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सातवीं के छात्र को अतिथि शिक्षिका ने लाठी से पीटा शिक्षिका के रौब से डरा सहमा छात्र शाला से भागा

 सातवीं के छात्र को अतिथि शिक्षिका ने लाठी से पीटा शिक्षिका के रौब से डरा सहमा छात्र शाला से भागा



ढीमरखेड़ा | जनपद शिक्षा केंद्र ढीमरखेड़ा के अंतर्गत शासकीय माध्यमिक शाला गनयारी में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना सामने आई है, जहाँ एक अतिथि शिक्षिका द्वारा कक्षा सातवीं के एक छात्र हिमांशु पाण्डे के साथ दुर्व्यवहार किया गया। इस घटना ने न केवल उस छात्र के मनोबल को चोट पहुँचाई, बल्कि विद्यालय में छात्रों की सुरक्षा और उनकी शिक्षा के वातावरण पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अतिथि शिक्षिका देवती बर्मन ने बुधवार को हिमांशु पाण्डे से कक्षा में झाड़ू लगाने को कहा, जिस पर छात्र ने इंकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, शिक्षिका ने उसे लाठी से बेरहमी से पीट दिया, जिससे छात्र के बाएं हाथ की हथेली और पीठ पर गंभीर चोटें आईं। घटना के समय हिमांशु पाण्डे अपनी कक्षा में अन्य छात्रों के साथ पढ़ाई कर रहा था। शिक्षिका देवती बर्मन ने उसे झाड़ू लगाने के लिए कहा, जो स्पष्ट रूप से उसकी पढ़ाई के समय और उसके कर्तव्यों के विपरीत था। जब छात्र ने इस कार्य को करने से मना कर दिया, तो शिक्षिका ने अपनी स्थिति और शक्ति का दुरुपयोग करते हुए उसे शारीरिक सजा दी। शिक्षिका की ओर से न केवल अनुशासनहीनता का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे कुछ शिक्षक अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर छात्रों को भयभीत करने का प्रयास करते हैं।

*छात्र की मनोवैज्ञानिक स्थिति*

छात्र हिमांशु पाण्डे पर इस घटना का गहरा मानसिक प्रभाव पड़ा है। वह घटना के बाद से डरा-सहमा हुआ है और स्कूल जाने से घबरा रहा है। इस प्रकार के शारीरिक और मानसिक दुर्व्यवहार से बच्चों के मनोबल पर गहरा प्रभाव पड़ता है और उनकी शिक्षा में रुचि समाप्त हो सकती है। बच्चों को शिक्षा के लिए सुरक्षित और प्रेरणादायक माहौल मिलना चाहिए, न कि भय और प्रताड़ना का।

*पिता द्वारा की गई पुलिस शिकायत*

घटना के बाद, हिमांशु अपने घर पहुँचा और रोते हुए अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताया। पिता ने तुरंत अपने बेटे के साथ थाना जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस में शिकायत दर्ज कराना एक उचित कदम था, क्योंकि इस प्रकार की घटनाओं को नजरअंदाज करने से विद्यालयों में अनुशासनहीनता और बढ़ती है।

*स्कूल प्रशासन का रवैया*

इस घटना के बाद, हिमांशु के पिता ने शासकीय माध्यमिक शाला गनयारी के प्रभारी लखन बागरी से फोन पर संपर्क किया और घटना की जानकारी दी। लेकिन, स्कूल प्रशासन की ओर से जो प्रतिक्रिया आई, वह अत्यंत निराशाजनक थी। प्रभारी लखन बागरी ने मामले को गम्भीरता से लेने के बजाय, इसे दबाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि वह कटनी में हैं और जब वापस आएँगे तो शिक्षिका से बात कर समझा देंगे। यह रवैया न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि स्कूल प्रशासन को छात्रों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की कोई परवाह नहीं है।

*शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन का महत्व*

शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन का बहुत महत्व है, लेकिन अनुशासन का मतलब शारीरिक हिंसा या डर का माहौल पैदा करना नहीं है। बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण और प्रेरणादायक शिक्षण पद्धतियों का उपयोग करना चाहिए। शिक्षकों का कार्य बच्चों को प्रेरित करना और उनके नैतिक मूल्यों का विकास करना होना चाहिए, न कि उन्हें डराना और मारपीट करना।

*शिक्षकों की भूमिका और जिम्मेदारी*

शिक्षक एक समाज का निर्माता होता है। उसका कार्य न केवल छात्रों को शिक्षित करना है, बल्कि उन्हें अच्छे नागरिक बनाना भी है। इस घटना में शिक्षिका देवती बर्मन ने अपने कर्तव्यों का उल्लंघन किया है और एक शिक्षक के रूप में उनकी जिम्मेदारी की अनदेखी की है। शिक्षकों को बच्चों के प्रति संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। शारीरिक सजा देने से बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति डर बैठता है, जो उनकी विकास प्रक्रिया को बाधित करता है।

*प्रशासनिक हस्तक्षेप की आवश्यकता*

इस प्रकार की घटनाओं से निपटने के लिए प्रशासनिक स्तर पर सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। बच्चों की सुरक्षा और उनकी मनोवैज्ञानिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों के लिए कुछ नियम और दिशानिर्देश निर्धारित किए जाने चाहिए। स्कूल प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्रों के साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार न हो और यदि होता है, तो दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

*बाल संरक्षण अधिकार और कानून*

भारत में बाल संरक्षण अधिकारों के तहत बच्चों के साथ किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक हिंसा को गैर-कानूनी माना गया है। शिक्षकों को बच्चों के साथ व्यवहार करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी हर क्रिया बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर प्रभाव डालती है। हिमांशु पाण्डे के साथ जो घटना हुई, वह स्पष्ट रूप से इन अधिकारों का उल्लंघन है। शिक्षकों को नियमित रूप से बाल मनोविज्ञान और नैतिक शिक्षा के बारे में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकें। शिक्षा विभाग को इस प्रकार की घटनाओं पर सख्त निगरानी रखनी चाहिए और दोषी शिक्षकों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। स्कूलों में एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली होनी चाहिए, ताकि छात्र बिना डर के अपनी समस्याओं को प्रशासन के समक्ष रख सकें। हिमांशु पाण्डे की घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमारे शैक्षणिक संस्थानों में बच्चों की सुरक्षा के मामले में और क्या-क्या सुधार किए जा सकते हैं। शिक्षकों को अपनी भूमिका का सही तरीके से निर्वहन करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण मिले। स्कूल प्रशासन और शिक्षा विभाग को भी अपने दायित्व को समझते हुए छात्रों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए। केवल तभी हम एक स्वस्थ और शिक्षित समाज का निर्माण कर सकते हैं।

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