उपयोग मत होहिएं, उपयोगी बनिएं, हमेशा वो मत देखो जो दिखाया जा रहा हैं वो देखो जो छुपाया जा रहा हैं शिक्षा वो शेरनी का दूध है जो पिएगा वो दहाड़ेगा, तुम्हारे पैरों में जूते भले न हो, लेकिन तुम्हारे हाथों में किताबें होनी चाहिए
उपयोग मत होहिएं, उपयोगी बनिएं, हमेशा वो मत देखो जो दिखाया जा रहा हैं वो देखो जो छुपाया जा रहा हैं शिक्षा वो शेरनी का दूध है जो पिएगा वो दहाड़ेगा, तुम्हारे पैरों में जूते भले न हो, लेकिन तुम्हारे हाथों में किताबें होनी चाहिए
ढीमरखेड़ा | दैनिक ताजा ख़बर के प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय का यह मानना कि शिक्षा शेरनी का दूध है, जो इसे ग्रहण करेगा वह समाज में एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली स्थान प्राप्त करेगा, हमारे समाज में शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट करता है। यह कथन हमें यह बताता है कि शिक्षा केवल ज्ञान और जानकारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शक्ति, आत्मविश्वास, और स्वतंत्रता का स्रोत है। शिक्षित व्यक्ति अपने अधिकारों को पहचानता है, अपनी समस्याओं का समाधान निकालता है, और समाज में एक सक्रिय भूमिका निभाता है। शिक्षा हमें न केवल बौद्धिक रूप से सशक्त बनाती है, बल्कि यह हमारी सोचने की क्षमता, निर्णय लेने की क्षमता और समाज में योगदान करने की भावना को भी प्रबल करती है। एक शिक्षित व्यक्ति सही और गलत के बीच अंतर कर सकता है, और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखता है।
*उपयोगी बनने का महत्व*
राहुल पाण्डेय का यह कहना कि "उपयोग मत होहिएं, उपयोगी बनिएं" एक गहरा संदेश है जो हमें यह बताता है कि हमें केवल दूसरों द्वारा इस्तेमाल होने के बजाय, समाज के लिए उपयोगी बनना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि हमें अपने जीवन में केवल अपने हितों को ही नहीं देखना चाहिए, बल्कि अपने ज्ञान, क्षमता, और संसाधनों का उपयोग समाज की बेहतरी के लिए करना चाहिए।उपयोगी बनने का अर्थ है कि व्यक्ति को समाज में एक सकारात्मक योगदान देना चाहिए। इसका मतलब है कि हमें अपने कौशल और ज्ञान को केवल अपनी व्यक्तिगत उन्नति के लिए नहीं, बल्कि समाज के लाभ के लिए भी उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार का सोच समाज को प्रगति की दिशा में ले जाता है, क्योंकि जब व्यक्ति अपनी क्षमता को समाज के हित में लगाता है, तो इससे समाज का समग्र विकास होता है।
*पैरों में जूते न हो, लेकिन हाथों में किताबें होनी चाहिए*
राहुल पाण्डेय का यह विचार कि "तुम्हारे पैरों में जूते भले न हो, लेकिन तुम्हारे हाथों में किताबें होनी चाहिए" जीवन में शिक्षा की सर्वोच्च प्राथमिकता को दर्शाता है। यह वाक्य हमें यह सिखाता है कि भौतिक संपत्ति या ऐश्वर्य से अधिक महत्वपूर्ण ज्ञान और शिक्षा है। भले ही हमारे पास आर्थिक रूप से सीमित साधन हों, लेकिन यदि हमारे पास शिक्षा है, तो हम अपने जीवन को सफल और समृद्ध बना सकते हैं। यह संदेश विशेष रूप से उन युवाओं के लिए है जो कठिन आर्थिक परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। राहुल पाण्डेय का यह कहना कि भले ही आपके पास जूते न हों, लेकिन आपके हाथों में किताबें होनी चाहिए, हमें यह सिखाता है कि शिक्षा का महत्त्व इतना अधिक है कि हमें इसके लिए किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। शिक्षा वह साधन है जो हमें गरीबी, असमानता, और अन्य सामाजिक समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है।
*शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भरता*
शिक्षा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है। यह केवल रोजगार पाने का साधन नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति को अपनी समस्याओं का समाधान करने, अपने जीवन के निर्णय लेने और समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के योग्य बनाती है। जब व्यक्ति शिक्षित होता है, तो वह न केवल अपने लिए, बल्कि अपने परिवार, समाज, और देश के लिए भी लाभकारी होता है।राहुल पाण्डेय का यह संदेश कि शिक्षा शेरनी का दूध है, हमें यह बताता है कि शिक्षा के माध्यम से हम अपने जीवन में वह शक्ति प्राप्त कर सकते हैं, जो हमें हर चुनौती का सामना करने में सक्षम बनाती है। शिक्षा हमें न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है, बल्कि यह हमारे मानसिक और सामाजिक विकास में भी सहायक होती है।
*समाज में शिक्षा की भूमिका*
शिक्षा समाज के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक शिक्षित समाज अपने अधिकारों को पहचानता है, अपनी समस्याओं का समाधान करता है, और सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक स्तर पर प्रगति करता है। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति जागरूक होता है और अपने समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता प्राप्त करता है। राहुल पाण्डेय का यह मानना कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य केवल व्यक्तिगत उन्नति नहीं, बल्कि समाज की बेहतरी भी होनी चाहिए, हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी शिक्षा का उपयोग समाज के विकास और प्रगति के लिए करना चाहिए। जब समाज के सभी व्यक्ति शिक्षित होंगे और अपनी शिक्षा का उपयोग समाज के हित में करेंगे, तो इससे समाज में समृद्धि और शांति का माहौल बनेगा।
*शिक्षा और नैतिकता से समाज में मिलता हैं एक अलग स्थान*
शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति में नैतिकता, ईमानदारी, और सामाजिक जिम्मेदारी का विकास करना भी है। एक शिक्षित व्यक्ति न केवल अपने लिए, बल्कि समाज के लिए भी सही और गलत के बीच अंतर करता है। वह अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को समझता है और समाज में एक सकारात्मक भूमिका निभाता है। राहुल पाण्डेय का यह संदेश कि शिक्षा वह शक्ति है जो व्यक्ति को समाज में एक उपयोगी और जिम्मेदार नागरिक बनाती है, हमें यह सिखाता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समाज में नैतिकता और जिम्मेदारी का विकास करना भी होना चाहिए। राहुल पाण्डेय का यह विचार कि "उपयोग मत होहिएं, उपयोगी बनिएं" और "शिक्षा शेरनी का दूध है" हमें यह सिखाता है कि शिक्षा जीवन का सबसे बड़ा आभूषण है। यह केवल ज्ञान का साधन नहीं है, बल्कि यह शक्ति, आत्मनिर्भरता, और नैतिकता का स्रोत भी है। शिक्षा हमें न केवल व्यक्तिगत रूप से सशक्त बनाती है, बल्कि यह समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता भी देती है। हमें शिक्षा को केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज के विकास और प्रगति के लिए भी उपयोग करना चाहिए। एक शिक्षित समाज ही प्रगति की दिशा में आगे बढ़ सकता है, और यह शिक्षा ही है जो हमें इस दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
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