सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बिन शिक्षक के चल रहे सरकारी स्कूल कैसे आएंगी बच्चों में समझदारी, समझदारी न होने के कारण बच्चें जीवन जीने के रास्ते का नहीं कर पाते चयन ,दम तोड़ रही सरकारी शिक्षा व्यवस्था बिन शिक्षक - बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक लक्ष्य पाने के दिखाये जा रहे कोरे सपने

 बिन शिक्षक के चल रहे सरकारी स्कूल कैसे आएंगी बच्चों में समझदारी, समझदारी न होने के कारण बच्चें जीवन जीने के रास्ते का नहीं कर पाते चयन ,दम तोड़ रही सरकारी शिक्षा व्यवस्था बिन शिक्षक - बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक लक्ष्य पाने के दिखाये जा रहे कोरे सपने



ढीमरखेड़ा | मध्यप्रदेश के लगभग सभी जिला ब्लॉक में शिक्षा की स्थिति गंभीर रूप से चिंताजनक है। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर एक बड़ा संकट गहराता जा रहा है। बच्चों को शिक्षित करने के लिए पर्याप्त साधन तो दूर, उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक ही नहीं हैं। इस भयावह स्थिति में सवाल उठता है कि जब सरकारी विद्यालयों में शिक्षक नहीं होंगे, तो उन छात्रों का भविष्य कैसा होगा, जिन्हें देश का भविष्य माना जाता है? तहसील ढीमरखेड़ा की शिक्षा व्यवस्था पर जब दैनिक ताजा ख़बर के प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय ने नजर डाली, तो जो तस्वीर सामने आई, वह सरकार द्वारा घोषित निपुण भारत अभियान के लक्ष्यों से मेल नहीं खाती। निपुण भारत अभियान का उद्देश्य 2027 तक बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता प्राप्त करना है, परंतु जब सरकारी विद्यालय शिक्षक विहीन हो रहे हैं, तो ये लक्ष्य महज कागजों पर सीमित रह जाएंगे। सरकारी शिक्षा व्यवस्था का यह पतन केवल ढीमरखेड़ा या किसी एक क्षेत्र की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रदेश की एक बड़ी चुनौती है।

*शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल रहा अव्यवहारिक प्रयोग*

शिक्षा सत्र 2024-25 के पहले तीन महीने बीत जाने के बावजूद शिक्षा विभाग द्वारा लागू किए गए अव्यवस्थित और अव्यवहारिक प्रयोगों ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है। इन प्रयोगों के चलते शिक्षा सत्र की शुरुआत ही तनाव और अनिश्चितता में हो रही है। न केवल छात्र, बल्कि शिक्षक भी इन नीतियों से परेशान हैं। एक ओर सरकार बुनियादी शिक्षा के स्तर को सुधारने के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर स्कूल शिक्षा विभाग की गैर-जिम्मेदाराना नीतियां इस व्यवस्था को गहरे संकट में धकेल रही हैं।

*पहले शिक्षकों को प्रशिक्षण, फिर उच्च पद देकर अन्यत्र की गई पदस्थापना*

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभाग ने लाखों रुपये खर्च कर शिक्षकों को प्रशिक्षित किया, लेकिन सत्र शुरू होते ही उन्हें अन्यत्र पदस्थ कर दिया गया। शिक्षक जो कक्षाओं में बच्चों को शिक्षित कर सकते थे, उन्हें उच्च पदों पर स्थानांतरित कर दिया गया। इससे कक्षाएं शिक्षकविहीन हो गईं और विद्यार्थी बिना शिक्षण के रह गए। शिक्षकों को प्रशिक्षित करने और फिर उन्हें कक्षाओं से हटाने की यह नीति न केवल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है, बल्कि सरकार के शिक्षा सुधारों के सभी दावों को भी निरर्थक साबित कर रही है।

*अब चला अतिशेष का चाबुक*

शिक्षा विभाग की एक और विवादास्पद नीति है – बीच सत्र में अतिशेष शिक्षकों का स्थानांतरण। यह प्रक्रिया बिना किसी योजना और बिना शिक्षा पोर्टल को अपडेट किए की गई है, जिससे छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों में गहरी नाराजगी है। अगर यह कदम शिक्षा सत्र के आरंभ में लिया गया होता, तो शायद इतना नुकसान नहीं होता। परंतु बीच सत्र में इस प्रकार का स्थानांतरण, खासकर बिना किसी ठोस योजना के, स्कूलों को और भी कमजोर बना रहा है।ढीमरखेड़ा विकासखंड में स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि दो दर्जन से अधिक प्राथमिक विद्यालय शिक्षक विहीन हो चुके हैं, जबकि पचासों स्कूलों में केवल एक शिक्षक रह गया है। ये स्कूल बच्चों की शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचा नहीं दे पा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि जिन स्कूलों में पर्याप्त संख्या में छात्र हैं, वहां के शिक्षकों को भी अतिशेष घोषित कर दिया गया है, जिससे स्कूलों की स्थिति और बदतर हो गई है।

*शिक्षा का भविष्य और अभिभावकों की चिंता*

यदि यह स्थिति यूं ही बनी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब सरकारी शिक्षा केवल एक सपना बनकर रह जाएगी। गरीब, मजदूर और किसान परिवारों के बच्चे, जो सरकारी स्कूलों पर निर्भर होते हैं, शिक्षा से वंचित रह जाएंगे। शिक्षा के अधिकार के तहत हर बच्चे को समान शिक्षा का हक है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में यह अधिकार भी सवालों के घेरे में है। अभिभावकों और पालकों की चिंता स्वाभाविक है। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे शिक्षा प्राप्त करें, ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके। परंतु जब विद्यालयों में शिक्षक ही नहीं होंगे, तो शिक्षा के इस मूलभूत अधिकार को कैसे पूरा किया जाएगा? यदि सरकारी शिक्षा व्यवस्था का यही हाल रहा, तो गरीब परिवारों के लिए शिक्षा केवल एक सपना बनकर रह जाएगी।

*शिक्षा विभाग की दोषपूर्ण नीतियां*

शिक्षा विभाग की दोषपूर्ण नीतियों ने बच्चों के भविष्य को गहरे संकट में डाल दिया है। पहले से ही कमजोर हो चुकी शिक्षा व्यवस्था को और भी कमजोर कर दिया गया है। शिक्षक, जो विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शक होते हैं, उनके बिना कक्षाओं का कोई मतलब नहीं रह जाता। शिक्षक ही शिक्षा की नींव होते हैं, और जब वही नहीं होंगे, तो शिक्षा का भविष्य भी अनिश्चित ही रहेगा। शिक्षकों के अतिशेष का गलत तरीके से इस्तेमाल, बिन योजना के स्थानांतरण और विद्यालयों में शिक्षकों की कमी जैसी समस्याएं सरकारी शिक्षा को ध्वस्त कर रही हैं। यदि समय रहते अभिभावकों, पालकों और जन प्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो वह दिन दूर नहीं जब सरकारी शिक्षा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

*निपुण भारत अभियान और सरकारी स्कूलों का वर्तमान परिदृश्य*

निपुण भारत अभियान का उद्देश्य बच्चों में बुनियादी साक्षरता और गणितीय कौशल का विकास करना है। सरकार ने 2027 तक यह लक्ष्य प्राप्त करने का संकल्प लिया है। परंतु सवाल यह उठता है कि जब सरकारी विद्यालयों में शिक्षक ही नहीं होंगे, तो इन लक्ष्यों को कैसे हासिल किया जाएगा? निपुण भारत अभियान का प्रमुख उद्देश्य है कि तीसरी कक्षा के अंत तक हर बच्चा बुनियादी पढ़ाई और गणित में कुशल हो। इसके लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं बनाई गई हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर शिक्षा का जो हाल है, वह इन योजनाओं के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करता है। ब्लॉक और जिला स्तर पर सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के कारण बुनियादी साक्षरता और गणितीय कौशल का विकास संभव नहीं हो पा रहा है। यह समस्या न केवल वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के लिए, बल्कि भविष्य के लिए भी एक गंभीर चुनौती है।

*शिक्षा का राजनीतिकरण और व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता*

शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे राजनीति से दूर रखकर केवल बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर सुधारने की आवश्यकता है। परंतु वर्तमान स्थिति में शिक्षा का राजनीतिकरण हो चुका है, और इसका खामियाजा सीधे तौर पर बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। शिक्षा विभाग की नीतियों में सुधार की जरूरत है। शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति, विद्यालयों में आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता, और शिक्षा के प्रति सरकार की गंभीरता ही शिक्षा व्यवस्था को बचा सकती है। जब तक इन मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता, तब तक बुनियादी शिक्षा और निपुण भारत अभियान जैसे लक्ष्य केवल कागजी दस्तावेज बनकर रह जाएंगे।

*कई स्कूलों में नहीं हैं शिक्षक*

सरकारी शिक्षा व्यवस्था की इस दुर्दशा में अभिभावकों और समाज की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। जब तक अभिभावक और समाज इस मुद्दे पर अपनी आवाज नहीं उठाएंगे, तब तक शिक्षा विभाग अपनी गलत नीतियों को जारी रखेगा। अभिभावकों और समाज को मिलकर शिक्षा के अधिकार की लड़ाई लड़नी होगी। वे सरकार और शिक्षा विभाग से जवाबदेही मांगें कि बच्चों के लिए शिक्षकों की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है।

टिप्पणियाँ

  1. भैयाजी मैंने कितनी बार सोशल मीडिया पर लिखा कि जब तक शासकीय कर्मचारीयों के बच्चों का दाखिला शासकीय विद्यालयों में अनिवार्य नहीं किया जाता तब तक शिक्षा व्यवस्था में सुधार संभव नहीं होगा चूंकि शासकीय स्कूलों में हरीजन आदिवासी गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं इसलिए शिक्षा व्यवस्था चौपट हैं क्योंकि शासकीय कर्मचारीयों के बच्चे प्रायवेट स्कूलों में पढ़ते हैं शासकीय कर्मचारीयों को क्या लेना देना समय-समय पर शासकीय स्कूलों में देख रेख भी नहीं होती है चूंकि सबकी सांठगांठ चलतीं है कोई अपने आप को शिक्षक संघ का नेता बताता है कोई मेरा रिस्तेदार ऊपर बैठा हैं यें कह कर गांव के गरीब हरिजन आदिवासीयो को धमकाते रहते हैं और माहिने मैं फोकट की पगार उठाते हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. अगर शिक्षक लोग इमानदारी से प्रतिदिन अपने विधालय के बच्चों को दो घंटे भी पढ़ायें तों ओ दिन दूर नहीं जब प्रायवेट स्कूलों से बेहतर परिणाम शासकीय स्कूलों का होगा लेकिन आज शिक्षकों को मोबाइल चलानें से फुर्सत नहीं है

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

popular post

पुलिस कर्मचारी अवध दुबे जीता जागता बब्बर शेर, जिसके चलते ही अनेकों अपराधी कांपते हैं, जहां - जहां पदस्थ रहे अवध दुबे अपराधियों को छोड़ा नहीं, किया ऐसी कार्यवाही कि आज भी याद करते हैं अपराधी अवध दुबे को

 पुलिस कर्मचारी अवध दुबे जीता जागता बब्बर शेर, जिसके चलते ही अनेकों अपराधी कांपते हैं, जहां - जहां पदस्थ रहे अवध दुबे अपराधियों को छोड़ा नहीं, किया ऐसी कार्यवाही कि आज भी याद करते हैं अपराधी अवध दुबे को  ढीमरखेड़ा | अवध दुबे, एक पुलिस कर्मचारी, अपने साहस, निष्ठा और अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी छवि एक ऐसे अधिकारी की है, जो कभी भी किसी भी तरह के अपराध को बर्दाश्त नहीं करते हैं। पुलिस बल में उनके कार्यों ने उन्हें एक अद्वितीय पहचान दिलाई है, और उनकी उपस्थिति मात्र से अपराधी थर-थर कांपने लगते हैं। अवध दुबे ने जिस भी थाने में अपनी सेवाएँ दी हैं, वहां अपराध की दर में न केवल गिरावट आई है, बल्कि आम लोगों में सुरक्षा की भावना भी बढ़ी है।अवध दुबे का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था, जहाँ से उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की। बचपन से ही उनमें न्याय और ईमानदारी के प्रति एक विशेष प्रकार का झुकाव था। उन्होंने अपने स्कूल और कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद पुलिस सेवा में भर्ती होने का निर्णय लिया। उनके जीवन का यह फैसला उनके परिवार और समाज के प्रति उनके दायित्व को महसूस कर

ढीमरखेड़ा सरपंच फोरम ने डॉक्टर अजीत सिंह परिहार के स्थानांतरण निरस्त करने को लेकर कलेक्टर को लिखा पत्र, अपने नायक के पक्ष में सरपंच फ़ोरम

 ढीमरखेड़ा सरपंच फोरम ने डॉक्टर अजीत सिंह परिहार के स्थानांतरण निरस्त करने को लेकर कलेक्टर को लिखा पत्र, अपने नायक के पक्ष में सरपंच फ़ोरम ढीमरखेड़ा |  सरपंच फ़ोरम के अध्यक्ष महेश कुमार यादव, उपाध्यक्ष संकेत लोनी, सचिव दीनू सिंह ठाकुर एवं ढीमरखेड़ा जनपद के समस्त सरपंचों ने मिलकर कलेक्टर को पत्र प्रेषित किया, जिसमें डॉक्टर अजीत सिंह के स्थानांतरण को तत्काल निरस्त करने की मांग की गई है। सरपंच फ़ोरम का मानना है कि डॉक्टर अजीत सिंह एक ईमानदार, जिम्मेदार और मिलनसार अधिकारी हैं जिन्होंने न केवल प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता बरती है, बल्कि ग्रामीण जनता के साथ मिलकर उनकी समस्याओं को सुलझाने में भी अग्रणी भूमिका निभाई है। फ़ोरम का कहना है कि डॉक्टर अजीत सिंह के स्थानांतरण से ढीमरखेड़ा क्षेत्र के विकास कार्यों में अवरोध पैदा हो सकता है, क्योंकि उन्होंने अनेक ऐसे प्रोजेक्ट्स की शुरुआत की थी, जिन्हें पूरा करने में समय और प्रशासनिक अनुभव की आवश्यकता है। उनके स्थानांतरण से इन कार्यों की गति धीमी हो सकती है, और साथ ही, क्षेत्र की जनता को भी नुकसान हो सकता है, जो उनकी सेवाओं से काफी संतुष्ट थी। फ़ो

क्षेत्रीय विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह ने जनपद ढीमरखेड़ा के एपीओ अजीत सिंह परिहार के स्थानांतरण को निरस्त करने को लेकर मुख्यकार्यपालन अधिकारी जिला कटनी को लिखा पत्र , विधायक का पत्र नहीं विधायक के पत्र के रुप में भाजपा की प्रतिष्ठा लगी दांव पर

 क्षेत्रीय विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह ने जनपद ढीमरखेड़ा के एपीओ अजीत सिंह परिहार के स्थानांतरण को निरस्त करने को लेकर मुख्यकार्यपालन अधिकारी जिला कटनी को लिखा पत्र , विधायक का पत्र नहीं विधायक के पत्र के रुप में भाजपा की प्रतिष्ठा लगी दांव पर ढीमरखेड़ा |  विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह द्वारा अजीत सिंह परिहार, एपीओ (असिस्टेंट प्रोजेक्ट ऑफिसर) जनपद ढीमरखेड़ा के स्थानांतरण को निरस्त करने के लिए लिखा गया पत्र, क्षेत्रीय राजनीति और प्रशासनिक कार्यप्रणाली के बीच एक महत्वपूर्ण कदम है। विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह का कहना है कि अजीत सिंह परिहार का स्थानांतरण बिना किसी ठोस कारण के ढीमरखेड़ा से कर दिया गया है, जबकि उनकी कार्यप्रणाली अच्छी रही है और उन्हें क्षेत्र के सरपंचों और जनप्रतिनिधियों का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। इस संदर्भ में, विधायक ने जिला कटनी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को पत्र लिखकर यह मांग की है कि स्थानांतरण को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए। विधायकों और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच संबंध किसी भी क्षेत्र में प्रशासनिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। अजीत सिंह परिहार का स्थानांतरण