*खरी - अखरी*
आस्तीनी सांपों से डसे जाने का दोष भाजपा पर मढना ठीक नहीं
*सूरत में भाजपा ने एकबार फिर अपनी सूरत दिखा दी मगर इसके लिए सारा दोष भाजपा के खाते में नहीं नहीं डाला जा सकता है। सूरत में कांग्रेस कैंडीडेट के परचा निरस्त होने के लिए भाजपा को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। हां बसपा सहित बाकी 8 कैंडीडेट के नाम वापिस कराने का जो अलोकतांत्रिक खेल भाजपा द्वारा परदे के पीछे से खेला गया उससे कहा जा सकता है कि लोकतंत्र की हत्या जरूर हुई है। सूरत के खेल की तुलना न तो चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में हुए लोकतंत्र के चीरहरण से की जा सकती है न ही खजुराहो में इंडिया एलायंस के कैंडीडेट के नामांकन परचे के निरस्त करने से । चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में भाजपा के ईशारे पर जो घिनौना खेल खेला गया था उस पर तो सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए अपनी मुहर लगा दी कि यह तो लोकतंत्र की हत्या है और हम ऐसा होते हुए नहीं देख सकते। चंडीगढ़ का सारा खेला भाजपा द्वारा बिछाई गई चौसर पर खेला गया था। यहां पर भाजपा को निश्चित तौर पर लोकतंत्र के हत्यारों की कतार में खड़ा किया जा सकता है। मध्य प्रदेश में खजुराहो संसदीय क्षेत्र में इंडिया एलायंस के उम्मीदवार का परचा खारिज होने पर भाजपा को पूरी तरह से दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जिस तरह से इंडिया एलायंस के उम्मीदवार का परचा निरस्त हुआ है वह उसके खिलाफ उसकी ही मूल पार्टी समाजवादी पार्टी के मुखिया द्वारा रचे गए षड्यंत्र का मायाजाल लगती है। सूत्रों के अनुसार परचा खारिजी की पटकथा तो खुद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने अपने-अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए लिखी थी जिसकी भनक तो कैंडीडेट को भी नहीं थी।*
*सूरत में कांग्रेस के कैंडीडेट नीलेश कुंभाणी सहित डमी कैंडीडेट सुरेश पडसाला का परचा निरस्त होने के लिए भाजपा नहीं कांग्रेस के हाईकमान की अदूरदर्शिता और मानसिक दिवालियापन जिम्मेदार है। जिस पार्टी का हाईकमान ऐसे विभीषणों (बिकाऊ लोगों) को टिकिट देगा तो उसका यही परिणाम होगा जैसा सूरत में हुआ है। जैसी खबर मिल रही है कि नामांकन रद्द करने की पटकथा तो खुद कांग्रेस कैंडीडेट नीलेश कुंभाणी ने लिखी थी। किसी भी कैंडीडेट के प्रस्तावक उस पार्टी के कार्यकर्ता होते हैं मगर यहां तो कुंभाणी ने खुद के साथ ही डमी कैंडीडेट के प्रस्तावक अपने बहनोई, भांजों और बिजनेस पार्टनर (पारिवारिक कुनबे) को बनाया है । नामांकन के समय प्रस्तावकों को भी नहीं ले जाया गया न ही नामांकन की छानबीन के दिन ही पेश किया गया । नामांकन पत्र की जांच के दौरान भाजपा के चुनाव एजेंट द्वारा आपत्ति पेश करने पर रिटर्निग आफीसर-कलेक्टर सूरत सौरभ पारधी शोकाज नोटिस जारी करे उसके पहले ही नीलेश के बहनोई, भांजों व धंधा साझीदार इस बात का एफिडेविट भिजवा कर अंतर्ध्यान हो गये कि नामांकन में उनके नहीं बल्कि उनके फर्जी दस्तखत किए गए हैं। फिर क्या था रिटर्निग आफीसर ने नीलेश कुंभाणी सहित डमी उम्मीदवार सुरेश पडसाला का नामांकन खारिज कर दिया। कांग्रेस अपने खोटे सिक्कों का नामांकन परचा खारिज कर दिए जाने पर भाजपा के ऊपर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप नहीं लगा सकती।*
*भाजपा द्वारा लोकतंत्र की हत्या करने की ओर कदम तो कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभाणी और डमी कैंडीडेट सुरेश पडसाला का परचा खारिज होने के बाद "आपरेशन निर्विरोध" के रूप में तब बढाये गये जब उसने परदे के पीछे से बसपा के प्यारेलाल सहित बाकी बचे सभी आठों उम्मीदवारों को चुनावी अखाड़े से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया। अब जब अखाड़े में अकेला भाजपाई पहलवान मुकेश दलाल बचा तो रिटर्निग आफीसर कलेक्टर सूरत सौरभ पारधी ने उसे विजेता डिक्लेयर कर दिया। भले ही भाजपा इस जीत से अपनी पीठ ठोंक रही है मगर उसने इस बात का संदेशा भी दे दिया है कि वह चुनावी मैदान में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत दो - दो हाथ करने से घबरा रही है वरना कोई कारण नहीं था "आपरेशन निर्विरोध" का, वह भी खासतौर पर वहां जहां वह 1984 से लगातार जीत रही है।*
*अक्सर देखने में आ रहा है कि मोदी - शाह की भाजपा सत्ता हथियाने - सत्ता पर काबिज रहने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है। दोपायों की खरीद फरोख्त करने में उसे जरा भी लज्जा नहीं आती है बल्कि अब तो उसने इसे अपनी रणनीति में ही शामिल कर लिया है। "आपरेशन लोटस" का फार्मूला तो वह अपनाती ही रहती है। चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में उसने "आपरेशन वोट इनवेलिड" फार्मूले को ईजाद किया मगर सुप्रीम कोर्ट ने उस फार्मूले की बखिया उधेड़ (यैसी-तैसी) करके रख दी। "आपरेशन वोट इनवेलिड" फार्मूला इनवेलिड हो जाने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने "आपरेशन लोटस" के बाद चुनाव जीतने के लिए नये फार्मूले का ईजाद किया है जिसे नाम दिया गया है "आपरेशन निर्विरोध" । बताया जाता है कि भाजपा ने इस "आपरेशन निर्विरोध" का प्रयोग मध्यप्रदेश की खजुराहो संसदीय क्षेत्र में इंडिया एलायंस उम्मीदवार का नामांकन पत्र निरस्त होने के बाद बसपा सहित बचे सभी प्रत्याशियों का नाम वापसी कराने में किया था लेकिन भाजपा के दुर्भाग्य या यूँ कहें जनता के सौभाग्य से सफलता नहीं मिली। प्रयास चालू रहा और सफलता भी मिल गई मोदी - शाह के गृह राज्य गुजरात के संसदीय क्षेत्र सूरत में, जिसका गवाह बना सूरत का फाइव स्टार होटल ली मेरिडियन।*
*कांग्रेस नेता राहुल गांधी का यह कहना कि तानाशाह की असली सूरत - सूरत से देश के सामने आई है सूरत को छोड़कर तो सही लग सकता है मगर सूरत की सूरत को लेकर नहीं । जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने के संवैधानिक अधिकार से मरहूम कर देने की साजिश रचने के लिए जरूर भाजपा पर लोकतंत्र और संविधान की हत्या के लिए कदम बढ़ाने का आरोप लगाया जा सकता है। यह भी कहना प्रासंगिक हो सकता है कि 2024 का लोकसभा चुनाव सरकार बनाने के साथ ही देश में लोकतंत्र और संविधान बचाने का चुनाव है क्योंकि जब सत्ता में बैठी हुई पार्टी द्वारा हरहाल में चुनाव जीतने के लिए संवैधानिक संस्थाओं का उपयोग अपने पक्ष में करने के लिए हर स्तर पर संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को रौंदा जा रहा हो।*
*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता*
_स्वतंत्र पत्रकार_
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