अफसर तो नप जाते हैं, नेताओं का क्या? मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव संदेह के घेरे में
ढीमरखेड़ा | जब भी कोई बड़ा हादसा या दुर्घटना होती है तो नीम बेहोशी में सोई सरकारी मशीनरी हड़बड़ाकर जागती है और ताबड़तोड़ कार्रवाई शुरू कर देती है, जो थोड़े दिन बाद ही फिर ठंडे बस्ते में चली जाती है। हरदा में पटाखा फैक्ट्रियों में हुए धमाकों में जहां कई गरीब मर गए वहीं मुख्यमंत्री ने कलेक्टर और एसपी की रवानगी करवा दी। पूर्व के भी ऐसे कई मामलों में अफसरों को बड़ी आसानी से नाप दिया गया। इसमें कोई शक नहीं कि अफसरों द्वारा कार्रवाई में ढिलाई की जाती है और ऊपरी कमाई भी एक बड़ा कारण है। मगर क्या इस पूरे सिस्टम में अफसर ही दोषी हैं ? हकीकत तो यह है कि एक ठेला-गुमटी लगाने या हटाने सहित हर मामूली मामले में राजनीति हावी रहती है। बताया जा रहा है कि हरदा में जो पटाखा फैक्ट्री अवैध रूप से चलती रही उसे अफसरों के साथ नेताओं का भी भरपूर संरक्षण मिलता रहा। यहां तक कि कलेक्टर के फैक्ट्री सील करने के आदेश पर तत्कालीन संभागायुक्त ने जो स्टे दिया उसके पीछे भी एक तत्कालीन मंत्री का दबाव-प्रभाव बताया जा रहा है। दरअसल ऐसे अधिकांश मामलों में अफसरों को सांसद, विधायक, पार्टी पदाधिकारियों से लेकर मंत्रियों की सुनना ही पड़ती है।मगर जब कार्रवाई की नौबत आती है तो गाज सिर्फ अफसरों पर ही गिरती है। हरदा मामले में भी कांग्रेस और भाजपा ने एक-दूसरे पर राजनीतिक संरक्षण के आरोप लगाए हैं। गुड गवर्नेंस की दिशा में आगे बढ़ रहे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को अफसरों पर कार्यवाही के साथ उन राजनीतिक दबाव-प्रभाव को भी देखना-समझना होगा, लिहाज़ा कई बार अफसरों को ना चाहते हुए भी कई गलत काम करना पड़ते हैं। जब हमाम में सभी लिप्त हैं तो गाज सिर्फ अफसरों पर ही क्यों गिरती है।अभी प्रदेश भर के कलेक्टरों ने ताबड़तोड़ पटाखा फैक्ट्री, गोदाम सील करवा दिए। मानों सिस्टम को इस तरह के हादसे का ही इंतजार था मगर सवाल यह है कि आज अगर ये फैक्ट्रियां और गोदाम अवैध दिख रहे हैं तो उसके पहले क्या वैध थे और किनके संरक्षण में कारोबार करते रहे।
*अधिकारियों के साथ बदला जाए विधायक को*
प्रदेश में हरदा की घटना ने सबको झगझोर कर रख दिया। जिसके बाद प्रशासन जागा। विदित हैं कि जैसे ही घटना हुई अधिकारियों का स्थानांतरण कर दिया गया। लिहाज़ा अधिकारियों के स्थानांतरण से क्या गलतियों को सुधारा जा सकता है? या फिर अपनी गलतियों को छुपाने के लिए स्थानांतरण की नीति को अपनाया गया। ऐसी कोई बीमारी नहीं जिसका कोई इलाज नहीं। हमारे शरीर की बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर होता है। जो की परीक्षा के माध्यम से चयनित किया जाता है। फिर शिक्षा प्राप्त करता है और डॉक्टर बनता है। हमारे देश में सांसद, विधायक, पार्षद समाज के डॉक्टर हैं। समाज की बीमारियों का उपचार करना उनकी जिम्मेदारी है लेकिन यह लोग इलाज नहीं कर रहे हैं बल्कि बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और मजहब वाद को बढ़ाने का काम यह लोग कर रहे हैं। जहां पर वोट और नोट होता है वहां पर यह लोग काम करते हैं। बहरहाल जब अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए जा रहे हैं तो आखिर मंत्रियों और विधायकों की कार्य - प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह क्यों नहीं खड़े किए जा रहे हैं जिसमें मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव संदेह के घेरे में हैं।
*समस्या पर चर्चा होती है, समस्या के कारण पर कभी चर्चा नहीं होती*
देश में जनसंख्या के विस्फोट पर कभी चर्चा नहीं होती। हमारे देश को, हमारे समाज को अच्छा डॉक्टर चाहिए। देश के लिए बेस्ट क्वालिटी के लोग सांसद, विधायक, पार्षद के पद पर चाहिए लेकिन विशेष क्षमता के लोग इस क्षेत्र में नही आ रहे हैं। सेना में जाने वाले व्यक्ति का चयन एनडीए की परीक्षा से, वकील के कार्य के लिए आने वाले व्यक्ति का चयन परीक्षा से, बैंक के मैनेजर का काम करने वाले व्यक्ति का चयन परीक्षा से होता है। इस तरह से सांसद, विधायक, पार्षद के लिए भी लेजिस्लेटर एलिजिबिलिटी टेस्ट शुरू किया जाना चाहिए। हमारे संविधान के निर्माता बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि हमें अनपढ़ जनप्रतिनिधि नहीं चाहिए। हमें बेस्ट टैलेंट चाहिए। उस समय पर कानून में सांसद, विधायक के लिए न्यूनतम शिक्षा का प्रावधान किया जाना था लेकिन हकीकत यह थी की आजादी के आंदोलन में भाग लेने वाले नेताओं ने पढ़ाई छोड़ दी थी। इस कारण से न्यूनतम योग्यता का प्रावधान नहीं किया गया। इसी तरह से इन पदों के लिए अधिकतम आयु का भी प्रावधान किया जाना था। उस समय भी यह समस्या थी कि देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लोगों में बहुत से लोग अधिक उम्र के हो गए थे। लेकिन अब इन विषयों में विचार किया जाना चाहिए।
*अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था ने देश को बर्बाद किया*
देश की शिक्षा व्यवस्था की चर्चा होना चाहिए लेकिन हम बच्चों को शिक्षा में ऐसी चीज पढ़ा रहे हैं जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। हमारे वेद में अष्टांग योग दिया हुआ है इसे शिक्षा में शामिल होना चाहिए। जिससे देश के लोगों में योग और संस्कार आ जाएंगे। देवी अहिल्या के सपनों का भारत बनाने के लिए यह एक जरूरी और महत्वपूर्ण पहल होगी। नया परिणाम प्राप्त करने के लिए हमें नया काम करना होगा। हमारी शिक्षा की वैदिक और गुरुकुल की पुरानी व्यवस्था को एक बार फिर लागू करना होगा। हर स्कूल में सूर्य नमस्कार कराया जाना चाहिए। हर क्लास के बच्चे के लिए योग और प्राणायाम को अनिवार्य करना होगा। यदि हमने ऐसा कर दिया तो हमारा स्वास्थ्य का 25% बजट कम हो जाएगा। यदि हमने अष्टांग योग को लागू कर दिया तो 25% अपराध कम हो जाएंगे।
*चंद्रगुप्त मौर्य के समय पर हमारे देश की जीडीपी 40% थी*
जब हमारे देश का संविधान बनाया गया था तब 50 देश के संविधान का अध्ययन किया गया था। इसमें 10 देश के संविधान में से चीज ली गई थी। अब तो हालत यह हो गई है कि एक राज्य कोई कानून बनाता है तो वह दूसरे राज्य के द्वारा उस बारे में बनाए गए कानून का भी अध्ययन नहीं करता है। चंद्रगुप्त मौर्य के समय पर हमारे देश की जीडीपी 40% थी, आज हमारे देश की जीडीपी 8% है। हमारे देश में 2000 साल पहले अपराध कम थे आज ज्यादा हैं। हमारे देश में जीवन के 16 संस्कार की बात की जाती है। यह संस्कार हम भूल गए। यदि इन संस्कारों को याद कर लेंगे, इन संस्कारों का प्रचार कर देंगे तो समाज की स्थिति बदल जाएगी।
*सख्त कानून हर अपराध को कम कर सकते हैं*
हमारे देश में कानून बनाने का काम संसद और विधानसभा के द्वारा किया जाता है। यह देश का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है। इस कार्य को करने वाले लोगों का कोई क्वालिफिकेशन तय नहीं है। यदि हम सांसद, विधायक, पार्षद के लिए टेस्ट शुरू कर देंगे तो उससे पूरा कूड़ा कचरा साफ हो जाएगा। जिस तरह से इंदौर के लोगों ने इंदौर को स्वच्छ किया है। इस तरह से देश की लोकसभा, विधानसभा और नगर निगम भी स्वच्छ हो जाएगी। आज यह दुर्भाग्य की बात है कि पार्षद को नहीं पता कि उसका कार्य क्या है? पार्षद के काम को पार्षद कर रहा है, विधायक भी कर रहा है और सांसद भी कर रहा है। हमारे देश में 80% समस्या का समाधान कानून के माध्यम से किया जा सकता है। आज नशे की पुड़िया कॉलेज के पास बिक रही है। पिछले दिनों सिंगापुर में एक व्यक्ति को 900 ग्राम अफीम के साथ गिरफ्तार किया गया था। उसे फांसी दे दी गई। उसके बाद में वहां पर कोई इस कारोबार को नहीं करता है। जब हम अपने कानून को ऐसा बना देंगे तो ऐसे कारोबार अपने आप रुक जाएंगे। समाज के कार्य करने की गति और शासन के कार्य करने की गति में जमीन आसमान का अंतर होता है। जिस काम को करने में समाज को 100 साल लगेंगे, उस कार्य को शासन एक साल में कर सकता है। आज कई सालों से हम लोग कह रहे हैं कि दो पहिया वाहन चलाने वाले हेलमेट जरूर लगाए लेकिन इस नियम का पालन नहीं हो सका। नियम बना दीजिए कि कल से हेलमेट लगाकर नहीं चलने वाले व्यक्ति का ₹50000 का चालान बनाया जाएगा फिर देखिए कितने दिन में इस कानून का पालन हो जाता है।
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