डेयरी एवं केंचुआ खाद निर्माण में प्रशिक्षण के माध्यम से स्वसहायता समूह की महिलाओं को किया जा रहा जागरूक, शिकायत से नहीं सीखने से होगा समस्या का समाधान, प्रशिक्षण करेगा हर कदम पर मदद
डेयरी एवं केंचुआ खाद निर्माण में प्रशिक्षण के माध्यम से स्वसहायता समूह की महिलाओं को किया जा रहा जागरूक, शिकायत से नहीं सीखने से होगा समस्या का समाधान, प्रशिक्षण करेगा हर कदम पर मदद
ढीमरखेड़ा | किसी भी राष्ट्र की उन्नति का आधार उसके ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होता है। भारत, एक कृषि प्रधान देश होने के नाते, अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और समुदायों पर विशेष ध्यान देता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता और स्वरोजगार के साधन स्थापित करना न केवल ग्रामीण विकास को गति देता है बल्कि महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में भी सहायक होता है। इसी उद्देश्य से, मध्य प्रदेश शासन के राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा के सभागार में स्व-सहायता समूह की महिलाओं को डेयरी और केंचुआ खाद निर्माण का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। यह प्रशिक्षण कलेक्टर दिलीप कुमार यादव के निर्देशन और मुख्य कार्यपालन अधिकारी शिशिर गेमावत के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया है। कार्यक्रम को भारतीय स्टेट बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान, कटनी के संचालक पवन कुमार गुप्ता के मार्गदर्शन और आजीविका मिशन के ब्लॉक प्रबंधक अजय पांडेय के सहयोग से सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है।
*प्रशिक्षण का उद्देश्य*
10 दिवसीय प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें डेयरी और केंचुआ खाद निर्माण के क्षेत्र में स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना है। यह न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहायक होगा, बल्कि कृषि और पशुपालन से जुड़े व्यवसायों को भी बढ़ावा देगा।
*डेयरी उद्योग में स्वरोजगार की संभावना*
डेयरी व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रमुख स्वरोजगार का साधन है। इस प्रशिक्षण में महिलाओं को देशी गायों और भैंसों की नस्लों की पहचान और उनके उचित पालन-पोषण की जानकारी दी गई।
*गायों की प्रमुख नस्लें*
साहिवाल
गिर
रेड सिंधी
थारपारकर
अमृत महल
मेवाती
निमाड़ी
कथियावाड़ी
मालवी
*भैंसों की प्रमुख नस्लें*
मुर्रा
भदावरी
जाफराबादी
सूरती
मेहसाना
प्रशिक्षण में इन नस्लों की दूध उत्पादन क्षमता, उनके स्वास्थ्य, और बेहतर देखभाल के तरीकों पर विशेष जोर दिया गया।
*पशुपालन में रोग प्रबंधन*
पशुपालन के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती है पशुओं को होने वाले विभिन्न रोगों का प्रबंधन। प्रशिक्षक रामसुख दुबे ने पशुओं में होने वाले प्रमुख रोगों की पहचान, उपचार, और टीकाकरण के विषय में विस्तार से जानकारी दी।
*पशुओं के प्रमुख रोग*
खुरपका और मुंहपका
गलघोंटू
लंगड़ा बुखार
एंथ्रेक्स
ब्रूसिलोसिस
इन बीमारियों से बचाव के लिए टीकाकरण, संतुलित आहार, और समय पर दवा का प्रबंध अनिवार्य है। प्रशिक्षण के दौरान पशुओं के लिए संतुलित पोषण आहार तैयार करने और उनके स्वास्थ्य की नियमित देखभाल के उपाय भी सिखाए गए।
*अधिक दुग्ध उत्पादन के उपाय*
दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए पशुओं को संतुलित पोषण और उचित देखभाल आवश्यक है। महिलाओं को पशुओं के लिए संतुलित आहार तैयार करने की विधि, उनमें खनिज और विटामिन की कमी को दूर करने के उपाय, और दुग्ध उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में बताया गया।
*संतुलित आहार में शामिल तत्व*
हरा चारा (नेपियर घास, बरसीम, लोबिया)
सूखा चारा (तुअर का भूसा, गेहूं का भूसा)
खनिज मिश्रण और विटामिन सप्लीमेंट्स
दाना और खली
महिलाओं को यह भी सिखाया गया कि कैसे कम लागत में पशुओं को बेहतर आहार प्रदान किया जा सकता है। कृषि में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। जैविक खेती और प्राकृतिक खाद जैसे केंचुआ खाद का उपयोग न केवल फसलों की गुणवत्ता को बढ़ाता है बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है।
*केंचुआ खाद निर्माण की प्रक्रिया*
प्रशिक्षण में महिलाओं को केंचुआ खाद निर्माण की विधि सिखाई गई गोबर, फसल के अवशेष, और रसोई के जैविक कचरे का उपयोग। प्रमुख रूप से आइसेनिया फेटिडा और युड्रिलस यूजीनिया प्रजातियों का उपयोग। जैविक कचरे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर एकत्रित करना।
इसे एक छायादार स्थान पर व्यवस्थित तरीके से रखना। 15 - 20 दिन में केंचुओं द्वारा इस कचरे को खाद में परिवर्तित करना। केंचुआ खाद न केवल सस्ती होती है बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है। महिलाओं को इसे बाजार में बेचने और अपने खेतों में उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
*स्वरोजगार की दिशा में सहयोग*
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में संस्था के कर्मचारी अनुपम पांडेय और प्रशिक्षक रामसुख दुबे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं को मार्गदर्शन दिया बल्कि उनके सवालों के उत्तर देकर उन्हें हर संभव सहायता प्रदान की।महिलाओं को यह सिखाया गया कि डेयरी और केंचुआ खाद निर्माण के माध्यम से कैसे वे स्थानीय बाजार की जरूरतों को पूरा कर सकती हैं और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकती हैं।
*प्रशिक्षण से महिलाओं को किया जा रहा जागरूक*
महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने और आर्थिक रूप से सशक्त बनने का अवसर मिला। पशुपालन और डेयरी उद्योग में उचित पोषण और देखभाल से लाभ। केंचुआ खाद के माध्यम से रासायनिक उर्वरकों का विकल्प। महिलाओं को अपने गांव और आसपास स्वरोजगार के साधन उपलब्ध कराने की प्रेरणा। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से महिलाओं को एक नई दिशा देने की कोशिश की गई है। भविष्य में, सरकार और अन्य संस्थाएं इस तरह के कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर सकती हैं। ग्रामीण आजीविका मिशन का यह कदम न केवल महिलाओं के जीवन को बदलने में सफल रहा है बल्कि इसे एक आदर्श उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है कि कैसे सही प्रशिक्षण और मार्गदर्शन से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।
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