भैंसो के रुप में आजीविका मिशन ने स्व. सहायता समूह के गले में लटका दिया फांसी का फंदा, चना की भाजी जैसे खोट - खोट खा रहे आजीविका मिशन वाले, एक योजना के खोटते ही दूसरी योजना आ जाती हैं , भैस खरीदी में आजीविका मिशन का भ्रष्टाचार, समूहों को झूठ बोलकर थमा दी भैसें 40 हजार की भैंस देकर वसूल रहे 80 हजार समूहों ने सीईओ जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा को की शिकायत दोषी अधिकारी-कर्मचारियों पर कार्यवाही की मांग
भैंसो के रुप में आजीविका मिशन ने स्व. सहायता समूह के गले में लटका दिया फांसी का फंदा, चना की भाजी जैसे खोट - खोट खा रहे आजीविका मिशन वाले, एक योजना के खोटते ही दूसरी योजना आ जाती हैं , भैस खरीदी में आजीविका मिशन का भ्रष्टाचार, समूहों को झूठ बोलकर थमा दी भैसें 40 हजार की भैंस देकर वसूल रहे 80 हजार समूहों ने सीईओ जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा को की शिकायत दोषी अधिकारी-कर्मचारियों पर कार्यवाही की मांग
ढीमरखेड़ा | आजीविका मिशन का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना और उनके जीवन में सुधार लाना है। लेकिन ढीमरखेड़ा जनपद पंचायत के स्व-सहायता समूहों द्वारा की गई शिकायतों ने इस मिशन की पारदर्शिता और कार्यक्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले में भ्रष्टाचार के आरोप स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, जहां अधिकारियों ने नियमों की अनदेखी कर ग्रामीणों को धोखे में रखा और उन्हें कम दूध देने वाली भैंसें उपलब्ध कराई, लिहाज़ा शासन की नीतियों और योजनाओं को बर्बाद करने की मंशा रखने वाले अधिकारियों की कार्यप्रणाली को उजागर किया है।
*भ्रष्टाचार का स्वरूप देखने योग्य*
ढीमरखेड़ा जनपद के अंतर्गत कई स्व-सहायता समूहों को आजीविका मिशन के तहत भैंसें खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इन समूहों से कहा गया कि वे 30,000 से 40,000 रुपये में अच्छी नस्ल की भैंसें प्राप्त कर सकते हैं, जो 4 से 6 लीटर दूध प्रतिदिन देने में सक्षम होंगी। लेकिन वास्तविकता में इन समूहों को जो भैंसें दी गईं, वे केवल 1 से 2 लीटर दूध ही दे रही हैं, जिससे ग्रामीणों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। श्री शक्ति स्व-सहायता समूह, श्री यमुना स्व-सहायता समूह और श्री लक्ष्मी स्व-सहायता समूह जैसे समूहों ने जनपद पंचायत के सीईओ यजुवेन्द्र कोरी के सामने अपनी शिकायत दर्ज कराई है। इन समूहों का कहना है कि उन्हें झूठी जानकारी देकर ऐसी भैंसें दे दी गईं, जो कम दूध देती हैं और इसके बदले उनसे 80,000 रुपये की मांग की जा रही है। इस स्थिति में समूहों ने अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग की है।
*भैंसों की वास्तविक कीमत और वसूली*
समूहों के सदस्यों के अनुसार, उन्हें शुरू में बताया गया था कि भैंस की कीमत 40,000 रुपये होगी, लेकिन अब उनसे 80,000 रुपये वसूलने का दबाव डाला जा रहा है। इतना ही नहीं, भैंसों की दूध उत्पादन क्षमता भी वादे के अनुरूप नहीं है। इससे समूहों को भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वे इतनी बड़ी रकम चुकाने में असमर्थ हैं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस पूरे मामले में अधिकारियों द्वारा जानबूझकर धोखाधड़ी की गई है।
*भ्रष्टाचार में ब्लॉक और जिला स्तर की मिलीभगत*
सूत्रों के अनुसार, इस पूरे घोटाले में ब्लॉक और जिला स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत शामिल है। ब्लॉक में पदस्थ ब्लॉक मैनेजर और उनके सहयोगियों ने घटिया भैंसों का आवंटन करके समूहों से धोखाधड़ी की है। वहीं, जिला स्तर के अधिकारी भी इस प्रक्रिया में संलिप्त रहे हैं और उन्होंने भी अपनी जिम्मेदारियों का सही से निर्वहन नहीं किया। इस सांठगांठ के कारण ही समूहों को इतनी बड़ी वित्तीय हानि का सामना करना पड़ा है।
*आजीविका मिशन संदेह के घेरे में*
समूहों के सदस्यों ने यह भी आरोप लगाया है कि आजीविका मिशन न केवल गलत भैंसें आवंटित कर रहा है, बल्कि उनसे एक समय का दूध भी ले रहा है। इससे समूहों की आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो रही है, क्योंकि वे इस दूध से होने वाली आय का भी लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। इसके अलावा, 80,000 रुपये की वसूली का दबाव भी उन्हें और कठिनाइयों में डाल रहा है। यह स्पष्ट रूप से एक गंभीर धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें शासन की योजनाओं का दुरुपयोग किया गया है।
*वाटरशेड विभाग का 1 करोड़ 6 लाख का भुगतान*
इस मामले में वाटरशेड विभाग की भूमिका भी संदिग्ध है। आजीविका मिशन के तहत समूहों को जो भैंसें प्रदान की गईं, उनके लिए वाटरशेड विभाग द्वारा 1 करोड़ 6 लाख रुपये का भुगतान किया गया। लेकिन आजीविका मिशन विभाग इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है और दावा कर रहा है कि यह काम उनका नहीं है, बल्कि वाटरशेड विभाग ने किया है। हालांकि, वाटरशेड विभाग ने जितनी राशि की मांग की थी, उतनी पूरी राशि का भुगतान आजीविका मिशन को किया गया। सूत्रों के अनुसार, इस राशि का उपयोग घटिया भैंसों की खरीद के लिए किया गया, जो हरियाणा से मंगाई गई थीं। यह भैंसें न केवल कम दूध देती हैं, बल्कि उनकी नस्ल भी वादे के अनुसार नहीं थी। इससे स्पष्ट होता है कि इस पूरे मामले में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर हुआ है और जिम्मेदार अधिकारियों ने जानबूझकर ग्रामीणों को धोखा दिया है।
*दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग*
समूहों के सदस्यों ने स्पष्ट रूप से मांग की है कि इस मामले में दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए। वे चाहते हैं कि इस धोखाधड़ी के कारण उन्हें जो आर्थिक हानि हुई है, उसकी भरपाई की जाए और भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं।
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