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गरीबों का आशियाना उजाड़कर न्यायालय बनाने की तैयारी शासकीय 8 एकड़ भूमि को छोड़कर गरीबों पर प्रशासन का जुल्म बेदखली नोटिस से चिंतित हैं ग्रामीण

 गरीबों का आशियाना उजाड़कर न्यायालय बनाने की तैयारी शासकीय 8 एकड़ भूमि को छोड़कर गरीबों पर प्रशासन का जुल्म बेदखली नोटिस से चिंतित हैं ग्रामीण



ढीमरखेड़ा । ढीमरखेड़ा तहसील का सिमरिया गांव, जहां पर रोड़ के किनारे 10 से 15 मकान - हीन एवं भूमिहीन परिवार पिछले 25 - 30 वर्षों से  परिवार सहित मकान बनाकर शांतिपूर्ण तरीके से निवास कर रहे है। इस बीच समय - समय पर उनके द्वारा न्यायालय में जुर्माना भी जमा किया गया । साथ ही अपने जीवन की संपूर्ण कमाई मकान के निर्माण में लगा दी गई है। लेकिन कुछ दिनों पूर्व तहसीलदार ढीमरखेड़ा के द्वारा संबंधित लोगों को बेदखली के नोटिस जारी किये गये और बताया गया कि यहां पर व्यवहार न्यायालय का निर्माण होना है। लिहाजा पीड़ित परिवारों के द्वारा तहसीलदार के आदेश को एसडीएम के समक्ष चुनौती दी गई है। 

इस संबंध में पीड़ित परिवारों के द्वारा बताया गया कि जहां पर प्रशासन के द्वारा व्यवहार न्यायालय बनाने का फैसला किया गया है वह गलत है क्योंकि उसी जगह से लगकर शासकीय भूमि लगी हुई है जो लगभग 8 एकड़ है और सेवा भूमि है जहां पर कोटवार कृषि कार्य कर रहा है। पूर्व में भी व्यवहार न्यायाधीश ढीमरखेड़ा के द्वारा मौका स्थल का निरीक्षण किया गया था जहां पर उक्त शासकीय जमीन उपयुक्त पाई गई थी इसके बावजूद भी सेवाभूमि को छोड़कर प्रशासन गरीबों का आसियाना उजाड़ने की तैयारी में है। 

*पूर्व में सेवाभूमि पर हुआ है निर्माण*

कलेक्टर को लिखे प्रार्थना पत्र में ग्रामीणों ने बताया कि वर्तमान में जहां पर ढीमरखेड़ा तहसील कार्यालय है वहां पर भी सेवाभूमि थी। लिहाजा कोटवार को किसी अन्य स्थान पर आवंटित करकें वहां पर तहसील कार्यालय का निर्माण करवाया गया है। ठीक स्थिति प्रस्तावित व्यवहार न्यायालय की है, यहां पर भी कोटवार को 8 एकड़ सेवाभूमि दी गई है जिसमें से आधी जमीन पर व्यवहार न्यायालय का निर्माण किया जा सकता है।ग्रामीणों ने बताया कि पहले व्यवहार न्यायालय का निर्माण सेवाभूमि में ही तय किया गया था लेकिन राजनीतिक कारणों से उसे बदला गया है। 

*भरी गर्मी में कहां जायेंगे साहब*

बेदखली नोटिस के बाद ग्रामीण काफी परेशान है क्योंकि उनके द्वारा अपने जीवनभर की कमाई से मकानों का निर्माण करवाया गया है, बावजूद इसके यदि प्रशासन हठधर्मिता का रूख अखत्यार करते हुये उनके मकान जमीदोज कर देता है तो वो गर्मी में कहां जायेंगे। कलेक्टर को लिखे प्रार्थना पत्र में ग्रामीणों ने मांग की है कि यदि उन्हें हटाया ही जाता है तो पहले उन्हें कहीं दूसरी जगह पर शासकीय जगह आवंटित कर दी जाये जिससे हम अपना जीवन - यापन कर सके। 

*प्रधानमंत्री आवास भी आ रहे दायरें में*

प्रशासन के द्वारा मौजा-सिमरिया, प-ह-नं-38, तहसील-ढीमरखेड़ा, जिला कटनी स्थित शासकीय भूमि खसरा नं.24 रकवा 2.65 हे. में व्यवहार न्यायालय बनाना सुनिश्चित किया गया है जिसमें से उक्त जमीन के कुछ अंश भाग में ही ग्रामीणों के 10 से 15 मकान बने हुये है। मौके पर कई ग्रामीणों के द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेकर आवास का निर्माण करवाया गया है। ऐसे में यदि प्रशासन के द्वारा सेवाभूमि की जगह यही पर न्यायालय बनाया जाता है तो प्रधानमंत्री आवास भी टूटेंगे। एक ओर जहां सरकार के द्वारा गरीबों को आवास उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई तो वहीं प्रशासन के द्वारा हठधर्मिता रवैया अपनाते हुये गरीबों को बेघर किया जा रहा है। ग्राम पंचायत सरपंच सिमरिया के द्वारा भी कलेक्टर को लिखे पत्र  में बताया गया कि खसरा नं.24 के कुल रकवे के अंश भाग में 10 से 15 परिवारों का कब्जा पिछले 30 वर्षों से है इसके साथ ही गांव में कहीं भी आवासीय जगह उपलब्ध नहीं है ऐसी स्थिति में खसरा नं.24 के बाजू से सेवाभूमि लगी हुई है जो लगभग 8 एकड़ है जो व्यवहार न्यायालय के लिये उपयुक्त है। पूर्व में भी यही जमीन न्यायालय निर्माण के लिये चिन्हित की गई थी लेकिन राजनीतिक कारणों से सेवाभूमि पर निर्माण नहीं किया जा रहा है। 

*सामूहिक रूप से आत्महत्या की चेतावनी* 

मौजा-सिमरिया, प-ह-नं-38, तहसील-ढीमरखेड़ा, जिला कटनी स्थित शासकीय भूमि खसरा नं.24 रकवा 2.65 हे. के कुछ अंश भाग में पिछले 30 वर्षों से काबिज ग्रामीणों को बेदखली नोटिस के बाद उनकी रातों की नींद गायब है चूंकि मौके पर बने मकानों के अलावा अन्य कोई भी भूमि इनके पास नहीं है इसके बावजूद भी प्रशासन के द्वारा यदि अपना फैसला नहीं बदला जाता है तो कार्यवाही दिनांक  को सामूहिक रूप से आत्महत्या की चेतावनी पीड़ित परिवारों के द्वारा दी गई है।

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