*खरी-अखरी*(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं)
अधूरी हसरतों का इल्जाम हम पर लगाना ठीक नहीं, वफा खुद से नहीं होती खता......... की कहते हो
_चुनाव आयोग, आरएसएस, भाजपा बतायें हसरतें किसकी पूरी की गई, वफा किसने नहीं की और खता का इल्जाम किस पर लगे_
*इन दिनों देशभर तीन मुद्दे सुर्खियों में छाये हुए हैं। जिन पर प्रबुद्ध वर्ग भी माथापच्ची करने में लगा हुआ है। ये मुद्दे हैं - चुनाव आयोग-ईवीएम, आरएसएस-भाजपा और नीट । चुनाव परिणाम आने के बाद भी ईवीएम का जिन्न बोतल में वापस जाने के बजाय बेताल बनकर विक्रम के कांधे लटका चुनाव आयोग की फजीहत करा रहा है। ये अलग बात कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार अपने चेहरे की शिकन को छिपाने का योगाभ्यास कर रहे हैं। वैसे तो ईवीएम के खिलाफ एक दशक से आंदोलन जैसा चल रहा है मगर चुनाव आयोग और सरकार जनता की आशंकाओं - कुशंकाओं को दूर करने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं। जनता की आशंकाएं - कुशंकाएं तो तब दम तोड़ देती हैं जब न्याय की आखिरी उम्मीद भी चुनाव आयोग और सरकार वाला राग देश की सबसे बड़ी अदालत अलापने लगती है। 2014, 2019 या उसके पहले हुए चुनावों में ईवीएम पर चर्चा चुनाव के दौरान या ज्यादा हुआ तो चुनाव परिणाम आने के बाद दो - चार दिन बाद बंद हो जाती थी। मगर इस बार ईवीएम का जिन्न बोतल में बंद होने को तैयार ही नहीं हो रहा है। पीएम मोदी की आंखें तो ईवीएम का जनाजा देखने को तरस रहीं हैं। चुनाव बाद अपनी जीत की खुशी का इजहार करते हुए उन्होंने चुनाव आयोग के आयुक्तों की तारीफ करते हुए अपनी पार्टी के लोगों से पूछा भी था कि ईवीएम जिंदा है या मर गई।*
*महाराष्ट्र की उत्तर - पश्चिम लोकसभा सीट के चुनाव परिणाम में की गई तथाकथित धांधली सुर्खियों में बनी हुई है। जहां शिवसेना शिंदे गुट के उम्मीदवार रविन्द्र वायकर को पुनर्मतगणा के बाद 48 वोटों से जीता घोषित कर दिया गया जबकि इसके पहले शिवसेना उध्व ठाकरे गुट के प्रत्याशी अमोल कीर्तिकर ने 2000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी। ध्यान देने वाली बात यह है कि शिवसेना शिंदेगुट महाराष्ट्र सरकार का हिस्सा है। यहां पर आरोप शिंदेगुट वाली शिवसेना के उम्मीदवार रविन्द्र वायकर के करीबी नातेदार मंगेश पांडिलकर पर लगाया गया है कि उनके पास चुनाव अधिकारी दिनेश गुरव द्वारा दिया गया एक मोबाईल मतगणना स्थल पर उपयोग करते हुए देखा गया जिसमें आने वाले ओटीपी नम्बर से ईवीएम को अनलाॅक किया गया था। खबर यह है कि पुलिस ने मंगेश पांडिलकर के साथ ही दिनेश गुरव के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कर ली है। मोबाईल को बरामद कर फोरेंसिक जांच के लिए भेजा जा रहा है। इसी तरह की एक खबर है मध्यप्रदेश से भी मिल रही है जहां भाजपा ने क्लीन स्विप करते हुए लोकसभा की सभी 29 सीटों पर कब्जा कर लिया है। चुनाव अधिकारियों और भाजपा पर सांठगांठ कर चुनाव में धांधली कर पारदर्शिता व निष्पक्षता का चीरहरण किए जाने का आरोप लगाते हुए सीनियर एडवोकेट नरेन्द्र मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। कई जगह तो ईवीएम मशीनें 100 प्रतिशत तक चार्ज पाई गईं जिसकी संभावना नगण्य होती है ।*
*आधा सैकड़ा से ज्यादा लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां ईवीएम में डाले गए वोटों से या तो ज्यादा या फिर कम वोट गिने गये हैं। ज्यादा गिने गये वोटों की सफाई देते हुए आयोग कहता है कि गिने गये वोटों में पोस्टल वोट शामिल हैं मगर कम गिने गये वोटों के मामले में वह चोरों माफिक मुंह छिपा लेता है। उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु की तिरुवल्लूर को लिया जा सकता है जहां 19 अप्रैल को हुए पहले फेज में डाले गये कुल मतों की जानकारी देते हुए चुनाव आयोग ने 25 मई को बताया था कि यहां पर ईवीएम में 14 लाख 30 हजार 738 वोट डाले गए हैं मगर 4 जून को मतगणना में 14 लाख 13 हजार 947 वोट ही गिने गये। मतलब 16 हजार 791 वोट कम गिने गये। तो सवाल यही है कि बाकी वोट कहां चले गए ? यह अकेला मामला नहीं है। देशभर के मतगणना केन्द्रों में ईवीएम में डाले और गिने गये वोटों में 5 लाख 54 हजार 598 वोटों का अंतर बताया गया है।*
*मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का रवैया चुनाव की घोषणा से लेकर अंत तक पक्षपाती और संदेहास्पद दिखाई दिया है। चुनाव आयोग अपने बनाये गये नियमों का पालन करवाने में नाकामयाब साबित हुआ है खासतौर पर भाजपा के मामले में तो वह भाजपा की पाॅलिटिकल विंग की तरह काम करते हुए दिखा है। कोलकाता हाईकोर्ट ने भी चुनाव आयोग की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वह निष्पक्ष तरीके से अपने ही नियमों का पालन नहीं करवा पा रहा हैं है। चुनाव आयोग ने नियम बनाया है कि कोई भी राजनीतिक दल जाति, धर्म के आधार पर नफरती और अलगाव पैदा करने वाली बातों के आधार पर वोट नहीं मांग सकता है। मगर 2024 के पूरे चुनाव प्रचार के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम ने खुलेआम सार्वजनिक मंचों से विशेष धर्म - जाति को टारगेट करते हुए नफरती और अलगाववादी भाषण देते हुए वोट मांगे। मगर चुनाव आयुक्तों ने पीएम मोदी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना तो दूर चेतावनी देने तक का साहस नहीं दिखाया। 2019 तक वोटिंग खत्म होने के 24 - 48 घंटे के भीतर ईवीएम में डाले गए मतों के आंकड़े मय प्रतिशत में जारी कर दिए जाते थे इस बार प्रथम चरण के मतदान से 11 दिन बाद केवल प्रतिशत जारी किया गया। दूसरे चरण में भी चार दिन की देरी की गई। जब देशभर में हो-हल्ला मचा तथा सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज कराया गया तो वहां समय लगने वाला झूठ बोल कर अदालत को गुमराह किया गया। फिर पांचवें फेस की वोटिंग के बाद चुनाव आयोग 24 घंटे के भीतर आंकड़े मय प्रतिशत जारी करने लगा। मगर सातवें फेस के आंकड़े मतगणना हो जाने के 2 दिन बाद जारी किए गए। सवाल उठता है कि जब चुनाव आयोग के पास सातों फेस के कुल आंकड़े 3 जून तक नहीं थे तो फिर 4 जून को मतगणना किस आधार पर कराई गई ? चुनाव की घोषणा करने के दौरान सीईसी राजीव कुमार द्वारा कही गई शायरी राजीव कुमार से ही सवाल पूछती है कि वे बतायें कि किसकी हसरत पूरी की गई, वफा किसने नहीं की और खता का इल्जाम किस पर लगना चाहिए ? राजीव कुमार का शेर था "अधूरी हसरतों का इल्जाम हम पर लगाना ठीक नहीं, वफा खुद से नहीं होती खता ईवीएम की कहते हो"।*
*पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा अपंजीकृत संगठन के मुखिया मोहन भागवत को सरकारी सुख सुविधाएं मुहैया कराने के बाद 2015 से हाशिये पर ढकेल दिए गए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी भाजपा को अपने बूते सरकार बनाने लायक सीटों की कमी होते ही नैतिकता और मर्यादा का पाठ पढाना शुरू कर दिया। देशवासी पूछ रहे हैं कि मोदी और मोदी सरकार द्वारा पिछले दस सालों में ना जाने कितने अनैतिक और अमर्यादित कारनामों को अंजाम दिया गया तब कहां था आरएसएस, उसका मुखिया, उससे जुड़े अन्य संगठन किसी के भी मुख से दिखावे के लिए ही सही एक शब्द नहीं निकला। अगर धोखे से भी भाजपा के अपने बूते सरकार बनाने लायक सांसद जीत जाते तो आरएसएस 2014 और 2019 की तरह मुंह सिल कर बैठी होती। आरएसएस प्रमुख और उसके दूसरे दर्जे के लोगों की बयानबाजी जनता को बेवकूफ़ बनाने और अपने पापों पर पर्दादारी से ज्यादा नहीं है। दोनों के चाल, चरित्र पर कोई फर्क नहीं है हां चेहरे पर लगाया जाने वाला मुखौटा समय, काल, परिस्थिति के हिसाब से जरूर बदलता रहता है।*
*जिस दिन लोकसभा के चुनाव परिणाम घोषित किये जाते हैं उसी दिन नीट का परीक्षा परिणाम भी घोषित किया जाता है। चुनाव परिणाम से जहां भाजपा के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगती है वहीं नीट के नतीजे 24 लाख बच्चों में मायूसी भर देते हैं । खास बात यह है कि ये वो छात्र नहीं है जिनने यूपी पुलिस में भर्ती होने के लिए परीक्षा दी हो और पर्चा लीक हो गया। ये वे बच्चे भी नहीं हैं जिनने मध्यप्रदेश में पटवारी बनने के लिए इम्तिहान दिया हो और परीक्षा केंसिल कर दी गई। न ही ये बच्चे अग्निवीर में भर्ती होने वाले हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे देश के सबसे ऊंचे तबके से आने वाले हैं। साथ ही इनमें से अधिकतर बच्चों का परिवार बीजेपी को सपोर्ट करने वाला है। अब तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। नीट का एक्जाम कराने वाली ऐजेंसी ने परीक्षा में की गई धांधलेबाजी को काफी हद तक स्वीकार कर आगामी कार्रवाई शुरू कर दी है। मगर दुर्भाग्य है कि देश को एक ऐसा शिक्षा मंत्री मिला है जिसने बिना जांच-पड़ताल किये कह दिया कि परीक्षा में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। हालांकि बाद में अपने कहे से पलटते हुए परीक्षा में की गई धांधली को मान लिया है। देशभर में नीट की परीक्षा देने वाले छात्र - छात्राएं न्याय की गुहार लगा रहे हैं और पीएम मंदिर - मंदिर माथा टेक रहे हैं। उनके मुंह से अब तक सहानुभूति का "स" तक नहीं निकला है ।*
*वैसे यह पहली बार नहीं है इसके पहले भी महिला पहलवानों पर हुए यौन शोषण के खिलाफ उन्होंने कुछ नहीं कहा बल्कि वे यौनाचार करने वालों को संरक्षित करते दिखाई दे रहे थे। चुनाव प्रचार के दौरान तो वे सैकड़ों महिलाओं के यौन शोषण के आरोपी के पक्ष में वोट तक मांग रहे थे। तकरीबन सालभर तक तीन काले कृषि कानूनों को वापिस लिए जाने की मांग करने वाले किसानों के पास वे चार कदम चलकर जाने का साहस तक नहीं जुटा पाये। पीएम मोदी उल्टे आंदोलनरत किसानों में से कुछ कालकलवित हुए किसानों के लिए तो यह तक कह दिया कि क्या वे मेरे लिए मरे। देश का एक राज्य मणिपुर पिछले सालभर से नस्लीय हिंसा से जल रहा है। भीड़ महिलाओं को नग्न कर उनका जुलूस निकालती है। उनके जनान्गों पर हाथ फेरती है और पीएम मोदी की संवेदनशीलता पर जूं तक नहीं रेंगती। वे आज तक (एकबार फिर से पीएम की शपथ लेने के बाद भी) मणिपुर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाये । मणिपुर की घटना सीधे-सीधे पीएम नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का फेलुअर है। इसी तरह नीट की परीक्षा की धांधली शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और रेल दुर्घटना रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की अपने कर्तव्यों की विफलता है। कहा जा सकता है कि भाजपा के कुनबे में प्रतिभाशालियों की भारी कमी है। जिसके सबसे बड़े सबूत तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह हैं।*
*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता*
_स्वतंत्र पत्रकार_
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