पूंजीपतियो ने राजनीति को खरीद रखा हैं, आर्थिक स्थिति से कमजोर लोग राजनीति में कर रहे गुलामी, जितनी मेहनत वो दूसरो के लिए कर रहे हैं अगर वो उतनी मेहनत अपने लिए कर ले तो वो खुद पूंजीपती हों जाएंगे, छत छीनकर कंबल दान करने की कला को ही राजनीति कहते हैं
पूंजीपतियो ने राजनीति को खरीद रखा हैं, आर्थिक स्थिति से कमजोर लोग राजनीति में कर रहे गुलामी, जितनी मेहनत वो दूसरो के लिए कर रहे हैं अगर वो उतनी मेहनत अपने लिए कर ले तो वो खुद पूंजीपती हों जाएंगे, छत छीनकर कंबल दान करने की कला को ही राजनीति कहते हैं
ढीमरखेड़ा | आज राजनीति का स्वरूप तेजी से बदल रहा है, और यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि पूंजीपतियों ने राजनीति पर अपना प्रभुत्व जमा लिया है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग इस स्थिति का शिकार बनते हुए खुद को राजनीतिक गुलामी की स्थिति में पा रहे हैं। जो मेहनत ये लोग दूसरों के लिए करते हैं, अगर वही अपने विकास के लिए करें तो वे भी एक सशक्त और समर्थ वर्ग के रूप में उभर सकते हैं। आज के दौर में पूंजीपतियों का राजनीतिक पार्टियों में आर्थिक समर्थन बहुत प्रभावशाली बन गया है। वे अपनी आर्थिक ताकत के बल पर न केवल नीतियों और योजनाओं को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि अपने हितों को साधने के लिए नेताओं को अपनी उंगलियों पर नचाने का काम कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, राजनीति का मकसद अब जनता की भलाई की जगह पूंजीपतियों के हितों की रक्षा बन गया है।
*आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का शोषण*
जब पूंजीपति वर्ग राजनीति में अपनी जड़ें गहरी कर चुका है, तब आर्थिक रूप से कमजोर लोग इसके शोषण का शिकार बन रहे हैं। इनमें से कई लोग राजनीति में इसलिए शामिल होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे अपनी स्थिति में सुधार ला सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, उन्हें अपनी ही स्थिति को मजबूती से समझने का मौका नहीं मिलता और वे बड़ी मेहनत से दूसरों के लिए काम करते हैं, लेकिन स्वयं को पीछे छोड़ देते हैं।
*मेहनत का दुरुपयोग और संभावनाओं का विनाश*
अगर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग अपनी मेहनत का उपयोग अपने स्व-रोजगार या कौशल-विकास में लगाता, तो वे एक मजबूत आर्थिक स्थिति में पहुंच सकते थे। लेकिन ऐसा न करके वे किसी और के लिए गुलामी करते हैं और अपनी मेहनत की शक्ति को खुद के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में नहीं लगा पाते। अपनी स्थिति सुधारने के बजाय वे दूसरों के सपनों को साकार करने के लिए अपना वक्त और ऊर्जा बर्बाद कर देते हैं।
*पूंजीपतियों द्वारा "दान" का प्रदर्शन और दिखावे की राजनीति*
पूंजीपतियों द्वारा दान का एक दिखावटी स्वरूप प्रस्तुत किया जाता है। वे लोगों की छत छीनते हैं और फिर कंबल दान करते हैं, जिससे उनका उदार छवि का प्रचार होता है, लेकिन वास्तविकता में यह मात्र एक दिखावा है। यह प्रक्रिया राजनीति का एक घातक रूप है जिसमें केवल दिखावा और प्रचार महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जबकि जनता का वास्तविक कल्याण पीछे छूट जाता है। उल्लेखनीय है कि राजनीति में पूंजीपतियों का बढ़ता प्रभाव और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की गुलामी की स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि राजनीति अब एक साधन नहीं, बल्कि एक व्यापार बन चुकी है। यदि गरीब और मेहनतकश लोग अपनी मेहनत का उपयोग स्वयं की आर्थिक स्थिति सुधारने में करते, तो वे न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बन सकते थे, बल्कि अपने भविष्य को सुरक्षित भी कर सकते थे।
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