हर मनुष्य के पास होता हैं हुनर और अपने हुनर के हिसाब से मनुष्य बढ़ता हैं आगे
ढीमरखेड़ा | स्वाभिमान एक ऐसी भावना है जो इंसान को अपने अस्तित्व और गुणों पर गर्व महसूस कराती है। जब व्यक्ति अपने आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए खड़ा होता है, तब वह अपनी क्षमताओं और विशेषताओं पर विश्वास करना सीखता है। रिश्तों में दो पक्ष होते हैं और यह महत्वपूर्ण है कि दोनों एक-दूसरे की भावनाओं और जरूरतों का सम्मान करें। जब यह संतुलन टूट जाता है और एक व्यक्ति दूसरे पर हावी हो जाता है, तो रिश्ते में कड़वाहट और असंतोष पैदा हो सकता है। "अगर तुम भी नहीं हमसे तो फिर हम भी नहीं तुमसे" एक स्पष्ट संदेश है कि जब एक पक्ष पीछे हटता है, तो दूसरे को भी आत्मसम्मान बनाए रखते हुए पीछे हटना चाहिए। जब हम किसी पर पूरी तरह निर्भर रहते हैं, तो उनकी उपस्थिति हमारे जीवन में ख़ुशियों और ग़मों को नियंत्रित करती है। लेकिन जब व्यक्ति अपने आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के बल पर खड़ा होता है, तब वह अपने जीवन के सुख-दुख का मालिक खुद बन जाता है। "कोई ख़ुशियाँ नहीं तुमसे कोई ग़म भी नहीं तुमसे" बताता है कि व्यक्ति ने खुद को इतना मजबूत बना लिया है कि बाहरी चीज़ों से उसका भावनात्मक संतुलन प्रभावित नहीं होता।
*मान - सम्मान से बढ़कर पैसा नहीं*
"हुनर से क़द को अपने खुद बढ़ाना जानते हैं हम" एक महत्वपूर्ण पहलू है जो बताता है कि व्यक्ति अपनी क्षमताओं और हुनर पर ध्यान केंद्रित करके अपने कद और पहचान को खुद बढ़ा सकता है। यह आत्मनिर्भरता और आत्मविकास का प्रतीक है। समाज में वह व्यक्ति ही अपने कद को बड़ा कर पाता है जो अपने अंदर की शक्तियों और प्रतिभाओं को पहचानता है और उन्हें सही दिशा में प्रयोग करता है। "ज़्यादा तो नहीं तुमसे मगर कम भी नहीं तुमसे" यह वाक्य दिखाता है कि व्यक्ति को खुद पर भरोसा होना चाहिए और किसी भी प्रकार की तुलना से बचना चाहिए। खुद की तुलना दूसरों से करना हमें निराश कर सकता है, इसलिए हमें अपनी योग्यताओं का मूल्यांकन स्वयं करना चाहिए। यह समझना कि हम किसी से कम नहीं हैं, आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करता है। हमें अपनी पहचान खुद बनानी चाहिए और किसी भी तरह के रिश्ते या परिस्थिति में आत्मसम्मान को बनाए रखना चाहिए। जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब हमें दूसरों की अपेक्षाओं और अपने आत्मसम्मान के बीच चुनाव करना पड़ता है।
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