लाख टके का सवाल- कंसोटिया ने क्यों दिया था एसएलपी वापस लेने का आदेश?
ग्राम झिन्ना का मामला
ढीमरखेड़ा । अपर मुख्य सचिव वन अशोक वर्णवाल ने पूर्व एसीएस वन जेएन कंसोटिया के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें कटनी जिले की तहसील ढीमरखेड़ा के ग्राम झिन्ना की खदान के मामले में सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस लेने का आदेश दिया था। अपने आदेश को तत्काल अमल में लाने के लिए कंसोटिया ने बाकायदा डीएफओ कटनी को कारण बताओं नोटिस तलब किया था। यहां यह भी तथ्य उल्लेखनीय है कि जब वर्णवाल प्रमुख सचिव वन थे तब उन्होंने भी एसएलपी वापस लेने का आदेश जारी किया था। अब वही बता सकते है कि वे तब सही थे या फिर अब..?
गत दिवस वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने वन मुख्यालय को निर्देश दिये हैं कि यदि यह केस अब तक वापस नहीं लिया गया है तो केस वापस लेने की कार्रवाई आगामी आदेश तक रोक दी जाये। वर्णवाल के आदेश के बाद जंगल महकमे में लाख टके का सवाल उठ रहा है कि आखिर किस अदृश्य शक्ति के दबाव में आकर पूर्व एसीएस कंसोटिया ने एसएलपी वापस लेने का आदेश जारी किया था। एसएलपी वापस लेने संबंधित आदेश जारी करने के पूर्व 13 अक्टूबर को अपर मुख्य सचिव वन कंसोटिया की अध्यक्षता में एक विशेष बैठक बुलाई गई थी। बैठक में अतुल कुमार मिश्रा सचिव वन, अशोक कुमार पदेन सचिव, आरके गुप्ता तत्कालीन वन बल प्रमुख, अतुल कुमार श्रीवास्तव तत्कालीन पीसीसीएफ वर्किंग प्लान और अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक भू अभिलेख डॉ वीएस अन्नागिरी भी उपस्थित थे। यह बैठक में ग्राम झिन्ना एवं हरैया तहसील ढीमरखेड़ा जिला कटनी में स्वीकृत खनिज पट्टे विवाह के निराकरण के लिए बुलाई गई थी। उल्लेखनीय है कि उक्त खदान के वन भूमि में आने के कारण इस पर रोक लगाई गई थी परन्तु खदान स्वामी हाईकोर्ट से जीत गया था जिस पर वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी।
*सुप्रीम कोर्ट में 2017 से लंबित है मामला*
* सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में प्रकरण केंद्रीय साधिकार कमेटी (सीईसी) को जांच रिपोर्ट देने के लिए निर्देशित किया।
* सीईसी ने अपने जांच प्रतिवेदन में उल्लेख किया कि आवंटित खनिज पट्टे की भूमि राजस्व भूमि ही है।
* सीईसी के आदेश के बाद सितंबर 2019 में कलेक्टर कटनी के समक्ष डीएफओ द्वारा भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 17 के अंतर्गत अपील की।
* फरवरी 2020 में मुख्य सचिव ने स्पष्ट निर्देश दिए कि इस प्रकरण में न्यायालयीन प्रक्रिया से प्रदेश के राजस्व में सतत हानि हो रही है। जबकि विचारण न्यायालय, उच्च न्यायालय एवं वन व्यवस्थापन अधिकारी द्वारा विस्तृत आदेश पारित करते हुए वन विभाग का दावा खारिज किया गया है। उच्चतम न्यायालय में एस०एल०पी० दायर करते समय भी विधि विभाग द्वारा अपने स्वयं से जोखिम पर ही दायर करने का परामर्श दिया था। वन विभाग द्वारा दायर याचिकाओं में कोई ठोस आधार या नया तथ्य भी नहीं है। ऐसी स्थिति में मुख्य सचिव द्वारा निर्देशित किया गया कि वन विभाग उल्लेखित दोनों याचिकाओं / प्रकरणों की नियमानुसार वापसी किये जाने हेतु आवश्यक कार्यवाही करें। इस संबंध में विधि विभाग एवं राजस्व विभाग के अभिमत प्राप्त कर त्वरित कार्यवाही की जाये। मुख्य सचिव ने इस प्रकार के अन्य विवादों के स्थायी हल निकालने हेतु विभाग को आवश्यक प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिये।
* डीएफओ कटनी ने 2021 में कलेक्टर न्यायालय में एक शपथ पत्र देकर अपील वापस ले ली।
* 2022 में तत्कालीन प्रमुख सचिव वन अशोक वर्णवाल ने एसएलपी वापस लेने का निर्णय लिया। इसके वापस लेने के लिए याचिका तैयार होकर शासकीय अधिवक्ता सलिल चौधरी के पास भेजा गया किन्तु सुप्रीम कोर्ट में उसे प्रस्तुत नहीं किया गया। 2022 से एसएलपी वापस लेने की एक्सरसाइज शुरू होती है और फिर थम जाती है। यह सतत प्रक्रिया जारी है।
*क्या है मामला*
शिकायती पत्र के मुताबिक, कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका को मध्य प्रदेश की तत्कालीन दिग्विजय सरकार के कार्यकाल में 1994 से 2014 तक की अवधि के लिए 48.562 हेक्टेयर भूमि पर खनिज करने का पट्टा मिला था। खनिज पट्टा आवंटित होने की पीछे भी बहुत कुछ छिपा है। दरअसल मध्य प्रदेश शासन ने ग्राम झिन्ना तहसील ढीमरखेड़ा जिला कटनी के वन क्षेत्र की 48.562 हेक्टेयर भूमि पुराना खसरा नम्बर 310, 311, 313, 314/1, 314/2, 315, 316, 317, 318, 265, 320 में खनिज के लिए एक अप्रैल 1991 में 1994 से लेकर 2014 तक की अवधि के लिए निमेष बजाज के पक्ष में खनिज पट्टा स्वीकृत किया था। जिसे वर्ष 1999 में मध्य प्रदेश शासन के खनिज विभाग के आदेश से 13 जनवरी 1999 को उक्त खनिज पट्टा मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका प्रोप्राइटर आनंद गोयनका के पक्ष में हस्तांतरित किया गया। लेकिन साल 2000 में वन मंडल अधिकारी कटनी के पत्र के आधार पर कलेक्टर कटनी ने आदेश पारित कर लेटेराइट फायर क्ले और अन्य खनिज के खनन पर रोक लगा दी थी।
*वन भूमि का इतिहास-*
ग्राम झिन्ना की भूमि जमींदारी उन्मूलन के बाद वन विभाग को वर्ष 1955 में 774.05 एकड़ भूमि प्रबंधन में मिली थी। जो वर्ष 1908-09 से 1948-49 तक जमींदार रायबहादुर खजांची, बिहारी लाल व अन्य के नाम दर्ज थी जिसे 10 जुलाई 1958 की सूचना और एक अगस्त 1958 की प्रकाशन तिथि से संरक्षित वन घोषित किया गया। इसके बाद भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 4 की अधिसूचना क्रमांक डी-3390-3415-07-दस-3 दिनांक 24 सितम्बर 2007 प्रकाशन दिनांक 14 दिसम्बर 2007 से वनमंडल झिन्ना के अंतर्गत ग्राम झिन्ना के खसरा नम्बर 304, 333, 320 में कुल रकबा 153.60 एकड़ क्षेत्र अधिसूचित कर एसडीएम ढीमरखेड़ा को वन व्यवस्थापन अधिकारी नियुक्त किया गया जो कि वन विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज है। वर्ष 2019-19 में एसडीएम ढीमरखेड़ा (वन व्यवस्थापन अधिकारी) द्वारा राजस्व प्रकरण क्रमांक /01अ-19(4)/2018-19 में पारित आदेश दिनांक 18-9-2019 के अंतर्गत उल्लेख किया गया कि वादग्रस्त भूमि खसरा नम्बर 320 वर्ष 1906 से 1951 तक मालगुजारी की जमीन नहीं थी। एसडीएम ढीमरखेड़ा (वन व्यवस्थापन अधिकारी) द्वारा पारित आदेश दिनांक 18-07-2008, 18-10-2011 और 18-09-2019 को पारित प्रत्येक आदेश में उक्त भूमि को वन भूमि मानने से इंकार किया। जिसे कलेक्टर कटनी द्वारा अपने आदेश दिनांक 4-मार्च 2010, 19-मार्च -2013 और 19-दिसम्बर -2019 के माध्यम से एसडीएम ढीमरखेड़ा (वन व्यवस्थापन अधिकारी) द्वारा पारित आदेशों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई गई है।
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