पिपरिया शुक्ल के लोगों को पहले बाढ़ ने रुलाया अब तहसील के आला - अधिकारी रुला रहे हैं, क्या तहसील के आला - अधिकारियों पर कमान कसने को बना हैं कोई कानून, अगर प्रदेश तक होगी पहुंच तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कराया जाएगा ध्यान आकर्षित लेकिन गरीबों को मिलेगा न्याय
पिपरिया शुक्ल के लोगों को पहले बाढ़ ने रुलाया अब तहसील के आला - अधिकारी रुला रहे हैं, क्या तहसील के आला - अधिकारियों पर कमान कसने को बना हैं कोई कानून, अगर प्रदेश तक होगी पहुंच तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कराया जाएगा ध्यान आकर्षित लेकिन गरीबों को मिलेगा न्याय
ढीमरखेड़ा | पिपरिया शुक्ल के लोगों के साथ आई इस विपदा में बाढ़ के कारण हुई तबाही के बाद अब प्रशासनिक अव्यवस्था ने उन्हें रोड में ला खड़ा किया हैं। बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से बच निकलने के बाद जब ग्रामीणों को लगा कि उन्हें मुआवजा मिलेगा और उनकी गृहस्थी का पुनर्निर्माण हो सकेगा, तब तहसीलदार के आदेश ने उनकी उम्मीदों को गहरा धक्का दिया। तहसीलदार द्वारा जारी आधी मुआवजा राशि वापस करने के नोटिस ने ग्रामीणों को अत्यधिक निराश और चिंतित कर दिया है, जो पहले से ही भारी कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
*रो - रोकर सुनाई बूढ़ी अम्मा ने दास्तान*
जब दैनिक ताजा ख़बर के प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय पिपरिया शुक्ल के मामले को देखने के लिए पहुंचे और जब ग्राम में मुआयना किया तो देखकर दंग रह गए। जब ग्रामीणों ने बताया कि अनेकों बार टीम आई लेकिन केवल टीमें नाम के लिए आई। एक बूढ़ी अम्मा ने जब अपना घर दिखाया कि मालिक मेरा भी घर देख लो मेरा भी नोटिस आया हैं में तो अपने गृहस्थी का समान उन पैसों से खरीद ली हूं उस नोटिस में यह भी लिखा हैं कि अगर राशि जमा नहीं की गई तो आपके विरूद्ध भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के अधीन दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी। ढीमरखेड़ा में जिस तरह से अधिकारियों की तानाशाही चरम पर हैं वह सोचने योग्य हैं। आख़िर विधायक और सांसद क्या कर रहे हैं? या फिर केवल वोट मांगने बस आते हैं जब जनता परेशान हैं तब उनका ध्यान देने कोई नहीं सामने आ रहा है।पिपरिया शुक्ल में आई बाढ़ ने पूरे गाँव को जलमग्न कर दिया था। इस आपदा के कारण न केवल लोगों के घरों में पानी घुसा, बल्कि उनकी दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएँ भी बर्बाद हो गईं। कई परिवारों के पास न खाने का सामान बचा था और न ही अन्य जरूरी वस्तुएँ। बच्चों की पढ़ाई के लिए आवश्यक किताबें, कपड़े, और गृहस्थी का सामान सब कुछ बाढ़ में डूब गया। सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे का आश्वासन एकमात्र सहारा था, जिससे ये लोग अपनी जीवन की बुनियादी जरूरतें फिर से जुटा सकते थे उल्लेखनीय हैं कि प्रेमबाई, कपिल, जम्मन, सुम्मी बाई, महाजन को मिला हैं नोटिस।
*मुआवजा के समय क्या अधिकारी सो रहे थे*
बाढ़ पीड़ितों को राहत देने के उद्देश्य से सरकार ने मुआवजे की राशि निर्धारित की थी। प्रारंभ में, लोगों ने सोचा कि यह मुआवजा उनकी परेशानियों का समाधान करेगा, लेकिन जब तहसीलदार ने आधी मुआवजा राशि वापस करने का नोटिस जारी किया, तो उनकी उम्मीदें धूमिल हो गईं। सवाल यह उठता है कि पहले तो मुआवजा वितरित किया गया और बाद में राशि वापस करने का नोटिस क्यों जारी किया गया? इसके पहले अधिकारी क्या कर रहे थे और क्यों ऐसी स्थिति बनी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
*तहसीलदार की भूमिका पर खड़े हों रहे प्रश्नचिन्ह*
तहसीलदार का यह कदम कई सवाल खड़े करता है। मुआवजा की राशि को वापस लेने का कारण स्पष्ट नहीं है, और ग्रामीणों को इस अचानक आई स्थिति में अपने भविष्य को लेकर असमंजस में डाल दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह राशि उनकी गृहस्थी की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में लगाई गई थी। ऐसे में वापस करने का नोटिस उन्हें और अधिक कष्ट में डाल रहा है।
*ग्रामीणों में असंतोष और विरोध की स्थिति*
यह कदम न केवल प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इससे ग्रामीणों के मन में सरकार और अधिकारियों के प्रति असंतोष भी बढ़ा है। ग्रामीणों ने इस निर्णय के खिलाफ आवाज उठाई है और इसके विरोध में प्रदर्शन करने की बात कही है। ग्रामीणों का कहना है कि वे पहले ही बाढ़ के कारण अपनी जीवनशैली में बड़ा बदलाव झेल चुके हैं, और अब उन्हें फिर से आर्थिक तंगी में धकेलना अत्यधिक अनुचित है।
*अधिकारी और प्रशासनिक लापरवाही*
इस घटना में अधिकारियों की लापरवाही साफ झलकती है। जब मुआवजा दिया गया था, तब इसकी राशि का आकलन करने के लिए क्या उचित प्रक्रियाएँ अपनाई गई थीं? क्या अधिकारियों ने मुआवजे के पात्र व्यक्तियों का सही तरह से निरीक्षण नहीं किया? यह सभी प्रश्न प्रशासन की लापरवाही और कार्यप्रणाली में गड़बड़ी को उजागर करते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, अगर मुआवजा वितरण में कोई गलती हुई थी, तो उसका मूल्यांकन सही समय पर क्यों नहीं किया गया?
*कानून और पारदर्शिता की कमी*
इस स्थिति ने प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें मुआवजे का अधिकार प्राप्त था, और अब अधिकारियों द्वारा अचानक उसे वापस करने का निर्णय अनुचित है। यदि किसी प्रकार का गलत आकलन हुआ था, तो यह सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी थी कि वह पहले इसे सुलझाए। ग्रामीणों को स्पष्टता और न्याय की आवश्यकता है, जो कि वर्तमान परिस्थिति में नजर नहीं आ रही है।
माननीय तहसीलदार महोदय ने शासन की राशि वापस करने का नोटिस दिया है तो जांच में भ्रष्टाचार का होना पाया गया है।जैसा कि पत्रिका समाचार में प्रकाशित खबर है। इस लिए भ्रष्टाचार में अपराध कायम कराया जाता तो न्यायोचित होता।
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