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पहला सूखा चुनाव है जब सभी पक्ष के कार्यकर्ताओं के कण्ठ सूखे रह गए भाजपा का मकसद-रिकार्ड विजय के साथ शिवराज का कद बौना हो जाए

 पहला सूखा चुनाव है जब सभी पक्ष के कार्यकर्ताओं के कण्ठ सूखे रह गए भाजपा का मकसद-रिकार्ड विजय के साथ शिवराज का कद बौना हो जाए



ढीमरखेड़ा । ऐतिहासिक रूप से नीरस और अरूचिकर लोक सभा चुनाव में खजुराहो सीट की विजय संख्या में भाजपा को दिलचस्पी है। वह इस सीट पर मुरैना के आदमी को लादकर फिर थॉपकर अपने इलेक्शन विक्ट्री मैनेजमेंट (ई. वी. एम.) के प्रहार से चुनौती देने वाले मजबूत प्रत्याशी को निपटा चुकी है , ताकि भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष की निश्चिय हार से पार्टी की किरकिरी को बचा सके। इंडिया गठबंधन की सपा प्रत्याशी मीरा यादव के पति हाल ही में यू. पी. की जेल से बेल पाकर छूटे हैं, इसलिए उस पर ईवीएम नीति की चोट करने से ही काम हो गया, मजबूत प्रत्याशी ने अपनी चुनौती की खुद हत्या कर दी। अब भाजपाई ईवीएम इस सपने को पूरा करने में जुटी है कि-भाईसाहब को नौ लाख मतों से विजयी बनाकर एक विश्व रिकार्ड बना लें। लेकिन जानकारी का मानना है कि रिकार्ड मत संख्या से जीतने का असली मकसद है कि- वीडी भैया का कद शिवराज सिंह से बड़ा कर दिया जाए। वैसे भी साफ नजर आता है कि-शिवराज सिंंह-वसुंधरा राजे सिंधिया के कद की शॉर्प -कटिंग भाजपा के पर-काटने वाले विशेषज्ञों की टीम कर ही रही है l अगले दिनों में ये नाम भी उमा भारती के अगल-बगल टंगने वाले हैं।

*मतदाता उदासीन, विपक्ष पसीना क्यों बहाए*

भाजपा के बूथ मोहल्ला वाले अध्यक्ष तक से संभाग और भोपाल के संगठन पदाधिकारी महीनो से जुड़े हैं ताकि भितरघात से पार्टी बची रहे और बूथ पर मतदाता आए। बूथ लेबल से टेलीफोनिक संपर्क करके पल-पल की रिपोर्ट और मानीटरिंग करना भाजपा की कुशल चुनाव विजय प्रबंधन (ईवीएम) नीति है। उनकी सराहना सभी कर रहे हैं।

*बिखरा विपक्ष व्हाटसअप तक सिमटा*

विपक्ष की बात करें तो कांग्रेस तिनका -तिनका बिखरी पड़ी है। व्हाटसअप सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया हो रही है, उससे  मतदाता घर के बाहर नहीं आने वाला है।

*मतदाताओं की बेरूखी से मतदान का प्रतिशत गिरने की पूरी संभावना*

कोई ताज्जुब नही होगा यदि भाजपा का पारंपरिक मतदाता भी उदासीनता की चादर ओडक़र घर पर आराम करता रहे, क्योंकि कटु सत्य है कि उसे यह ज्ञान हो चुका है कि वह एक ढोने वाला दो पाया मात्र है, भले उसे पुचकारते हुए-देवतुल्य कहा जाता है।

*सभी कार्यकर्ताओं में एक समान निराशा*

यह इतना नीरस चुनाव है कि भाजपा से लेकर विपक्ष तक के कार्यकर्ताओं का गला सूख गया है। चुनाव में कार्यकर्ता हफ्तों पहले से अपना गला तर करके थकान मिटाते थे, अपने मोहल्ले के बिकाऊ वोटर को गला तर करने के अवसर बनाकर देते थे। प्रचार युद्ध (पर्चे, बैनर, रैली) में कार्यकर्ता को बजट मिलता था, वह सब चौपट हो गया है। विपक्ष के कार्यकर्ता को तो एक दिनी मौका मिल गया था, जब उसे नामांकन के लिए रैली लेकर जाना था। उस समय यादव जी द्वारा आवंटित बजट से आशा हो गई थी कि चुनाव तक कार्यकर्ताओं की बल्ले-बल्ले हो जाएगी, लेकिन नामांकन रद्द होते ही उनके कंठ भी सूख गए।

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