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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) लोकतंत्र में हिंसा का स्थान नहीं फिर भी हो रही हिंसा

 खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) 


लोकतंत्र में हिंसा का स्थान नहीं फिर भी हो रही हिंसा



*राष्ट्रपति के लेवल की सुरक्षा व्यवस्था होती है पूर्व राष्ट्रपति के लिए अमेरिका में फिर भी सुरक्षा व्यवस्था में सेंधमारी कर हो गया हमला*

*कटघरे में आ गई है अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध सुरक्षा एजेंसियां*


*दुनियाभर के नेताओं को सत्ता पाने के लिए आक्रामक और उत्तेजनात्मक भाषणों से बाज आने का संदेश भी दे गया है ट्रंप पर हुआ हमला*


*अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से प्रबल दावेदार पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर हुए निंदनीय कातिलाना हमले ने दुनिया भर की राजनीतिक पार्टियों को चेताया है कि नेता सत्ता सुंदरी का वरण करने के लिए आक्रामक, उत्तेजनात्मक बयानबाजी कर हिंसात्मक गतिविधियों को पालित-पोषित करने से बाज आयें। कुछ इसी तरह की टिप्पणात्मक चेतावनी अमेरिकी मीडिया ने भी लिखी है। लोकतंत्र के सामने राजनीतिक हिंसा से पैदा होने वाले खतरे की गंभीर चेतावनी देते हुए द न्यूयॉर्क टाइम्स तथा द वाल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है कि राजनीतिक दलों के नेताओं की जिम्मेदारी है कि उन्हें हिंसा को बढ़ावा देने वाले भडकाऊ बयान देने से बाज आना चाहिए। चुनाव में अलोकतांत्रिक प्रक्रिया की पैरोकारी करने वाले किसी एक उम्मीदवार की जीत से लोकतंत्र खत्म नहीं हो जायेगा।*


*अमेरिका के पेन्सिलवेनिया (PENNSYLVANIA) में शनिवार की शाम 6.10 बजे (भारतीय समयानुसार रविवार अलसुबह 3.40 बजे) रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद की दावेदारी करने वाले पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (78) पर चुनावी भाषण देते वक्त गोलियां चलाकर हमला किया गया। कहा जाता है कि एक गोली डोनाल्ड ट्रंप के कान को स्पर्श करते हुए निकल गई। इस हमले में एक निरपराध व्यक्ति के मारे जाने की खबर है। हमलावर की पहचान पेन्सिलवेनिया के वीथल पार्क इलाके में रहने वाले थामस मैथ्यू क्रूकस (20) के रूप में हुई है। बताया जाता है कि हमलावर ने अमेरिका के साथ कई राज्यों में प्रतिबिंबित 550 मीटर रेंज वाली एआर - 15 सेमी आटोमेटिक राइफल्स से फायरिंग की है। जिसकी एक गोली ट्रंप के कान को छूती हुई निकली। हमले के तत्काल बाद स्पाइनरों ने हमलावर को मौत की नींद सुला दिया। यह बात भी सामने आई है कि हमलावर थामस मैथ्यू ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन का रजिस्टर्ड वोटर है और उसने 2021 में पार्टी को चंदा भी दिया है। इससे कहा जा सकता है कि यह हमला विरोधियों ने नहीं समर्थकों ने किया है !*


*कहते हैं कि राजनीति में अपना उल्लू सीधा करने के लिए सब कुछ जायज है। कहीं यह हमला ट्रंप को पार्टी के भीतर से निक्की हेली और चेनी से मिल रही चुनौती और लोगों के बीच गिर रही लोकप्रियता को साधने के लिए के लिए प्रायोजित तो नहीं है ! चर्चा है कि हमले के बाद पार्टी अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में डोनाल्ड ट्रंप को अधिकाधिक प्रत्याशी घोषित कर सकती है। वैसे अमेरिका में राष्ट्रपति अथवा पूर्व राष्ट्रपति पर हमला होना कोई नई बात नहीं है। 14 अप्रैल 1865 को अब्राहम लिंकन, 2 जुलाई 1881 को जेम्स गारफील्ड, 22 नवम्बर 1963 को जान एफ कैनेडी पर हमला किया गया था जिसमें उनकी मौत हो गई थी। 14 सितम्बर 1901 को विलियम मैककिनले को न्यूयॉर्क में गोली मारी गई थी उनकी जान तो बच गई थी मगर आगे चलकर उन्हें गैग्रीन हो गया था। अमेरिका के अलावा दूसरे देशों में भी राजनीतिज्ञों को मौत के घाट उतारा गया है। जिसमें इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, बेनजीर भुट्टो, शिंजे आबे को शामिल किया जा सकता है। अक्टूबर 2017 में लास वेगास तथा नवम्बर 2022 में कोलोराडो स्प्रींस में हुए हमलों में भी 59 एवं 5 लोग मारे गए थे।* 


*देखने में आता है कि डोनाल्ड ट्रंप का पिछला राष्ट्रपति वाला कार्यकाल रहा हो अथवा वर्तमान में बतौर उम्मीदवार प्रचार प्रसार इनने हमेशा आक्रामक और उत्तेजनात्मक भाषण ही दिये हैं जो कहीं-न-कहीं अराजकता, हिंसा को बढ़ावा देते दिखाई देते हैं। भारतीय तो अपने नेताओं द्वारा दिए जाने वाले आक्रामक और उत्तेजनात्मक भाषणों के आदी हो चुके हैं !*


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता* 

_स्वतंत्र पत्रकार_

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