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मोबाइल बच्चों के लिए जितना जरूरी, उससे कहीं ज्यादा नुकसान दायक सिद्ध हो रहा है

 मोबाइल बच्चों के लिए जितना जरूरी, उससे कहीं ज्यादा नुकसान दायक सिद्ध हो रहा है

ढीमरखेड़ा -आज के बच्चे जहाँ बड़ी आसानी से इंटरनेट-फ्रेंडली हो रहे हैं, वहीं वे अनजाने में कई प्रकार के दुष्प्रभावों का शिकार भी आसानी से हो रहे हैं, जिसे तकनीकी भाषा में साइबर बुलिंग कहा जाता है। बेहद आम होती जा रही साइबर बुलिंग को सरलतम अर्थों में स्पष्ट किया जाए तो कहा जा सकता है कि अभद्र-अश्लील भाषा, चित्रों तथा धमकियों से इंटरनेट पर किसी को परेशान करना साइबर बुलिंग की श्रेणी में आता है। हाल ही में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने पहली बार बच्चों की साइबर सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों को तीन हिस्सों में जारी किया गया है। पहले हिस्से में स्कूलों के लिये, दूसरे में विद्यार्थियों और तीसरे में शिक्षकों के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं। इसमें क्या करें और क्या नहीं करें, इसके निर्देश दिये गए हैं।बच्चों की शैक्षिक यात्रा में आज कंप्यूटर उनका हमसफर बन गया है। सूचनाओं के अथाह भंडार और मनोरंजन के स्रोत के रूप में बच्चों के दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। इसके साथ ही इंटरनेट ने उन्हें अपना दृष्टिकोण प्रकट करने और किसी के प्रति टिप्पणी करने का विश्वव्यापी मंच भी उपलब्ध कराया है। लेकिन इसके साथ ही इंटरनेट की सर्वसुलभता ने इसे किसी की निजता को भंग करने या आधुनिकता का लबादा ओढ़कर मनचाहा उन्मुक्त आचरण करने का उपकरण बना दिया है। बच्चे तथा किशोर भी इससे बच नहीं पाए हैं तथा साइबर बुलिंग का सबसे ज़्यादा और आसान शिकार बन रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के साथ अब वॉट्सएप जैसे मैसेंजर के दौर में साइबर बुलिंग अब एक नया रूप लेती जा रही है, क्योंकि इनमें बन रहे ग्रुप भी इसे बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। ऐसे में इसे नियंत्रित करने के लिये सरकार के स्तर पर यदि प्रशासकीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़े तो उसमें कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये। परिवार के स्तर पर अभिभावक कुछ क्वालिटी टाइम बच्चों के साथ बिताने की आदत डालें तो इससे बच्चे के व्यवहार को अच्छी तरह से समझने में सरलता तो होगी ही, साथ ही किसी भी तरह की समस्या होने पर आसानी से उसका निदान भी तलाशा जा सकेगा।

लाइफ स्टाइल बदलने से भी हो रही परेशानी 

जिंदगी में अच्छे दोस्तों की कमी और ऑनलाइन दोस्तों की अनदेखी के साथ घर में अभिभावकों का प्रभावी नियंत्रण न होने से भी बच्चे आसानी से साइबर बुलिंग की चपेट में आ जाते हैं। दोस्ती टूटने, निगेटिव कमेंट्स मिलने या लाइक्स कम मिलने से भी उनमें हीन भावना घर कर लेती है। आज 10 में से 6 छात्र किसी-न-किसी रूप में साइबर बुलिंग के शिकार हैं, लेकिन स्कूलों और अभिभावकों को इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।92% बच्चे और किशोर फेसबुक साइबर बुलिंग का शिकार होते हैं 23.8% प्रतिशत ट्विटर से होते हैं शिकार 75% अभिभावक साइबर बुलिंग से अनभिज्ञ 43% से ज्यादा यूज़र साइबर बुलिंग के शिकार 25% टेक्स्ट मैसेजिंग से करते हैं परेशान 4 घंटे तक सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बुलिंग होने की संभावना अधिक रहती है। 

बच्चों को इंटरनेट पर कैसे सुरक्षित रखें

कुछ समय पूर्व हुए एक सर्वे से पता चला था कि देश में इंटरनेट तक पहुँच रखने वाले 70% अभिभावक बच्चों और युवाओं को कुछ बेहतर करने के लिये सोशल मीडिया और इंटरनेट इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं। लेकिन इनमें लगभग 58% बच्चे अभिभावकों के साथ हर जानकारी छुपाते हैं और इस चक्कर में वे अनचाही बिन बुलाई परेशानियों में घिर जाते हैं।

साइबर बुलिंग के लिए ये हैं प्रावधान

भारत में साइबर अपराधों की चर्चा तो होती है, लेकिन साइबर बुलिंग से बच्चों को बचाने की चर्चा कम ही होती है।इंटरनेट पर बच्चों को साइबर बुलिंग का शिकार बनाने वाले को कड़ी सज़ा होनी चाहिये ताकि उनमें इस बात का भय रहे कि इसके परिणाम बहुत बुरे हो सकते हैं।भारत में साइबर क्राइम के मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 लागू होते हैं।इसी श्रेणी के कई मामलों में आईपीसी, कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहाँ तक कि आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी कार्रवाई की जा सकती है।लेकिन फिलहाल बच्चों की सुरक्षा न तो भारतीय कानून का उद्देश्य है, और न ही इसके लिये कोई विशिष्ट प्रावधान है।आईटी कानून की धारा 509 कहती है कि कोई शब्द या गतिविधि या संकेत यदि महिलाओं की मॉडेस्टी भंग करता है तो इसके खिलाफ मामला दर्ज हो सकता है।यह बुलिंग के लिये इस्तेमाल होने वाले शब्दों पर भी लागू होता है, क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना अपराध है। इसी कानून की धारा 66(a)(b) बुलिंग पर लागू होती है, जिसके तहत तीन साल तक की सज़ा तथा जुर्माना हो सकता है।किसी को मानसिक आघात पहुँचाने के लिये आपत्तिजनक सामग्री भेजना दंडनीय अपराध है। यह अपराध इस कानून की धारा 72 के तहत आता है।वर्तमान परिस्थितियों में सूचना प्रोद्यौगिकी कानून में 18 साल से कम आयु के बच्चों की साइबर सुरक्षा के लिये विशिष्ट प्रावधानों की आवश्यकता है।कई देशों में साइबर बुलिंग से बच्चों को बचाने के लिये हेल्पलाइन की व्यवस्था है, भारत में भी ऐसा किया जा सकता है।

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