घंटाघर रोड पर अतिक्रमण नहीं टूट सकता सैकड़ों नोटिस जरूर टूटकर मिट्टी में मिल गए, बेजा कब्जे की ठोकर से ट्रिपल एंजिन सरकार के कलपुर्जे चौपट
घंटाघर रोड पर अतिक्रमण नहीं टूट सकता सैकड़ों नोटिस जरूर टूटकर मिट्टी में मिल गए, बेजा कब्जे की ठोकर से ट्रिपल एंजिन सरकार के कलपुर्जे चौपट
कटनी। जिले की राजनीति की आन-बान-शान क्या है, इसका सरल जबाव है- घंटाघर जगन्नाथ रोड। पिछले पांच विधान सभा चुनावों मेें और इतने ही लोक सभा चुनाव में इस सडक़ का मुद्दा अजेय बनकर तना रहता है। घंटाघर रोड अच्छी सडक़ बनने वाली है- ऐसा भोंपू भाजपा की ट्रिपल एंजिन वाली सरकार ने हमेशा बजाया है, लेकिन न तो सडक़ बनी, न ही इसके किनारों पर आबाद अवैध कब्जे टूटे। ननि प्रशासन ने अवैध कब्जों पर नोटिस के तीर छोड़े, सब तीर टुकड़े-टुकड़े होकर टूट गए और अतिक्रमण की अखण्ड सम्प्रभुता पर आंच नहीं आई। बेजा कब्जा की दीवारों पर ननि ने दस साल पहले नाप लिख दी कि इतना बेजा कब्जा हटाया जाएगा, लेकिन एक सेंटीमीटर भी कब्जा नहीं हटाया। ये नाम जोख के निशान आज भी दीवारों पर अंकित है, जिसे देखने पढऩे वाले समझ गए हैं कि यह प्रशासनिक झूठ की इबारतों के अलावा कुछ नहीं है। वस्तु स्थिति यह है कि परचून ट्रांसपोर्ट का काम घंटाघर रोड से होता है। पहले थोक गल्ला मंडी यही हुआ करती थी जो 1986 में पहरूआ मंडी में बमुश्किल शिफ्ट कराई गई। सतना-जबलपुर तथा शहडोल-अमरकंटक के राष्ट्रीय राजमार्गों को जोडऩे वाली घंटाघर रोड छह किमी लंबी है। जगन्नाथ मंदिर से गर्ग चौराहे तक लगभग दो किमी की सडक़ मुख्य बाजार में होने से अत्यंत मंहगी है, शासकीय रेट से कई गुना ज्यादा इसका मूल्य है। स्वाभाविक है कि इस पर किए गए अतिक्रमणों की कीमत करोड़ों की है। खिरहनी ब्रिज से शहडोल बायपास तक जहां सडक़ पर लोगों का अतिक्रमण नहीं था, उनके स्वत्व व मिलकियत की जमीनें ननि ने बुलडोजर से तुड़वा कर सडक़ चौड़ी बनवा ली। चार भू-स्वामियों ने हाईकोर्ट का सहारा लेकर अपनी जमीन पर स्टे लिया और बुलडोजर से बच गए। लेकिन घंटाघर से जगन्नाथ चौक तक की सडक़ अतिक्रमणों की वजह से संकरी हो गई है, यहां पर निगम और जिला प्रशासन की दादागिरी फुस्स पड़ गई। दस साल पहले बेजा कब्जे की नाप लिखकर निशान लगाए कि यहां से यह अतिक्रमण हटाया जाएगा।
*भाजपा से जुड़े होने का लाभ मिला*
घंटाघर रोड पर बेजा कब्जे न टूटने के पीछे कुछ प्रभावशाली अतिक्रामकों का भाजपा संगठन से जुड़ा होना मुख्य कारण माना जाता है। भाजपा की इस कमजोरी की आलोचना कटनी में भी देखी जा रही है। इसीलिए सडक़ों से अतिक्रमण कभी नहीं हटाया जा सकता, जब तक भाजपा का शासन है, यह बात अब खुलेआम बोली जा रही है। सत्य दिखाई भी दे रहा है, समझ में भी आ रहा है कि खिरहनी ब्रिज के बाद निजी जमीन भी प्रशासन ने सडक़ चौड़ीकरण के लिए हथिया ली और घंटाघर में सरकार अपनी ही जमीन नहीं ले पाई। यहां अन्याय का पलड़ा भारी रहा है। इसलिए प्रशासन ने स्वयं को अतिक्रामकों के समक्ष समर्पण कर दिया है।
*ननि भी सकरी सड़क बनाने हुआ विवश*
घंटाघर रोड की दुर्गति के मुद्दे ने नगर निगम चुनाव विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव तक हमेशा ऊछाल भरी है। आंदोलन प्रदर्शनों से प्रभावित होकर ननि प्रशासन, महापौर ने बेहतर समझा, जो है, जितनी बची है कम से कम उतनी ही सडक़ बना दी जाए, ताकि सडक़ पर नागरिक चल पाएं। इसलिए टेंडर निकला निर्माण शुरू हो गया, और पूरा भी हो जाएगा लेकिन अतिक्रमण नहीं हटेगा, यह प्रदेश सरकार और शासन प्रशासन सबके लिए शर्म की बात है। तिलक राष्ट्रीय स्कूल के सामने सार्वजनिक कुआ होता था, नाला का रास्ता था, अब कुछ नहीं दिखता। यही हाल जालपा मढिय़ा तक है जहां अतिक्रमण को ट्रिपल एंजिन सरकार ने हृदय से सम्मान दिया है, इसे गिराया नहीं. जनता समझ चुकी है घंटाघर रोड के ठोस अवैध कब्जों ने ठोकर मारकर ट्रिपल एंजिन के एक-एक कलपुर्जे को टुकड़ों में बदल दिया है।
संपादक राहुल पाण्डेय 9399291487
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