महिला सशक्तिकरण केवल दिखावा, आज राजनीति में महिला सशक्तिकरण के पद पर हावी है पुरुष वर्ग
ढीमरखेड़ा | आज महिला सशक्तिकरण को मजबूत बनाने के लिए केंद्र एवम सभी राज्य सरकारे वचनबद्ध है। ऐसे मे यह प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या उनके अधिकार एवं पद का सही उपयोग वह कर रही है कि कोई और उनके पद और कुर्सी के अधिकारों का प्रयोग कर रहा है। न्याय पालिका, कार्य पालिका, व्यवस्थापिका, तीनो से यह प्रश्न पूछती है कि क्या भारत के संविधान पर यह कही लिखा है कि यदि महिला राजनीतिक पद पर आसीन है तो उसके सम्पूर्ण दायित्व अधिकार का परिपालन पुरुष वर्ग करे केवल मात्र पुतले की तरह वह कार्य करे क्या ऐसा होना न्यायसंगत है? यदि है तो फिर यदि महिला डॉक्टर हो तो उसके बदले पुरुष वर्ग ईलाज करे, महिला कलेक्टर हो तो उनका पति कलेक्टर की कुर्सी पर बैठे, मजिस्ट्रेट महिला हो तो उनके पति न्याय करे, महिला शिक्षक हो तो उसकी जगह उनका पति अध्यन कराये, अर्थात जब किसी भी सरकारी पद पर यह नही हो सकता तो राजनीतिक पद पर ऐसा क्यो यह एक प्रश्न चिन्ह खड़े करता है। मेरी कलम यह प्रश्न पूछना चाहती है कि आखिर ऐसे मे महिला आरक्षण क्यो जब सब पुरुष को ही करना है तो महिला आरक्षण को बन्द कर दीजिये। यह कहा का औचित्य है कि यदि महिला सांसद, विधायक, महापौर नगर पालिका अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद हो तो इन सभी को पुतला बनाकर स्वयं सम्पूर्ण अधिकारों का प्रयोग कर सभी जगह जाते है। आज तो एक ट्रेड चल गया है जैसे श्री मति जया अमिताभ बच्चन यदि जया बच्चन पार्षद है तो जया बच्चन ही पार्षद के रूप मे कार्य करे न की उनका पति अथवा पुत्र या कोई और संपादक राहुल पाण्डेय की कलम एक आकलन के रूप मे कहती है कि आज देखने को मिल रहा है कोई भी कार्यक्रम हो महिला पीछे रहेंगी उनके परिवार ही आगे ही आगे दिखेंगे। आज यह इतना हावी होता जा रहा है कि कार्यक्रम पर प्रोटोकाल पर भी अपना अतिक्रमण किए हुए है। अपनी पत्नी से अपनी पहचान बनाते है, क्या यह सब जो हो रहा है वह उचित है कृपया विचार कीजिये यदि ऐसा ही करना है तो मेरी कलम कहती है बन्द होना चाहिए महिला सशक्तिकरण। अर्थात महिला यदि राजनीतिक पद पर आसीन है तो वह ही अपने अधिकारों के साथ कुर्सी पर विराजमान हो क्योकि लोकतंत्र की जनता ने चुनकर भेजा है, यदि उनकी जगह उनके परिवार का कोई सदस्य अधिकार के साथ 56 इंच का सीना रखकर उनके ऑफिस मे बैठता है तो यह लोकतंत्र के विश्वास का हनन होगा कही ऐसा करने से महिला सशक्तिकरण होने के बजाए कमजोर तो नही हो रहा है। ऐसे मे संपादक राहुल पाण्डेय की कलम कहती है कि यदि जनता ने महिला को चुना है तो महिला को ही स्वतंत्रता के साथ कार्य करने दिया जाए नही तो राजनीतिक पद पर महिला आरक्षण रिजर्व कोटा को बंद कर दिया जाए यह दिखावा नाम मात्र का वैकल्पिक पुरुष वर्ग के लिए पर्दे के पीछे राजनीतिक उनके नाम की आड़ लेकर अधिकार पद का दुरुप्रयोग करने की कही छूट तो नही दी गई हो सकता है राजनीति मे सब जायज है अर्थात चोर - चोर मौसेरे भाई।
*राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति*
जेंडर समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्यों और नीति निर्देशक सिद्धांतों में प्रतिपादित है। संविधान महिलाओं को न केवल समानता का दर्जा प्रदान करता है अपितु राज्य को महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव के उपाय करने की शक्ति भी प्रदान करता है।लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के ढांचे के अंतर्गत हमारे कानूनों, विकास संबंधी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उन्नति को उद्देश्य बनाया गया है। पांचवी पंचवर्षीय योजना ( 1974 - 78 ) से महिलाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति कल्याण की बजाय विकास का दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। हाल के वर्षों में, महिलाओं की स्थिति को अभिनिश्चित करने में महिला सशक्तीकरण को प्रमुख मुद्दे के रूप में माना गया है। महिलाओं के अधिकारों एवं कानूनी हकों की रक्षा के लिए वर्ष 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। भारतीय संविधान में 73 वें और 74 वें संशेाधनों (1993) के माध्यम से महिलाओं के लिए पंचायतों और नगरपालिकाओं के स्थानीय निकायों में सीटों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है जो स्थानीय स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
*विकास प्रक्रिया में जेंडर परिप्रेक्ष्य को शामिल करना*
उत्प्रेरक, भागीदार और प्राप्तकर्ता के रूप में विकास की सभी प्रक्रियाओं में महिलाओं के परिप्रेक्ष्यों का समावेशन सुनिश्चित करने के लिए नीतियां, कार्यक्रम और प्रणालियां बनाई जाएंगी। जहां कहीं भी नीतियों और कार्यक्रमों में दूरियां होंगी वहां इन दूरियों को पाटने के लिए महिला विशिष्ट उपाय किए जाएंगे। मेनस्ट्रीमिंग के ऐसे तंत्रों की प्रगति का समय-समय पर आकलन करने के लिए समन्वय तथा मॉनीटरिंग तंत्र भी स्थापित किए जाएंगे। इसके परिणामस्वरूप महिलाओं से संबंधित मुद्दों और सरोकारों का विशेष रूप से निराकरण होगा और ये सभी संबंधित कानूनों, क्षेत्रीय नीतियों, कार्रवाई योजनाओं और कार्यक्रमों में दिखाई देंगे।
*महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण गरीबी उन्मूलन*
स्मरण रहे कि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों में महिलाओं की जनसंख्या बहुत ज्यादा है और वे ज्यादातर परिस्थितियों में अत्यधिक गरीबी में रहती हैं, अन्तर गृह और सामाजिक कड़वी सच्चाइयों को देखते हुए, समष्टि आर्थिक नीतियां और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम ऐसी महिलाओं की आवश्यकताओं और समस्याओं का विशेष रूप से निराकरण करेंगे। ऐसे कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में सुधार होगा जो पहले से ही महिलाओं के लिए विशेष लक्ष्य के साथ महिला उन्मुख हैं। महिलाओं की सक्षमताओं में वृद्धि के लिए आवश्यक समर्थनकारी उपायों के साथ उन्हें अनेक आर्थिक और सामाजिक विकल्प उपलब्ध कराकर गरीब महिलाओं को एकजुट करने तथा सेवाओं की समभिरूपता के लिए कदम उठाए जाएंगे।
*महिलाएं और अर्थव्यवस्था*
ऐसी प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी को संस्थागत बनाकर बृहद् आर्थिक और सामाजिक नीतियों के निर्माण एवं कार्यान्वयन में महिलाओं के परिप्रेक्ष्य को शामिल किया जाएगा। उत्पादकों तथा कामगारों के रूप में सामाजिक-आर्थिक विकास में उनके योगदान को औपचारिक और गैर औपचारिक (घर में काम करने वाले कामगार भी शामिल) क्षेत्रों में मान्यता दी जाएगी तथा रोजगार और उनकी कार्यदशाओं से संबंधित समुचित नीतियां बनाई जाएंगी। इन उपायों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं।उत्पादकों और कामगारों के रूप में महिलाओं के योगदान को प्रतिबिम्बित करने के लिए, जहां भी आवश्यक हो, जैसे कि जनगणना रिकार्ड में, काम की परम्परागत संकल्पनाओं की पुन: व्याख्या करना तथा पुन: परिभाषित करना।
*महिलाएं और कृषि*
कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में उत्पादक के रूप में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, संकेंद्रित प्रयास किए जाएंगे जिससे यह सुनिश्चित हो कि प्रशिक्षण, विस्तार और विभिन्न कार्यक्रमों के लाभ उनकी संख्या के अनुपात में उन तक पहुंचें। कृषि क्षेत्र के महिला कामगारों को लाभ पहुंचाने के लिए मृदा संरक्षण, सामाजिक वानिकी, डेयरी विकास और कृषि से संबद्ध अन्य व्यवसायों जैसे कि बागवानी, लघु पशुपालन सहित पशुधन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन इत्यादि में महिला प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार किया जाएगा।इलेक्ट्रानिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी, खाद्य प्रसंस्करण एवं कृषि उद्योग तथा वस्त्र उद्योग में महिलाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका इन क्षेत्रों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण रही है। विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में भागीदारी के लिए उन्हें श्रम विधान, सामाजिक सुरक्षा और अन्य सहायता सेवाओं के रूप में व्यापक सहायता दी जाएगी।इस समय महिलाएं चाहकर भी कारखानों में रात्रि पारी में काम नहीं कर सकती हैं। महिलाओं को रात्रि पारी में काम करने में समर्थ बनाने के लिए उपयुक्त उपाय किए जाएंगे। इसके लिए उन्हें सुरक्षा, परिवहन इत्यादि जैसी सहायता सेवाएं भी प्रदान की जाएंगी।
*पंचायती राज संस्थाएं*
भारतीय संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधनों (1993) ने राजनीतिक अधिकारों की संरचना में महिलाओं के लिए समान भागीदारी तथा सहभागिता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण सफलता दिलाई है। पंयायती राज संस्थाएं सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की सहभगिता बढ़ाने की प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाएंगी। पंचायती राज संस्थाएं तथा स्थनीय स्वशासन संस्थाएं बुनयादी स्तर पर राष्ट्रीय महिला नीति के क्रियान्वयन तथा निष्पादन में सक्रिय रूप से शामिल होंगी। महिलाओं और लड़िकयों के लिए शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित किया जाएगा। भेदभाव मिटाने, शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने, निरक्षरता को दूर करने, लिंग संवेदी शिक्षा पद्धति बनाने, लड़कियों के नामांकन और अवधारण की दरों में वृद्धि करने तथा महिलाओं द्वारा रोजगार,व्यावसायिक, तकनीकी कौशलों के साथ-साथ जीवन पर्यन्त शिक्षण को सुलभ बनाने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे। माध्यमिक और उच्च शिक्षा में लिंग भेद को कम करने की ओर ध्यानाकर्षित किया जाएगा। लड़कियों और महिलाओं, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों/अन्य पिछड़ा वर्गों/अल्पसंख्यकों समेत कमजोर वर्गों की लड़कियों और महिलाओं पर विशेष ध्यानाकर्षित करते हुए मौजूदा नीतियों में समय संबंधी सेक्टोरल लक्ष्यों को प्राप्त किया जाएगा। लिंग भेद के मुख्य कारणों में एक के रूप में लैंगिक रूढि़बद्धता का समाधान करने के लिए शिक्षा पद्धति के सभी स्तरों पर लिंग संवेदी कार्यक्रम विकसित किए जाएंगे।
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