीय रोजगार के अवसर भी प्रदान कर सकता है।
*फंडों का दुरुपयोग और विकास की धीमी गति*
करौंदी का भारत के भौगोलिक केंद्र होने के कारण इसे विधायक निधि, सांसद निधि और खनिज मद से मिलने वाली राशि का लाभ मिलना चाहिए था, लेकिन इस निधि का उचित उपयोग नहीं हो रहा है। इस निधि से मिलने वाली राशि का खर्च कहां किया जा रहा है, यह एक प्रश्नचिह्न बन गया है। यह स्थिति तब और अधिक दुखद हो जाती है, जब हम देखते हैं कि प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का हैलीपैड और बंगला अब उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। इन निधियों का सही उपयोग करके इस स्थान को पर्यटन और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता था, परंतु सरकारी उदासीनता और फंडों के दुरुपयोग ने इसे विकास से कोसों दूर रखा है।
*स्थानीय नेतृत्व और प्रशासन की उदासीनता*
करौंदी की इस दुर्दशा के प्रति न तो स्थानीय नेताओं ने कोई रुचि दिखाई है, और न ही सरकारी अधिकारियों ने। क्षेत्रीय नेताओं और अधिकारियों की उपेक्षा के कारण यह स्थान अपने महत्व को खो रहा है, और इसका असर यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या पर भी पड़ा है। आज के समय में पर्यटन के माध्यम से क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित किया जा सकता है, लेकिन करौंदी में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। सरकार और प्रशासन अगर इस स्थान को संरक्षित करने की दिशा में ठोस कदम उठाते, तो करौंदी एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता था, जिससे स्थानीय निवासियों को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होते।
*पर्यटन केंद्र के रूप में करौंदी की संभावनाएं*
करौंदी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की असीम संभावनाएं हैं। प्राकृतिक सौंदर्य, वन्यजीव विविधता, और वैदिक शिक्षा के केंद्र के रूप में यह स्थान पर्यटन का केंद्र बिंदु बन सकता है। अगर इसे पर्यटन मेगा सर्किट में विकसित किया जाए, तो यह न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को भी आकर्षित कर सकता है। इसके अलावा, यहां पर्यटकों के लिए बुनियादी सुविधाओं जैसे कि रहने की व्यवस्था, गाइड सेवा, और स्थानीय हस्तशिल्प के प्रदर्शन का प्रबंध किया जा सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सके।
*ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और पुनरुद्धार की आवश्यकता*
करौंदी में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जनसभा का ऐतिहासिक महत्व है। इस स्थान के संरक्षण के लिए सरकार और प्रशासन को ठोस कदम उठाने चाहिए। हैलीपैड और बंगले का पुनरुद्धार कर इसे संरक्षित धरोहर के रूप में विकसित किया जा सकता है, जो न केवल पर्यटकों को आकर्षित करेगा बल्कि देश के इतिहास के प्रति एक सम्मानजनक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करेगा। इसके लिए आवश्यक है कि केंद्र और राज्य सरकारें संयुक्त रूप से निधियों का सही उपयोग सुनिश्चित करें और इस स्थान की देखरेख और विकास के लिए एक दीर्घकालिक योजना बनाएं।
*स्थानीय निवासियों की अपेक्षाएं*
करौंदी के निवासी इस स्थान के महत्व से भली-भांति परिचित हैं, और उन्हें उम्मीद है कि सरकार और प्रशासन इस स्थान की अनदेखी करना बंद कर देंगे। स्थानीय निवासियों का मानना है कि अगर इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाता है, तो इससे रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है। इसके लिए स्थानीय निवासियों को भी इस स्थान के संरक्षण और विकास में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, ताकि यह स्थल आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर के रूप में सुरक्षित रह सके।यहां पर मनोहर ग्राम भी हैं जहां पर कुछ आबादी निवासरत हैं। लिहाजा देखा जाएं तो भारत के भौगोलिक केंद्र बिंदु के चौकीदार को लंबे समय से भुगतान भी नहीं किया गया अब सोचा जा सकता है कि चौकीदार जो कि केंद्र बिंदु की देखरेख करता है जब उसका भुगतान नहीं किया गया जो कि सोच से परे हैं।
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